Pollution and its Impact Hindi Article प्रदूषण और उसके प्रभाव हिंदी लेख

Pollution and its Impact Hindi Article
प्रस्तुत पोस्ट Pollution and its Impact Hindi Article में हम प्रदूषण और उसके प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे. वातावरण में प्राकृतिक रूप से विद्यमान प्रत्येक घटक एक संतुलित वातावरण बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान करता है, किन्तु आज विकास के युग में इन घटकों की मात्रा और अनुपात में काफी बदलाव आया है. वातावरण में अनावश्यक तत्वों की वृद्धि तथा आवश्यक तत्वों की कमी को प्रदूषण या Pollution कहा जाता है. प्रदूषक दो प्रकार के होते हैं –
1.जैव – क्षयकारी प्रदूषक (Biodegradable pollutants) – ये वे प्रदूषक है जो प्रकृति में कुछ समय बाद सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित किया जाता है.
2. जैव – अक्षयकारी प्रदूषक (Non-biodegradable pollutants) – इनका जैविक विघटन नहीं होता है; अतः ये प्रदूषक कई साल तक प्रकृति में पड़े रहते हैं. जैसे – प्लास्टिक, डी.डी.टी., पारा आदि.
प्रदूषण के प्रकार
1. वायु प्रदूषण (Air pollution):
वायु प्रदूषण मुख्य रूप से कारखानों, उद्दोगों के धुएं ,वाहनों के धुएं (जिसमें कार्बनमोनोऑक्साइड (CO) तथा लेड (Pb), H2S, SO2 बहुत ही जहरीली गैसें हैं), सड़कों पर चलनेवाले वाहनों, जेट विमानों द्वारा छोडी गई गैसों आदि कारणों से होता है. वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता हा. शीशा (Pb) से तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग हो जाते हैं. कैडमियम रक्त दाब बढ़ा देता है जिससे हृदय संबंधी रोग होता है. सिलिका के कण लौह अयस्क के कण से मिलकर लोहे की खानों में काम करने वाले मजदूरों में लौह– सक्रियता रोग पैदा करते हैं. एक चौथाई खान श्रमिक इस रोग से पीड़ित होते हैं. स्मोग (smog) में Hydrocarbon तथा नाईट्रोजन के आक्साइड पाये जाते हैं. स्मोग से फसलों को नुकसान होता है.
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ओजोन (O3 ) गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणों (Ultraviolet-rays ) को पृथ्वी पर आने से रोकती है. पराबैंगनी किरणें जीवों के लिए घातक होती हैं. किन्तु हाल ही में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अन्टार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन–स्तर से छिद्र हो गया है. ओजोन छिद्र का मुख्य कारण क्लोरो–फ्लोरोकार्बन या सी.एफ.सी. (Chlorofluoro carbons या CFCs ) है जो रेफ्रीजरेटर, एयर–कंडीशन आदि में प्रयोग की जाती है. मथुरा तेल–शोधक कारखाने से निकलने वाली सल्फ्यूरिक ऑक्साइड (SO2) गैस से आगरा का ताजमहल धूमिल पड़ता जा रहा है. आर्सेनिक (Arsenic) के द्वारा पशुओं का चारा विषाक्त हो जाता है.
ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse effect)
वायुमंडल में बढती हुई गैसें जैसे –कार्बन डाई ऑक्साइड(CO2), कार्बनमोनोऑक्साइड (CO) ,सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) वायुमंडल की ऊपरी सतह पर जमकर पृथ्वी का तापमान बढ़ाती है. इसे ग्रीनहाउस प्रभाव कहते हैं. ये गैसें पृथ्वी से वापस लौटने वाली अवरक्त किरणों को रोककर वातावरण को गर्म करती हैं. यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहेगा तो ध्रुवों की बर्फ पिघलकर समुद्रतल को ऊंचा कर देगी जिससे समुद्र के किनारे बसे शहर डूब जायेंगे.
