स्वामी अग्निवेश जनसेवा के लिए समर्पित एक सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सुधारक और संत हैं. इनका जन्म 21 सितम्बर को आंध्रप्रदेश के ब्राहमण परिवार में हुआ था. संन्यास से पूर्व उनका नाम श्याम राव था. प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही पाई और बाद में एम.काम. तथा एल.एल.बी. की परीक्षाएँ कोलकाता विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण कीं और कोलकाता के ही एक कालेज में अध्यापन कार्य किया.
स्वामी समर्पणानन्द से प्रभावित होकर ही इन्होंने आर्य समाज में पदार्पण किया. स्वामी ब्रह्ममुनी से 7 अप्रैल, 1970 को संन्यास की दीक्षा ली. आर्य समाज में रहते हुए राजनीति में भी सक्रिय भाग लेते रहे. इन्होंने ’आर्य युवक परिषद्’ का गठन किया और सामाजिक व राजनीतिक पत्र ‘राजधर्म’ प्रकाशित करवाना प्रारंभ किया. संन्यास के बाद इन्होंने हरियाणा की राजनीति में सक्रिय भाग लिया और चुनाव जीत कर हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री का पद भी सुशोभित किया.
शराब, गोहत्या, बंधुआ मजदूरी आदि के विरूद्ध इनके अभियानों से समाज में नई-चेतना आई है. इन्होंने आर्य राष्ट्र, वैदिक समाजवाद व अन्य बहुत-सी पुस्तकें लिखी हैं. इनके द्वारा ‘क्रांतिधर्मी’ पाक्षिक पत्र भी प्रकाशित किया जाता है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आन्दोलन में सक्रिय रहे; लेकिन बाद में अपने आप को इससे अलग कर लिया. इनको देश-विदेश की मानवाधिकार संस्थाओं से कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं.
Swami Agnivesh Quotes in Hindi स्वामी अग्निवेश के उद्धरण
1. युवा बलवान होता है, उर्जावान होता है, तेजस्वी होता है. उसका स्वभाव गतिशील है. उन्हें कुछ कर दिखाने का अवसर मिलना चाहिए. उन्हें उत्तरदायित्व सौंपना चाहिए. इस आध्यात्मिक उर्जा का दूरसंचार माध्यमों से संगठन कर नए समाज निर्माण के लिए किया जाना हमारा राष्ट्रीय संकल्प होना चाहिए.
2. कानून को अपने हाथों में लेना अराजकता को दावत देना है.
3. हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना होगा.
4. आज हमारे देश में पनप रही अव्यवस्था, अपसंस्कृति, उच्छृंखलता और अवैज्ञानिकता के उन्मूलनार्थ वैदिक पथ पर चलने की जरूरत है.
5. आज हमारा देश जातिवाद, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, पाखंड, नशाखोरी, शोषण और नारी उत्पीडन में आकण्ठ डूबा हुआ है. समूची, व्यवस्था इतनी लचर और भ्रष्ट हो चुकी है कि संसद, विधान सभाएँ और अदालतें भी अक्षम सिद्ध हो रही हैं.
6. किसी भी इकाई, संस्थान के प्रतिनिधि जब शिथिल हो जाते हैं तो उसमें परजीवी घुस जाते हैं और सक्रिय होकर उत्पात मचाने लगते हैं. जब तक आप खुद संगठित नहीं होंगे, संघर्ष नहीं करेंगे तो आपकी गरिमा को आपकी विद्वता को, आपकी ताकत को कौन अहमियत देगा. बिना संगठन, सक्रियता और संघर्ष के कुछ भी संभव नहीं है.
7. देश की राजनीति दिशाहीन थी, अब तो यह नैतिकता विहीन हो गई है.
8. माता-पिता एवं शिक्षक वर्ग बचपन से ही बच्चों में संस्कार देने के अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं, इसलिए नई पीढी दिशाविहीन होती जा रही है. इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों में ठीक समय पर अच्छे संस्कार दिए जाएँ और उन्हें समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का ज्ञान कराया जाए.
9. धर्म तो एक प्रेम बंधन है, जो लोगों को जोड़ता है- इसे हिंसा और बदले का हथियार बनाना इसका अपमान है.
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10. अगर हमारे हृदय, प्यार और दया एवं हमारे मस्तिष्क सच्चाई और न्याय की लौ से जगमग नहीं होंगे तो हम अपने भाइयों एवं पड़ोसियों को दुश्मन मानने की भूल करेंगे.
11. भारत में ईश्वर की व्याख्या, प्यार, सच्चाई, न्याय एवं दया के रूप में की गई है.
12. भारत की एकता एवं सदभाव का आधार ईश्वर है, धर्म नहीं.
13. हम भारतवासी वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात पूरा विश्व एक परिवार है, को मानने वाले हैं.
14. सब बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क हो ताकि उनकी योग्यताओं के विकास का उन्हें समुचित अवसर मिल सके.
15. धर्म यदि अधार्मिक कृत्यों को रोकने के लिए आगे नहीं आता तो वह धर्म नहीं बल्कि पाखण्ड ही माना जाएगा.
16. बदलते दौर में पुरानी मान्यताओं और मर्यादाओं को ढोते रहना कहीं से भी समीचीन नहीं है. रूढ़ियों को थोपने के लिए अपने कानून बना लेना और उन्हें सख्ती से लागू करने के लिए देश के कानून को अपने हाथ में लेना बिलकुल अनुचित है.
17. शराब, तम्बाकू और नशीले पदार्थ तथा दमन और शोषण को दूर करने के लिए हमें गाँव-गाँव जाकर अलख जगानी होगी.
18. दरअसल , धर्म के नाम पर सदियों से अंधविश्वास, रूढ़ियाँ, अनर्गल कर्मकांड, जातिवाद और तमाम तरह की बुरी प्रथाएँ समाज में परोसी जाती रही हैं. इससे धर्म का सही रूप जो सनातन व शाश्वत होता है, सिकुड़ता गया और धर्म सम्प्रदाय में बदलता चला गया.
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