यह कहानी कर्नाटक एक प्रसिद्ध संत श्री चिदंबर दीक्षित के जीवन से जुड़ी है.
एक बार एक महिला जो निःसंतान थी उनसे ‘माँ ‘बनने का आशीर्वाद लेने पहुँची. पंडित दीक्षित ने उस महिला को दो -तीन मुट्ठी चने देकर एक कोने में बैठने को कहा. कुछ देर बाद पंडित दीक्षित जी ने देखा कि सड़क पर खेलते हुए कुछ बच्चे उसके पास आये और उस महिला से चने मांगा. लेकिन महिला ने अपनी मुंह दूसरी तरफ फेर ली. बेचारे बच्चे कातर भाव से उसकी ओर देखते रहे.
यह दृश्य देखकर पंडित दीक्षित उस महिला से बोले -“ जब तुम मुफ्त में मिले चनों को बाँटने में इतनी कठोरता दिखा सकती हो तो भगवान से यह कैसे आशा करती हो कि वे अपनी एक प्यारी आत्मा को तुम्हारे घर भेज देंगे. पहले अपने में ममता और करुणा लाओ, जब सही पात्रता तुम्हारे अंदर आएगी तभी परमात्मा का अनुदान भी तुम्हे मिले पायेगा.’
उस महिला की आँखे खुल गईं और उसने अपना आत्म परिष्कार करने का वचन पंडित दीक्षित को दिया.
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