बेटी, पत्नी और मां के रूप में एक सच्ची भारतीय नारी हिंदी कहानी
आपने कभी सोचा है कि आखिर एक नारी क्या कर सकती है? वह कुछ भी कर सकती है, कुछ भी मतलब कुछ भी. प्रस्तुत कहानी True Indian Women Daughter Wife Mother Hindi Story इस बात को साबित करती है. यह कहानी नहीं बल्कि एक नारी के जीवन की गाथा है.
एक गांव था. एक ऐसा गांव जहाँ महिलाओं का कोई सम्मान नहीं था. अगर कोई लड़की अपने मां बाप से अपनी पढ़ाई के बारे में बात करती तो उसे उसके मां-बाप डांट कर चुप कर देते थे. लड़कियों की मर्जी के खिलाफ जाकर उनकी शादी कर दी जाती थी. इसी कारण कुछ लड़कियां आत्महत्या भी कर लेती थीं.
मगर ऐसे गांव में भी एक सज्जन आदमी रहते थे, जिनका नाम मोहनदास था. वह एक धनवान आदमी थे. उनका गांव में एक शानदार घर था. वह एक सफल कारोबारी थे. उनका शहर में अच्छा कारोबार चल रहा था. वह इस गांव में अपनी पत्नी के साथ रहते थे. उनकी पत्नी गर्भवती थी. मोहनदास को अपने गांव के प्रति बड़ा लगाव था. वह गांव की उन्नति के लिए गांव के लड़कों के साथ लड़कियों को भी पढ़ाना चाहते थे. लेकिन गांव वाले उनका विरोध करते थे. वह कहते कि लड़कियां पढ़ कर क्या करेगी. उन्हें तो अपने पति का घर संभालना है. गांव वालों ने मोहनदास की बात को ठुकरा दी. लेकिन मोहनदास गांव वालों को समझाने की बार-बार कोशिश करते रहे.
एक दिन गांव वालों ने गुस्सा होकर मोहनदास को बोल दिया कि हमारी बेटियों के भविष्य की चिंता करने वाले आप कौन हैं, उनकी चिंता करने के लिए हम बैठे हैं. उसके बाद मोहनदास ने गांव वालों को समझाना बंद कर दिया. लेकिन वह रोज भगवान से अपनी संतान के रूप में एक बेटी मांगने लगे और वह कहते हैं ना कि अच्छे काम में भगवान भी अपना साथ देते हैं. एक दिन भगवान की कृपा से मोहनदास के घर एक सुंदर बेटी ने जन्म लिया. उन्होंने उसका नाम जागृति रखा. मोहनदास की आंखों से खुशी के आंसू थे. वह बहुत खुश हुए. पूरे गांव में नाच गाना हुआ. मोहनदास बेटी के आने पर पूरे गांव में नाच रहे थे. यह बात गांव के पुरुषों को अच्छी नहीं लगी क्योंकि एक लड़की के जन्म होने पर आज पहली बार उस गाँव कोई मर्द ऐसे नाच रहा था.
धीरे-धीरे मोहनदास की बेटी जागृति चार साल की हो गई. वे अपनी बेटी को एक बेटे की तरह पालने लगे. वे उसे लड़कियों के कपड़ों की बजाय लड़कों के कपड़े पहनाते थे. जब जागृति लड़कों के कपड़े पहन कर गांव में निकलती तो गांव की सभी लड़कियां उसे देख अपने मां बाप से भी वैसे कपड़ों की मांग करती. जागृति जब बाल मंदिर में झोला लेकर पढ़ने जाती तो गांव की लड़कियां भी अपने मां-बाप से पढ़ने की इच्छा व्यक्त करती.
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बच्चों की ऐसी जिद के कारण गांव वाले तंग आ गए. एक दिन वे मोहनदास के घर पहुंच गए और जागृति को पढ़ाने के लिए मना करने लगे. फिर मोहनदास ने हंसकर वही बात कही जो एक दिन गांव वालों ने उनसे कहा था. उन्होंने कहा कि जागृति मेरी बेटी है. उसके भविष्य की चिंता करने वाले आप कौन हैं. उनकी चिंता करने वाला में बैठा हूं न. यह सुनकर गांव के लोग वहां से लौट गए. गांव के लोगों को यह अच्छा नहीं लगा.
