पर्यावरण Environment व्यक्ति के आस-पास की वह स्थान या परिस्थिति है जिसका व्यक्ति के अस्तित्व, जीवन-निर्वाह, विकास आदि पर प्रभाव पड़ता है. सामान्य अर्थों में आप इसे ‘वायुमंडल’ भी कह सकते हैं. ऐसे पर्यावरण को अंग्रेजी में Environment कहा जाता है.
वायुमंडल प्रकृति का वरदान
हमारा वायुमंडल हमारे लिये प्रकृति का वरदान है. यह हमारा पालनकर्ता और जीवन का आधार है. हमें स्वस्थ और सुखमय रखने का रक्षा कवच है. आप यह सोचकर देखिये कि यदि आपका यह रक्षा कवच ही यदि यह विषाक्त हो जाए तो यह अभिशाप बनकर मानव-जीवन का संहारक बन जाता है. इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा का दायित्व हम सबका है.
आजादी से पहले जब बड़े-बड़े उद्दोगों का विस्तार नहीं हुआ था, हमारा पर्यावरण Environment बिलकुल शुद्ध था. शुद्ध वायु हमारा आलिंगन करती थी. शुद्ध जल हमारा अभिषेक करता था. उर्वर भूमि हमें स्वास्थ्यप्रद अन्न प्रदान करती थी. जीवन में न अधिक भाग –दौड़ थी, न हाय-हाय. संतुष्टि पूर्ण शान्तिप्रद जीवन हम सबके लिये पर्यावरण का वरदान था.
शस्य श्यामला धरती और हम
भारत भूमि शस्य श्यामला थी, वन उपवनों से हरी- भरी थी. वे पेड़-पौधों, वृक्ष-लताओं से समृद्ध थी, इसलिए वायुमंडल शुद्ध था. हवा की पावन सुगंध जन-जीवन को सुरभित कर रही थी. जनसंख्या बढी. इसकी गति तीव्र हुई. इस बढी हुई जनता के निवास के लिए भूमि चाहिए थी. दूसरी ओर, बढती जनसंख्या की भूख मिटाने और अधिकाधिक सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए उत्पादन बढ़ाने की जरूरत थी. उत्पादन बढ़ाने के लिए कारखाने, फैक्ट्रियां तथा औद्दोगिक संस्थान स्थापित किए गए. इनके लिए भूमि की मांग हुई. इसकी मांग पूरी की वन-उपवनों ने, खेत-खलिहानों ने. जहाँ भूमि शस्य श्यामला थी, वहाँ गगन चुम्बी इमारतों का निर्माण हो गया, भूमि को skyscrappers से भर दिया, वायु मार्ग को अवरुद्ध कर दिया और हमने प्राणदायिनी वायु को अपने ही हाथों कुछ सीमा तक अवरूद्ध कर अपने लिए अनेक असाध्य रोगों को निमन्त्रण दे दिया.
बढ़ता उद्योग और पर्यावरण Environment
जन-सुख-सुविधा के लिए आद्योगिक संस्थानों नई वैज्ञानिक प्रौद्दोगिकी ने उत्पादन तो बढ़ाया, किन्तु पर्यावरण को तीन रूपों में प्रभावित कर दिया. (1) कारखानों की चिमनियों से जो धुआँ निकला, उसने वायु को प्रदूषित कर दिया. उत्पादन के अवशेष तथा व्यर्थ पदार्थों को जलाया और भराव के काम लिया गया. दोनों ने वायु को प्रदूषित किया (2) उद्दोगों के दूषित रासायनिक द्रवित पदार्थ को पास की नदी में प्रवाहित कर दिया. जिससे पेय-जल दूषित हो गया.(3) वन के वृक्ष कटने से मौसम का मिजाज बिगड़ा, वर्षा का वर्शन बे – समय हुआ. वर्षा का जल जो पहले वृक्षों के कारण बहने से रूकता था, बेरोकटोक बहने लगा, फलत: भूमि की उर्वरा शक्ति घटने लगी. कुछ औद्दोगिक उत्पादनों के लिए वनों का भी निर्ममता ने विनाश किया गया. इससे भी पर्यावरण दूषित हुआ.
वायु प्रदूषण और पर्यावरण Environment
वायु प्रदूषण का प्रथम कारण था वन-उपवन की कटाई. कटाई का कारण था जनसंख्या की वृद्धि के साथ निवास के लिए भवनों का निर्माण और औद्दोगिक संस्थानों की स्थापना. इसलिए वायु प्रदूष्ण रोकने के लिए जनसंख्या वृद्धि को रोकना हमारा कर्तव्य होना चाहिए. दो से अधिक बच्चे उत्पन्न करना, अपराध मानना होगा. दूसरी ओर, औद्दिगिक संस्थानों को शहर से बाहर, आबादी से दूर स्थानान्तरित करवाना होगा. उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालयों के निर्णयों के मानने के लिए बाध्य करना होगा. तीसरी ओर, औद्दोगिक कचरे का वैज्ञानिक हल ढूँढवाना, हमारी जिम्मेदारी है.
