अंतिम समय सीमा या डेडलाइन तय करें Decide Your Deadline
आख़िरी समय-सीमा को इंग्लिश में डेडलाइन (deadline) कहते हैं. इस पोस्ट “अंतिम समय सीमा या डेडलाइन तय करें” में हम यह जानने का प्रयास करेंगे किस प्रकार हमें अपना Deadline तय करना चाहिए.
आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि इस काम का डेडलाइन फलां तारीख है. दरअसल पुराने ज़माने में किसी जेल के चारों ओर खिची उस लाइन को डेडलाइन कहा जाता था, जिसके आगे जाने पर कैदियों को गोली मार दी जाती थी. आजकल डेडलाइन पार करने पर आपकी जान तो नहीं जाती, अलबत्ता आपकी प्रतिष्ठा और करियर में तरक्की के अवसर जरूर चले जाते हैं. इसलिए डेडलाइन को गंभीरता से लेना चाहिए. माइकल एस. ट्रेलर के अनुसार यदि आख़िरी मिनट की डेडलाइन नहीं होती, तो बहुत सारी चीजें कभी नहीं हो पातीं.
अपना डेडलाइन खुद बनायें
हम में से अधिकाश लोग या खासकर स्टूडेंट्स ऐसे भी होते हैं जिन्हें कोई दूसरा deadline नहीं देता है ऐसे में बेहतर यही रहता है कि आप खुद ही अपनी पढाई या काम के लिए डेडलाइन निश्चित कर लें. यह सोचें कि कोई काम कितने समय में किया जा सकता है, आपातकालीन स्थितियों के लिए थोड़ा Margin रखें और अपनी डेडलाइन यानि काम पूरा करने की आख़िरी तारीख तय कर लें. शुरूआत में आपको थोड़ी कठिनाई आ सकती है, लेकिन कुछ समय बाद आपको डेडलाइन के भीतर और उससे पहले ही काम पूरा करने की आदत पड़ जाएगी. डेडलाइन तय करना एक ऐसी लाभकारी आदत है, जिससे आप जीवन के हर क्षेत्र में ज्यादा तेजी से तरक्की कर सकते हैं.
आख़िरी डेडलाइन में ऐसा क्या होता है, जिससे आपकी क्षमता बढ़ जाती है और आप ज्यादा तेजी से काम पूरा कर लेते हैं? देखिये पहली बात यह है कि इससे आपको एक स्पष्ट लक्ष्य मिलता है और हम सभी जानते हैं कि स्पष्ट लक्ष्य होने पर हम ज्यादा तेज़ काम कर सकते हैं. दूसरे, इससे आप एक योजना बनाते हैं और उस पर चलने के लिए खुद को अनुशासित करते हैं. तीसरे, डेडलाइन उस काम पर आपके दिमाग को केन्द्रित रखती है, जिससे आप उसे समयसीमा में पूरा करने के नए-नए तरीके सोच सकते हैं.
डेडलाइन और एकाग्रता
आपने खुद अपने जीवन में महसूस किया होगा कि जब आपको डेडलाइन दे दी जाती है कि यह काम अमुक समय तक हो जाना चाहिए, तो आपकी हर इन्द्रिय सक्रिय हो जाती है. आपके भीतर एड्रीनलीन का स्राव हो जाता है और आपका आलस भाग जाता है. आप सक्रिय हो जाते हैं और पूरा ध्यान केन्द्रित करके काम में जुट जाते हैं. आप जानते हैं कि अगर वह काम समय पर नहीं निबटा, तो आफत हो जाएगी, इसलिए आप सुबह थोडा जल्दी उठते हैं, पूरी एकाग्रता से काम करते हैं, देर रात तक काम करते हैं, कम सोते हैं, कम समय बर्बाद करते हैं और आख़िरकार उस काम को समय पर पूरा कर देते हैं. रोबर्ट ब्राउनिंग के अनुसार केवल वही युद्ध मूल्यवान होता है, जो इंसान अपने साथ करता है.