मोहनदास अपनी बेटी जागृति को बार-बार तीन बातें कहा करते थे. एक कि वह कुछ भी कर सकती है, कुछ भी मतलब कुछ भी. दूसरा जब इंसान को आगे रास्ता ना दिखाई दे तो उसे एक ही दिशा में चलते रहना चाहिए. उसे मंजिल जरूर दिखाई देगी और तीसरी की संघर्ष के बिना कुछ नहीं मिलता. मोहनदास अपनी बेटी जागृति को भगवान का दिया हुआ प्रसाद मानते थे. उन्हें लगता था कि उनकी बेटी एक दिन समाज में उनका नाम रोशन करेगी.
दिन ऐसे ही बीतते गए और जागृति बड़ी होती रही. उसके जीवन में वह सब कुछ मिला था जिसकी वह हकदार थी लेकिन उसी जीवन में एक दिन उसे सब कुछ खोना भी लिखा था. एक दिन ऐसा आया जब जागृति अपने मां बाप के साथ मेले में घूमकर वापस घर आ रही थी, तभी कुछ गांववालों ने वेश बदलकर उन पर हमला कर दिया. उन्होंने मोहनदास और उनकी पत्नी को घायल कर दिया और वे दोनों अचेत हो गए. उन लोगों ने जागृति को एक बहती नदी में फेंक दिया. कुछ समय बाद जब उसके मां-बाप को होश आया तब जागृति उन्हें कहीं दिखाई नहीं दी तो वह घबरा गए. जागृति को इधर-उधर ढूंढने लगे पर उनकी बेटी उनको कहीं नहीं मिली. वे दोनों फूट-फूट कर रोने लगे. अपनी बेटी को पुकारने लगे. लेकिन वह कहीं नहीं मिली.
दूसरी तरफ नदी में डूब रही जागृति के चिल्लाने की आवाज को वहां से गुजर रहे एक लकड़हारा ने सूनी और उसने तुरंत नदी में छलांग लगा दी. उसने जागृति को बचाया और उसे अपने घर ले गया. उसकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए लकड़हारा और उसकी पत्नी उसे अपनी बेटी समझकर उसकी परवरिश करने लगे.
जागृति लकड़हारे के घर धीरे-धीरे बड़ी हुई. लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, वैस-वैसे उसके दिमाग से अपने असली माता-पिता की यादें जाती रही. लेकिन वह अपने पिता की कही हुई बातें नहीं भूली. वह अपने इस मां-बाप से हमेशा कहती रहती थी कि वह कुछ भी कर सकती है, कुछ भी मतलब कुछ भी. इस गांव में भी लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती थी. लकड़हारे ने फिर भी जागृति का स्कूल में दाखिला करवाया. पर गांव वालों ने उसे स्कूल भेजने के लिए मना किया. जागृति अब लकड़हारे को अपना बाप समझने लगी थी. उसने अपने पिता की परेशानी को समझा और पिता से कहा – “वह सिर्फ उसको किताबें ला कर दें वह खुद घर पर बैठी पढ़ना लिखना सीख लेगी”. पिता ने कहा कि तू कैसे सीख लेगी? तो जागृति ने फिर वही बात कही कि “वह कुछ भी कर सकती है. कुछ भी मतलब कुछ भी.”
मोहनदास की कही हुई इन बातों को वह कभी नहीं भूली. दिन बीतते गए. जागृति की अब उमर हो चली थी. इसलिए लकड़हारे को उसकी शादी की चिंता सताने लगी. वह जागृति के लिए एक योग्य वर ढूंढने लगा. जागृति को इस बात का पता चला तो उसने शादी करने से इनकार किया. कहने लगी कि उसको अभी और पढ़ना है. पढ़ लिखकर कुछ बनना है. यह सुनकर लकड़हारे की चिंता और बढ़ गई. बेटी की शादी की चिंता में वह बीमार पड़ने लगा.