2. जल प्रदूषण (Water Pollution):
जल प्रदूषण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं – वाहितमल (Sewage) औद्योगिक–त्याज्य (Industrial waste ), घरेलू अपमार्जक (domestic detergents) हानिकारक वनस्पतियाँ, खाद, खरपतवारनाशी (herbicides),कीटनाशी (pesticides) रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive substance) इत्यादि. उद्योगों से निकले प्रदूषकों में शीशा, पारा, तांबा, जस्ता, सल्फाइड आदि होते हैं जो जल को विषाक्त बनाते हैं. जापान में पारे (Mercury) के कारण ‘मिनामता’ (Minamata) नामक रोग होता है.
बायोमैग्निफिकेसन (Biomagnification) – खाद्य – श्रृंखला के क्रम में कुछ पदार्थों की मात्रा बढती रहती है; जैसे – BHC, DDT, 2,4-D, 2-4-5-T बेन्जीन आदि. समुद्री प्राणियों में ये अधिक एकत्र होते है जिससे मछलियों की मृत्यु हो जाती है.
सुपोषण (Eutrophication) – कुछ जलीय पौधे नाइट्रोजन और फास्फोरस के अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के कारण अधिक वृद्धि करके स्थ पर फैल जाते हैं. इसे जल–प्रस्फुटन (Water bloom) कहते हैं. इन पौधों की मृत्यु से अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ मुक्त होते हैं. इसे सुपोषण कहते हैं. इस कार्बनिक पदार्थ का अपघटन करने के लिए अधिक संख्या में जीवाणु एकत्र होकर ऑक्सीजन की कमी कर देते हैं जिससे वहाँ की मछलियाँ मर जाती है.
3. मृदीय प्रदूषण (Soil Pollution):
खेतों में खरपतवार नष्ट करने वाले खरपतवारनाशी (herbicides), कवकनाशी (fungicides), कीटनाशी (insecticides), चूहामारक (rodenticides), उर्वरक इत्यादि के अवशेष मृदा प्रदूषण बढ़ाते हैं.
4.ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution):
सामान्य वार्तालाप का श्रवण स्तर 60 डेसीबल होता है लेकिन अक्सर गाड़ियों के तेज हॉर्न, तेज लाउडस्पीकर की आवाज, डी जे की ध्वनि, हवाई जहाज का शोर इत्यादि ध्वनि–प्रदूषण के मुख्य कारण हैं. अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार ध्वनि स्तर 45 डेसीबल होनी चाहिए. ज्यादा शोर पैदा करनेवाले मिल या फैक्ट्री के कामगार को कम सुनाई देता है या वे बहुत ऊँचा सुनते हैं.
प्रदूषण नियंत्रण (Control of Pollution)
प्रदूषण रोकने के लिए गन्दे जल को नदियों में प्रवाहित नहीं करना चाहिए. सीवेज को सीवेज ट्रीटमेंट से शुद्ध करना चाहिए. वाहनों का रख–रखाव उचित ढंग से किया जाय जिससे वे अधिक धुँआ न दें. उद्योगों में जहाँ कोयला जलाया जाता है धुएं को फिल्टर करके निकालना चाहिए. कीटनाशी के उपयोग पर नियंत्रण करना चाहिए. भारत सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा कानून (1986) में बनाया है उसे उचित ढंग से लागू किया जाय. अधिक वन लगाने चाहिए जिससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाई ऑक्साइड की अधिकता न हो.
आज विश्व के कई देश विभिन्न तरह के प्रदूषणों की समस्या से जूझ रहे हैं. भारत के कई बड़े शहर दिल्ली, लखनऊ, पटना, मुंबई के वायु प्रदुषण का स्तर इतना ज्यादा है कि यह रहने के लिया अनुपयुक्त होता जा रहा है. दिल्ली सरकार ने प्रदुषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए हाल ही में odd-even Formula लगाया जिसमे odd number plate वाली गाड़ी odd days में और even number plate वाली गाड़ी even days में चली. यह प्रयोग तो सफल रहा लेकिन कई और स्तर पर प्रयास करना होगा. संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक अन्तराष्ट्रीय संस्था “संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम” (United Nation Environmental Programme) की स्थापना की है. इसका मुख्यालय केन्या की राजधानी नैरोबी है. पर्यावरण के प्रति जागरूकता हेतु प्रतिवर्ष 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस ‘ मनाया जाता है.
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Pollution ke awareness ke lite jitna likha jaaye kam hai. Good post Pankaj ji!