आइये इसे एक उदहारण से समझने की कोशिश करते हैं. मान लिया कि सामान्य स्थिति में आप छह मिनट में एक किलोमीटर दौड़ते हैं. लेकिन अगर कोई खूंखार कुत्ता आपका पीछा कर रहा हो, तो आप कितनी तेजी से भागेंगे? जाहिर है, आप छह मिनट से बहुत कम समय में एक किलोमीटर की दूरी पूरी कर लेंगे; आपके पीछे खूंखार कुत्ता जो है. डेडलाइन को भी ऐसा ही खूंखार कुत्ता मानें, जो आपसे ज्यादा तेजी से काम करा लेती है.
डेडलाइन और आपकी क्षमता
मेरा एक मित्र पुस्तकों का संपादन करता है| अगर उसे बिना किसी डेडलाइन के पुस्तक के संपादन की जिम्मेदारी सौंपी जाए, तो काम डेढ़ महीने में पूरा होता है, लेकिन अगर उसे सात दिन की डेडलाइन दे दी जाए, तो वह उसे दस दिन में ही पूरा कर देता है. इस उदहारण से यह स्पष्ट हो जाता है कि महत्वपूर्ण क्षमता नहीं है; महत्वपूर्ण तो डेडलाइन है. दरअसल उसमें वह काम दस दिन में पूरा करने कि क्षमता है, लेकिन वह इसे डेढ़ महीने में इसलिए पूरा करता है, क्योंकि कोई डेडलाइन नहीं है. बात क्षमता कि नहीं, समर्पण और लगन की है.
बीमा कम्पनियाँ डेडलाइन के हथकंडे को बखूबी आजमाती हैं. वे विज्ञापन देती हैं कि अमुक बीमा योजना एक महीने बाद बंद हो रही है. अगर इसका लाभ लेना है, तो तत्काल पालिसी ले लें. कार कम्पनियाँ भी डेडलाइन का महत्व पहचानते हुए विज्ञापन देती हैं कि अमुक तारीख से कीमतें बढ़ने वाली हैं: अगर कभी कार खरीद लोगे, तो फायदे में रहोगे| ग्राहक अपने फायदे को देखते हुए बीमा पालिसी या कार खरीद लेता है. एस तरह हम देखते हैं कि डेडलाइन सिर्फ काम करने का ही नहीं, सामान बेचने का भी अनोखा पैंतरा है. जब आप ग्राहक को बता देते हैं कि अमुक तारीख डेडलाइन है, तो वह उस तारीख तक निर्णय लेने के लिए मजबूर हो जाता है, वरना यह सत्य है कि ग्राहक से निर्णय करवाना आसान नहीं होता.| अगर डेडलाइन न दी जाए, तो शायद वह जिन्दगी भर निर्णय नहीं ले पाएगा.
क्या डेडलाइन गुणवत्ता को प्रभावित करता है?
कुछ लोग यह मानते हैं कि डेडलाइन से काम की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है. उनकी बात कुछ हद तक सही है, लेकिन यह तभी सही होती है, जब आख़िरी मिनट पर काम शुरू किया जाए. दूसरी ओर, अगर डेडलाइन के आधार पर पहले से ही योजना बना ली जाए, तो काम की गुणबत्ता में कोई कमी नहीं आएगी. मान लें कि एक सेल्समैन 100 deals करने के लिए एक महीने की डेडलाइन बनाता है. अब अगर पच्चीस दिन बर्बाद करने के बाद जाकर उसे होश आता है और वह काम में जुटता है, तो उसे हर दिन 20 सौदे करने होंगे, जो बहुत मुश्किल कार्य है. दूसरी ओर, अगर वह महीने के पहले दिन से ही एस काम में जुट जाए, तो उसे हर दिन केवल 3-4 deals ही करने होंगे, जो तुलनात्मक रूप से easy है.
आइये आज से हम किसी भी काम को उसका डेडलाइन तय करने की शपथ लेते हैं. इसके महत्व को पहचाने और उसका उपयोग करके अपनी क्षमता व गति को बढ़ा लें. खास कर स्टूडेंट्स अपनी पढाई के लिए हर subjects के chapters का एक deadline तय कर लें कि अमुक दिन तक इस चैप्टर को लर्न कर लेना है तो एग्जाम के समय उन्हें ज्यादा पढने या स्ट्रेस लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
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