एक दिन बीमारी इतनी बढ़ गई कि लकड़हारा तड़पने लगा. जागृति दौड़कर वैद्य जी के घर उनको बुलाने गई. उसी समय वैद्य जी के घर अपने बेटे के लिए दुल्हन ढूंढ रहे कुछ लोग आए हुए थे. जागृति उनको पसंद आ गई. उन्होंने वैद्य जी से यह बात कही. उसके बाद वैद्य जी जागृति के साथ उसके घर गए. उन्होंने लकड़हारे को देखा और दवा दी. जाते वक्त उसने जागृति के पसंद आने की बात कही. घरबार सब कुछ अच्छा है. लड़के के अच्छे होने की भी बात कही. अब तक तो जागृति अपने पिता की बीमारी का कारण समझ चुकी थी, इसलिए उसने अपने मां-बाप के लिए शादी करने के लिए तैयार हो गयी.
कुछ दिनों के बाद जागृति की शादी होने लगी. उसका कन्यादान हुआ. विदाई के समय जागृति बार-बार अपने पिता को गले लगा लेती थी. ऐसा भावुक दृश्य था कि बाराती भी रोने लगे थे. लकड़हारा अपनी बेटी को सिर्फ देखता रहा. उसकी आंखों से आंसू निकलते रहे. जागृति अपने पिता का आंगन छोड़ अपने ससुराल चली गई.
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जागृति अब अपने मां-बाप की यादों को अपने साथ लेकर अपने पति के साथ उसके ससुराल आ गई. जिंदगी का एक नया अध्याय अब शुरू हुआ, लेकिन उसकी जिंदगी में मुश्किलें घटने की बजाए और बढ़ने लगी. शादी की पहली रात को उसको यह मालूम हुआ कि उसका पति एक शराबी है, बेशर्म है, नल्ला है. तब उसकी आंखों से पहली बार आंसू निकल आए. वह बहुत रोई. लेकिन जागृति एक पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी. वह यह जानती थी कि जिंदगी हमारे हिसाब से नहीं बल्कि हम जिंदगी के हिसाब से चलते हैं.
शादी के कुछ दिनों बाद जागृति की सांस उसको छोटी-छोटी बातों पर डांटने लगी. जागृति जब सामने बोलती तो उसका पति उसको मारने लगता. कभी-कभी उसको दिन भर खाना भी नहीं देता. एक दिन गांव के चौराहे पर किसी विषय पर चर्चा हो रही थी समस्या का निवारण ना मिलने पर जागृति ने एक सही उपाय बताया. उपाय सही था पर एक महिला ने दिया होने के कारण उस पर ध्यान नहीं दिया गया. जागृति की इस उपाय बताने वाली गलती के लिये उसकी सास ने उसे दो दिन तक एक कमरे में बंद कर दिया. वह दो दिनों तक बिना कुछ खाए पियें बंद कमरे में रही.
समय यूँ ही बीतता रहा. जिंदगी में बार-बार मुश्किलें आने पर भी वह निराश नहीं हुई. उसने फिर वही बात दोहराई कि वह कुछ भी कर सकती है. कुछ भी मतलब कुछ भी. उसने ठान लिया कि वह महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागृत करके ही रहेगी. महिलाओं का न्याय दिलाकर ही रहेगी लेकिन उसके लिए उसको अपने पति के साथ की आवश्यकता थी. उसका पति शराबी था लेकिन फिर भी वह उसे एक अच्छा आदमी बनाने के लिए लगातार कोशिशें करने लगी. उसने अपने सौंदर्य से अपनी प्रेम की शक्ति से धीरे-धीरे उसके पति को अपना बनाया. उसके पति को भी अब उसके साथ समय बिताना अच्छा लगता था. वह अब उसकी बातों को सुनने लगा था. शराब छोड़ कर काम करने लगा था.
अपने बेटे को अब सही दिशा में जाते हुए देख जागृति की सास को बहुत अच्छा लगा. धीरे-धीरे उसने अपनी सास को भी अपने स्वभाव से अपना बना लिया. जागृति उसकी सास को मां मानने लगी थी और उसकी सास भी उसके साथ अपनी बेटी की तरह बर्ताव करने लगी थी.