वाहनों के पाइपों से जो गैस सरे-आम जीवन में विष घोल रही हैं, उनको रोकें. हम अपने वाहनों को ’प्रदूषण -मुक्त’ प्रमाण-पत्र मिलने पर ही चलें. धूम्रपान जो हमारे शौक की विवशता है, उसे यथासम्भव कम करें. प्रदूषित स्थलों पर नाक पर रूमाल रखने का स्वभाव बनाएँ.
वनीकरण समय की मांग
भूमि को पुनः उर्वर बनाना होगा. इसके लिए वन-उपवनों का विकास करना होगा तथा वनों के विनाश को रोकना होगा. असंख्य पेड़-पौधों लगाकर उनको पल्लवित-पुष्पित करना हमारा दायित्व होगा. राजमार्गों तथा अत्यधिक व्यस्त मार्गों के बीच या दोनों ओर जैसे भी संभव हो. वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित करवाना भी हम अपना धर्म समझें. जब भी एक पेड़ काटें उसके स्थान पर पहले एक पेड़ जरुर लगा दें.
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जीवन की दूसरी आवश्यकता है, जल औद्दोगिक-संस्थानों ने तो जल को विषाक्त किया ही, किन्तु हमने अपनी अव्यवस्था से भी जल को दूषित कर दिया, कपड़े-बरतन-हाथ धोने, स्नान करने तथा फर्श साफ करने पर जो अशुद्ध जल बहता है, उसे हमने पास के जाल स्रोत में बहा दिया. उसमें अपना मल और मूत्र भी प्रवाहित करते रहे जिससे जल और भी प्रदूषित हो गया.
बिन पानी सब सून
शुद्ध-जल पीने को मिले, यह हमारा अधिकार है, पर जल प्रदूषण से बचना भी हमारा दायित्व है. शहर के गन्दे जल का पास की नदी में प्रवाहित करने के स्थान पर आबादी से दूर उसके विसर्जन की व्यवस्था करवानी होगी. दूसरे, औद्दोगिक रासायनिक द्रव को जल में प्रवाहित करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगवाना होगा. तीसरे, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा जल के परिशोधन को निश्चित करना होगा. चौथे, जल के अपव्यय को रोकें तथा पेय जल को फिल्टर करके या उबाल कर प्रयोग में लाएं.
ध्वनि प्रदूषण और हमारा जीवन
पर्यावरण को प्रदूषित करने का एक और माध्यम है-‘शोर’. ऐसे ‘ध्वनि प्रदूषण’ कहा जाता है. ऊँची, तीखी और कर्ण कटु ध्वनियाँ जीवन के लिए हानिप्रद हैं. आकाशवाणी तथा दूरदर्शन की ऊँची आवाज तो घर की चार-दीवारी में गूंजती है, जो घर के वातावरण को दूषित करती हैं. धार्मिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर, दुकानों पर लगे रेडियो, बैंस की आवाज, जलसे-जुलूसों की नारे-बजी अनचाहे हमें झेलनी पडती हैं. इसी प्रकार सडकों पर चलते वाहनों के ‘हार्नों’ की आवाज तथा उनकी गडगडाहट भी भयंकर शोर उत्पन्न करती हैं. ‘शोर’ से उत्पन्न होना है ध्वनि प्रदुषण. ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित होती है हमारी श्रवण-शक्ति.
ध्वनि प्रदूषण से न सिर्फ हमारी सुनने की शक्ति समाप्त हो जाती है बल्कि इससे और भी कई रोग हो जाते हैं.
पर्यावरण Environment की रक्षा हमारा संकल्प
हम अपने रोजमर्रा की चीजों को पाने में या यूँ कहें कि अपने लालच में अपने ही पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं. पावन वायु, शुद्ध जल तथा शक्तिवर्धक भोजन हमारे जीवन जीने के लिए अनिवार्य हैं. इनकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना हमारा दायित्व है. यदि हमने अपने दायित्व से मुख मोड़ा तो सृष्टि के विनाश के अपराधी हम स्वयं होंगे, प्रकृति या जगत्-नियंता नहीं. इसलिए हमें अपने पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी बनाना पड़ेगा. आज विश्व पर्यावरण को लेकर चिंतित है. प्रदूषक तत्वों की मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है. यह सम्पूर्ण मानवता के लिये खतरनाक है. इसलिए हम सबको मिलकर इसके खिलाफ मोर्चा खोलना होगा और इसे अपनी जिम्मेवारी मानते हुए इस दिशा में ठोस पहल करना होगा.
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Alok says
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