मुझे याद आता है अपना बचपन। मैं अपने बचपन के दौर में था और कपिल पाजी अपने करियर के सर्वोच्च शिखर पर थे। वे उस समय हमारे सबसे बड़े रोल मॉडल थे। प्रस्तुत पोस्ट dil se khela to hit wicket दिल से खेला तो हिट विकेट में हम दो पहलुओं पर विचार करेंगे। एक है दिल और दूसरा है दिमाग।
चाहे वह कोई भी खेल हो, दिल से काम नहीं चलेगा। दिमाग भी लगाना पड़ता है। कपिल पाजी के कालखंड के बाद हम दो खिलाड़ियों का जिक्र करना चाहेंगे। एक सौरव गांगुली यानी दादा और दूसरा महेंद्र सिंह धोनी।
हमने बहुत सारे मैच देखे या फिर सूने हाइओन जिसमें विदेशी टीमें जैसे ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज, पाकिस्तान हमारी जमीन पर आकर हमें हराकर चले जाते थे। कुछ विदेशी खिलाड़ी हमारे खिलाड़ी की स्लेजिंग करते थे और हमारे प्लेयर शांत रहते थे।
फिर आया दादा का दौर। अब भारतीय टीम भी प्रॉफेश्नल हो चुकी थी। ऑन ग्राउंड और ऑफ ग्राउंड दोनों जगहों पर। अगर दादा का अग्रेशन याद करना हो तो नेटवेस्ट के फ़ाइनल को याद कीजिये। जीत मिलने पर कैसे अपनी जर्सी को गोल घुमाकर फेंका था। उसके बाद टीम पूरी तरह से बदल चुकी थी।
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बाद में कैप्टन कूल यानी धोनी ने नई इबारत लिख डाली। टी20 वर्ल्ड कप जीते, वर्ल्ड कप जीते और पता नहीं क्या क्या रेकॉर्ड बने। धोनी ने दिल से ज्यादा दिमाग लगाया और दिल से खेला तो हिट विकेट को पूरी तरह से बदल कर नया लाइन लिखा – शांत रहो, दिमाग लगाओ और परिस्थिति के हिसाब से रणनीति बनाओ। आप इस चीज को अपने जीवन में भी लागू कर सकते हैं।
हमारे देश भारत की जमीन बहुत उर्वर है। यहाँ प्रतिभावान खिलाडियों की कोई कमी नहीं है। सिर्फ जरुरत है उनको ढूंढ़कर मौका देने की। आज सरकार भी फिट इंडिया मूवमेंट चलाकर न केवल क्रिकेट बल्कि सभी खेलों को आगे बढ़ाना चाहती है।
अगर दिल से खेला तो हो जाओगे हिट विकेट यानि सिर्फ दिल से काम नहीं चलेगा दिमाग भी लगाना पड़ेगा। सरकार, बीसीसीआई, उद्योग जगत और आम जनता को साथ आकर खेलों के विकास के लिए काम करना होगा। आज हमारे देश के खिलाड़ी सबसे बड़े रोल मॉडल बनकर उभर रहे हैं। पहले युवा जन बॉलीवुड के कलाकारों को भी अपना नायक मानते थे लेकिन ड्रग कांड और अन्य नकारात्मक चीजों के सामने आने के बाद उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है।
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दूसरी ओर राजनेताओं पर जनता का विश्वास लगातार घटता जा रहा है। राजनेताओं का चाल, चेहरा और चरित्र गिरगिट की तरह लगतार बदलता रहता है। राजनीति में अपराधी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सत्ता और पद पाने के लिए ये लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ऐसे यहाँ भी जनता जनार्दन को दिल से खेलकर हिट विकेट होने की जरूरत नहीं है बल्कि दिमाग से सोचकर सही उम्मीदवार को चुनना चाहिए।
अंत में सिर्फ इतना ही कहना है कि सारी ज़िम्मेदारी खिलाड़ियों पर आ गई है। उनको अपने आचरण से देश में सकारात्मक माहौल और युवाओं के पाठ प्रदर्शन का काम करना होगा। युवराज सिंह का कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को हराकर खेल में वापसी करना कई पाठ्य पुस्तकों का अंश बना क्योंकि वह हमें कठिन समय में हिम्मत न हारने की सीख देता है। तो आइये दिल से न खेलकर दिमाग से भी काम लीजिये। धन्यवाद!
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