घर में अब खुशियां ही खुशियां थी. चारों तरफ शांति थी. जागृति ने अपने प्रेम और चतुराई से घर के सारे सदस्यों को अपना बना लिया था, लेकिन गांव के लोगों को अपना बनाना अभी बाकी था. एक दिन अच्छा समय देखकर जागृति ने उसके पति से लड़कियों की पढ़ाई के बारे में बात की. तब उसके पति ने कहा कि वह अब हर पल उसके साथ है. वह जो करना चाहती है वह करें. उसके बाद उसके पति ने उसकी मां को यानि जागृति की सास को समझाने में जागृति की मदद की और माँ भी मान गई.
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जागृति ने अपने परिवार को तो मना लिया पर गांव वालों को इस बात के लिए राजी करना बहुत मुश्किल था. वह जानती थी कि गांव का कोई भी पुरुष लड़कियों की पढ़ाई के लिए राजी नहीं होगा. इसलिए उसने गांव की सभी महिलाओं को एक जगह पर विनती करके बुलवाया और अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए समझाने लगी. उसने कहा कि हम नहीं पढ़ सके तो क्या हुआ अपनी बेटियों को जरूर पढाएंगे. उनको आगे बढ़ाएंगे. लेकिन तभी वहां कुछ आदमियों ने आकर इस बात का फिर से विरोध किया. उन्होंने फिर से कहा कि लड़कियां पढ़कर क्या करेंगी. वह अपने पति का घर संभालेगी तो उनके लिए बहुत है.
अपनी जिंदगी में बार-बार यह बात सुनकर जागृति थक चुकी थी. वह सबके आगे आकर चीखकर बोली कि वह कुछ भी कर सकती है. कुछ भी मतलब कुछ भी. यानी पढ़ सकती है, लिख सकती है, सपने देख सकती है, आसमान में उड़ सकती है. जब घर चला सकती है तो देश भी चला सकती है.
सारे मर्द सुनते रहे और जागृति बोलती रही. उसकी आंखों में आज एक अनोखा तेज था, एक जुनून था. उसने महिलाओं की तरफ देखकर आगे बोलते हुए कहा – भेदभाव जुल्म मिटाएंगे, दुनिया नइ बसायेंगे, नई है डगर, नया है सफर, अब हम नारी आगे ही बढ़ते जाएंगे.
उसके बाद पुरुषों के सामने जाकर बोला कि – जीवन की कला को अपने हाथों से साकार कर, नारी ने ही संस्कृति का रूप निखारा है. नारी का अस्तित्व ही सुंदर जीवन का आधार है.
यह सुनकर सारी महिलाओं ने अपने झुके हुए सर को ऊंचा कर दिया वे जागृत होकर एक साथ बोलने लगी –
हाँ हाँ हम पढेंगे, हम भी आगे बढ़ेंगे.
गांव के कुछ मर्द इस बात को लेकर क्रोधित हो गए. बात बिगड़ने ही वाली थी कि जागृति के पति ने आगे आकर बोला कि – जो महिलाओं को इज्जत देगा उसकी अपने आप में इज्जत खुद बढ़ जाएगी.
यह सुनकर गांव के सभी पुरुष शांत हो गए. जागृति के पति ने खुद अपना उदाहरण देकर समझाया कि कैसे वो एक शराबी से एक अच्छा इंसान बना. कुछ लोगों ने इस बात को अपना लिया. गांव की महिलाओं ने खुश होकर अपने-अपने पति को गले लगा लिया. गांव की सारी लड़कियां जागृति के पांव छूने लगी. जागृति ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह कुछ भी कर सकती है, कुछ भी मतलब कुछ भी. लड़कियां अब स्कूल जाने लगी. यह बात आसपास के गांव में फैल गई.
जागृति के पति को अब अपनी पत्नी पर गर्व होने लगा. वे दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे पर ना जाने जागृति के नसीब में और क्या लिखा था. पहली बार वह अपने असली मां-बाप से बिछड़ गई दूसरी बार उसको बेटी समझ कर बड़ा करने वाले मां बाप से दूर हो गई और इस बार उसको अपने पति से बिछड़ कर जाना था.
एक दिन दोपहर को जागृति अपने खेतों में काम कर रहे पति के लिए खाना लेकर जा रही थी, तभी रास्ते में कुछ लोगों ने उसे घेर लिया और उसके साथ जबरदस्ती करने लगे. जागृति का उन लोगों ने शारीरिक शोषण किया और फिर उसे पास की नदी में फेंक दिया.
इधर जागृति के पति को लगा, इतनी देर हो गई, लेकिन जागृति अभी तक खाना लेकर क्यों नहीं आई. इसलिए उसका पति घर की और चल पड़ा. रास्ते में उसे जागृति के कुछ गहने दिखाई पड़े. वह डर गया. वह समझ गया कि जागृति के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है. उसको नदी में फेंकने वाले लोग अभी भी वही थे. उसके पति ने उन्हें देखा तो समझ गया कि जरूर उन लोगों ने ही कुछ किया होगा. वह उनके पास जाकर पूछने लगा की जागृति कहां है तब उन्होंने सारी बात कही. जागृति के पति ने क्रोधित होकर उन लोगों को मार डाला और फिर जागृति के पीछे उसने भी नदी में छलांग लगा दी.
जागृति के नसीब में न जाने और क्या लिखा था. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी वह जिंदा थी. कुछ दिनों के बाद जब उसे होश आया तो वह नदी के किनारे पड़ी हुईी थी. उसकी हालत ऐसी थी कि क्या करूं, कहां जाऊं, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. लेकिन उसे अपने असली पिता मोहनदास की कही हुई बातें याद आई. उसके पिता ने कहा था कि जब इंसान को आगे रास्ता न दिखाई दे तब उसे एक ही दिशा में चलते रहना चाहिए. मंजिल उसे जरुर दिखाई देगी. जागृति ने चलना शुरू किया. कुछ दिनों के बाद चलते-चलते जागृति को एक गांव दिखाई दिया. यह गांव उसका अपना था जहां से वह बरसों पहले बिछड़ गई थी.
जिंदगी भी ना पता नहीं जागृति को किस मोड़ पर ले जा रही थी. नसीब में एक बार फिर जागृति को अपने असली मां-बाप से मिलना लिखा था. जागृति फिर से अपने गांव पहुंच गयी. आज भी वह गांव वैसा ही था जैसे बरसों पहले था. जागृति गांव को देख, गांव की गलियों को देख अचंभित हो गई. उसे महसूस होने लगा कि यह सबकुछ उसने पहले कभी देखा है और अपने दिमाग में लगातार विचार आने के कारण वह फिर से बेहोश हो गई. उसके आसपास लोगों की भीड़ जमा हो गई. कोई आदमी जागृति को अपने घर ले गया और वैद्य जी को बुलाया. उन्होंने कहा कि वह मां बनने वाली है. एक पल के लिए तो वहां खड़े लोग खुश हुए.
पर थोडी ही देर में किसी ने देखा की जागृति के गले में मंगलसूत्र नहीं है और माथे पर सिंदूर भी नहीं है तो लोग बातें बनाने लगे. थोड़ी देर के बाद जब जागृति को होश आया तो गांव के पुरुष बिना सोचे-समझे जागृति को कुलटा स्त्री कहने लगे. वहां खड़ी महिलाओं ने उसे सुनने को कहा लेकिन पुरुष सुने तब ना. जागृति को सारी बात समझ में आ गई. वो उठकर सिधा कुएं में कूद पड़ी. लेकिन उसी समय उसके असली पिता मोहनदास ने उसे बचा लिया और अपने घर ले गए.
वह अपने असली मां बाप के सामने थी, पर वे जागृति को पहचान नहीं पाए. जागृति बहुत रो रही थी. उसे इस कदर रोता हुआ देख उसकी मां उसके पास आई और उसके आंसू पोछे. उसे ऐसे रोता हुआ देख उसकी मां की आंखों से अचानक आंसू निकल आए क्योंकि वह जागृति की जननी थी. उसकी असली मां थी. थोड़ी देर बाद मोहनदास ने जागृति से अपनी ऐसी हालत के बारे में पूछा. तब उसने अपने साथ हुई सारी बातें बताई और फिर रोने लगी. कहने लगी कि वह अब अपने पति के पास क्या मुंह लेकर जाएगी. उसने मर जाना चाहा. तब मोहनदास उसके सर पर हाथ रखते हुए बोले. बेटी जो हुआ वह गलत था. लेकिन इसमें तेरी कोख में पलनेवाले इस बच्चे का क्या दोष.
एक मां अपने बच्चे को जीवन देती है, मौत नहीं. जागृति चाहकर भी अपने पति के पास नहीं जा सकती थी. इसलिए मोहनदास ने अपनी ही बेटी को अपने घर में अपना घर समझकर रहने को कहा और एक बार फिर नसीब जागृति को उसके अपने घर ले आया. मोहनदास और उनकी पत्नी अपनी बेटी को ही बेटी कह कर बुलाने लगे और जागृति भी उन्हें अपने मां-बाप मानने लगी थी.
समय का पहिया घूमता रहा. कुछ महीने बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया. एक बार फिर एक लड़की की कहानी शुरू हुई. जागृति अपने बीते हुए कल को भुलाकर अपनी बेटी की परवरिश करने लगी. मोहनदास ने एक बार फिर अपनी ही बेटी की बेटी का नाम रोशनी रखा. और कहने लगे कि यह रोशनी उनका नाम एक दिन जरुर रोशन करेगी.
एक दिन घर पर कारोबार के सिलसिले में कुछ कारोबारी आए. मोहनदास और वो लोग अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए तरकीबें सोच रहे थे. लेकिन हर सोच के अंत में गलत परिणाम दिखाई दे रहा था. इस बात को लेकर वह परेशान थे जागृति यह सब देख रही थी. उसे अपने पिता मोहनदास को यूँ परेशान होते हुए देखा नहीं गया. वह बिना कुछ सोचे समझे सबके सामने जाकर बोलने लगी. कारोबार को लेकर अच्छे आईडिया देने लगी. मोहनदास और उनके साथी को सारे आईडिया पसंद आए. उनहे बहुत सारा मुनाफा दिखने लगा. सब खुश हुए. जागृति को शाबाशी देने लगे. अपनी बेटी की ऐसी बुद्धि क्षमता को देखकर मोहनदास बहुत खुश हुए और उन्होंने अपनी बेटी को अपने कारोबार में साथ लेने का फैसला किया. कारोबारी भी इस बात को लेकर राजी हो गए.
जागृति अब अपने अतीत को पूरी तरह से भुला चुकी थी. एक बार फिर से उसने सपने देखना शुरू किया. वह बिना पंख के उड़ने लगी. वह अपनी बेटी रोशनी की परवरिश के साथ-साथ दिन रात एक कर अपने पिता के कारोबार को और आगे बढ़ाने लगी. दुनिया में उसका नाम हुआ. मोहनदास का कारोबार आसमान को छूने लगा.
जब दुनिया बोलती थी, तो वह अकेली सुनती थी. और आज जब वह अकेली बोलती है, तो पूरी दुनिया उसे सुनने लगी.
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यह बात आस-पास के गांव में फैलने लगी. अब महिलाएं अपने घरों में अपने पति के सामने बोलने लगी थी. स्त्री हठ के आगे एक मर्द हारने लगा. एक दिन ऐसा आया कि गांव के एक घर से एक महिला अपनी बेटी को तैयार कर हाथ में किताबों का झोला पकड़कर स्कूल ले जा रही थी. तभी उसके पीछे पीछे गांव की सभी महिलाएं अपनी बेटियों को लेकर स्कूल जाने लगी. गांव के मर्द चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए. लड़कियां अब पढ़ने लगी थी.
मोहनदास यह सब देखकर गांव में नाचने लगे. गांव के सारे लोग मोहनदास को सिर्फ देखते रहें, बस देखते ही रहे. मोहनदास और जागृति ने पैसे लगाकर गांव को गांव से शहर बना दिया. गांव के मर्दों को अपनी भूल का एहसास हुआ. वह मोहनदास के घर गए और माफी मांगने लगे. उन्होंने सच्चाई बताई कि उन्होंने ही वर्षों पहले उनकी बेटी को नदी में फेंक कर मार डाला था. जबकि वही लड़की आज उनके सामने सर उठा कर खड़ी है.
समय के चक्रव्यूह में लोग फंसते गए. मैंने पहले भी लिखा था कि अच्छे कामों में भगवान भी अपना साथ देते हैं. मोहनदास ने जब यह बात सुनी तो उन्हें जोर का झटका लगा. उनकी आंखों से आंसू ऐसे निकलने लगे, जैसे नदी बह रही हो. मोहनदास को यूँ रोते हुए देख गांव के सारे मर्दों ने अपना सिर झुका दिया. वहा खड़ी महिलाएं भी रोने लगी. मोहनदास रो रहे थे. तब अपने पिता के आंसू पोछने जागृति ने अपनी बेटी रोशनी को अपने दादा के पास भेजा. तब रोशनी को देखकर मोहनदास ने कहा कि कौन कहता है कि मेरी बेटी मेरे पास नहीं है. उन्होंने रोशनी के सर को चूमा और गांव वालों को माफ कर दिया. उन्होंने कहा कि
तकदीर ने मुझसे मेरी एक बेटी छीनी है, लेकिन बदले में दो – दो बेटियां दी हैं. मोहनदास अपनी दोनों बेटियों को लेकर अपने घर में चले गए.
जागृति अपनी बेटी को एक डॉक्टर बनाना चाहती थी. इसलिए वह अपने परिवार को साथ लेकर विदेश जा रही थी. जिस जिंदगी ने जागृति को अपने मां बाप से जुदा किया था. उसी जिंदगी ने जागृति को फिर से अपने मां-बाप से मिलवाया. और आज वही जिंदगी उसे अपने पति से मिलवाने जा रही थी. उसने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा. नसीब में एक बार फिर पति-पत्नी का मिलना लिखा था. उसका पति आज तक उसे पागलों की तरह सड़कों पर ढूंढता फिरता है. उसकी हालत एक भिखारी के जैसी हो गई है. फटे हुए कपड़े, लंबे-लंबे बाल, भूख से बेहाल हो चुका है. लेकिन फिर भी जागृति की तस्वीर लेकर वह लोगों को पूछता फिरता है कि किसी ने इस लड़की को देखा है कहीं.
लोग जब तस्वीर देखते तो वह पहचान जाते थे कि वह जागृति है. लेकिन भिखारी और पागल जैसे दिखने वाले इंसान पर कौन भरोसा करता. आज भी वह ऐसे ही सड़कों पर घूम रहा था. संजोग से गाड़ी में जाती हुई जागृति ने अपने पति को देख लिया. उसने तुरंत ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा और गाड़ी से उतरकर वह अपने पति के पीछे भागने लगी. लोगों को जागृति को ऐसे भागते हुए देख आश्चर्य हुआ. उसने दौड़कर अपने पति को पकड़ लिया.
कुछ समय तक वह दोनों एक दूसरे को देखते रहे. उसका पति बस उसे देखता ही रहा और वह दोनों एक दूसरे के गले लग गए. लोग इस दृश्य को देखकर हैरान रह गए. एक भिखारी और पागल जैसे दिखते हुए इंसान को जागृति को गले लगाते हुए देख लोग जागृति को पागल मानने लगे. हमारे समाज के लोग भी ना पता नहीं क्या – क्या सोचते रहते हैं. जागृति का पूरा परिवार वहां खड़ा था. लोग भी वहां खड़े थे. कुछ देर के बाद पता चला कि वह दोनों पति- पत्नी है.
लोगों को और आश्चर्य हुआ. लगा कि आसमान को छूने वाले घर में रहने वाली लड़की एक भिखारी और पागल जैसे दिखने वाले इंसान की पत्नी है. मोहनदास अपनी बेटी के पति को देखकर बहुत खुश हुए. लेकिन देखते ही देखते उसके पति ने इतने सारे लोगों के बीच जागृति को थप्पड़ मारा और पूछा कि इतने सालो तक वो कहां थी. उसे एक बार भी अपने पति की याद नहीं आई. क्या सोचकर वह अपने पति के पास नहीं आई. क्या उसे इतना भी विश्वास नहीं था कि उसका पति ऐसे समय पर उसका साथ नही देगा पर फिर भी विश्वासघात किया. कितने साल तक वो पागलो की तरह ढूंढता रहा उसको. उसने कहा कि समाज उसके साथ नहीं था पर उसका पति तो उसके साथ था ना.
जागृति यह सुनकर रोते हुए उसके पैरों में गिर पड़ी. तब उसका पति उसे कहता है कि उसे पेंरो में नहीं पर बराबरी का स्थान दिया था. वह जागृति को खड़ा करता है और रोशनी को अपनी बाहों में ले लेता है. तब जागृति उसको रोते हुए गले लगा लेती है.लोग यह सब कुछ देखते रहते हैं.
जागृति अपने पति को अपने साथ अपने घर ले जाती है. नौकर चाकर होने के बावजूद अपने पति के लिए अपने हाथों से खाना बनाती है. उसे अपने हाथों से खिलाती भी है. यह देख पति की आंखों से आंसू निकल आते हैं. जागृति आंसूओं को पोछती है और खुद रोती है. अपनी बेटी को उसके पति के साथ खुश देखकर मोहनदास बहुत खुश होते है.
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. जागृति का पति उसे वापस गांव ले जाना चाहता था. और जागृति उसके पूरे परिवार के साथ अपने ससुराल चली. बरसों के बाद वह अपने परिवार से मिली. सच्चाई मालूम होने के बावजूद उसकी सास ने उसको स्वीकार किया. क्योंकि वह खुद एक स्त्री थी, एक भारतीय नारी थी. कुछ दिन अपने ससुराल में बिताने के बाद वह अपने मायके चली.
अब जागृति को उसके असली मां-बाप से मिलने का समय आ चुका था.जागृति अपने परिवार के साथ मायके आई उसको पाल पोस कर बड़ा करने वाले मां बाप से मिली. जागृति उन्हें जन्म देने वाले माता पिता समझकर धन्यवाद देने लगी. तब जाकर लकड़हारे ने कहा कि वो उसकी बेटी नहीं हे, वह तो उसे नदी में डूबती हुई मिली थी. तब जाकर जागृति को पता चला कि मोहनदास ही उसका असली पिता है. मोहनदास एक बार फिर से रो पडे. बरसों से बिछड़ा हुआ परिवार आज पूरा हुआ.
जागृति इतनी सारी मुश्किलें आने पर भी हारी नहीं. हर मुश्किल का डटकर सामना करते हुए वह आगे बढ़ती गई. वह एक सच्चे पिता की सच्ची बेटी बनी, एक पति की सच्ची पत्नी बनी, एक बेटी की सच्ची मां बनी. इतना ही नहीं वह एक सच्ची भारतीय नारी भी बनी. इस महान
देश में सीता, सावित्री और दमयंती जैसी नारियां हुई हैं. इसलिए सच ही कहा गया है:
महिलाओं को दो इतना मान, की बढ़े भारत देश की शान
यह कहानी हमें वाल्मीकि दीपक ने भेजी है. कहानी भेजने के लिए उनका धन्यवाद!
वाल्मीकि दीपक का ईमेल है: [email protected]
vishal says
Very Nice storrrrrrrrry
amarnath says
hi, nice article. Thanx for sharing with us.
harshadkumar says
Saras
nakul says
Good but long
Darpan says
Good dipak.well done
khalid says
Nice
faizal says
Bahaut khub dipak
hiren says
Nice story
Sneha says
Superb
Jayanti says
Saras
shyam says
nice dipak
Pritesh says
Oh good!
vikram says
Very nice
Puran Mal Meena says
बहुत ही बढ़िया ब्लॉग बनाया है आपने, धन्यवाद
Anil says
Great
Santosh Talpada says
Nice story from Dipak valmiki.
Sachme bahut hi achche vichar Hain. Bahut hi kabiletarif hain.