प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को Teachers Day मनाया जाता है. यह दिवस शिक्षकों को गरिमा प्रदान करने वाला दिन है. शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन है’ शिक्षक दिवस’. समाज और राष्ट्र में ‘टीचर’ के गर्व और गौरव की पहचान करने का दिन है ‘Teachers Day- टीचर्स-डे.
छात्र – छात्राओं के प्रति और अधिक उत्साह-उमंग से अध्यापन, शिक्षण तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष के लिए उनके अंदर छिपी शक्तिओं को जागृत करने का संकल्प-दिवस है ‘अध्यापक-दिवस’ सम्मानित अध्यापक- अध्यापिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित कर उनकी कीर्ति और यश को गौरवान्वित करने का शुभ दिन है, 5 सितम्बर.
इसी प्रकार विभिन्न राज्यों से शिक्षण के प्रति समर्पित अति विशिष्ट शिक्षकों के नाम राज्य-सरकार केंद्र को भेजती हैं. राज्य-सरकारों द्वारा प्रस्तावित नामों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय का शिक्षा- विभाग चुनता है. ऐसे चुने गए शिक्षकों को इस मंत्रालय द्वारा 5 सितम्बर को सम्मानित किया जाता है.
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तित्व
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रख्यात दार्शनिक, शिक्षाविद, संस्कृतज्ञ और राजनयिक थे. सन 1962 से 1967 तक वे भारत के राष्ट्रपति भी रहे थे. राष्ट्रपति पद आने से पूर्व वे शिक्षा-जगत से ही सम्बद्ध थे. प्रेजीडेंसी कालिज, मद्रास में उन्होंने दर्शन-शास्त्र पढ़ाया. सन 1921 से 1936 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के ‘किंग जार्ज पंचम ‘ प्रोफेसर-पद को सुशोभित किया.
सन 1936 से 1939 तक आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी देशों के धर्म और दर्शन के ‘स्पालिन्डन प्रोफेसर’ के पद को गौरवान्वित किया. सन 1939 से 1948 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को गरिमा प्रदान की. राष्ट्रपति बनने के उपरांत जब उनके प्रशंसकों ने उनका जन्मदिवस सार्वजनिक रूप से मनाना चाहा तो उन्होंने जीवनपर्यन्त स्वयं शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को (5 सितम्बर ) को शिक्षकों का सम्मान करने के हेतु ‘शिक्षक – दिवस’ के रूप में मनाने का परामर्श दिया. तब से प्रतिवर्ष यह दिन ‘शिक्षक – दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
शिक्षक राष्ट निर्माता होते हैं
अध्यापक राष्ट्र के निर्माता और राष्ट्र की संस्कृति के संरक्षक हैं. वे शिक्षा द्वारा बालकों के मन में सुसंस्कार डालते हैं तथा उनके अज्ञान और अंधकार को दूर कर देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व वहन करते हैं. वे राष्ट्र के बालको को न केवल साक्षर ही बनाते हैं, बल्कि अपने उपदेश के माध्यम द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा नेत्र भी खोलते हैं. वे अपने छात्रों में भला-बुरा, हित-अहित सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं. राष्ट्र के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं.
गुरु का अर्थ
अध्यापक का पर्यायवाची शब्द है ’गुरू’. द्व्योपनिषद के अनुसार, ’गु’ अर्थात अन्धकार और ‘रू’ का अर्थ है ‘निरोधक’. अन्धकार का निरोध करने से गुरू कहा जाता है. स्कन्दपुराण के अनुसार ‘रू’ का अर्थ है’ तेज’ अज्ञान का नाश करनेवाला तेज रूप ब्रह्म गुरू ही है, इसमें संशय नहीं.
तैतिरीयोपनिषद में तो आचार्य को देव समान माना है,’आचार्य देवो भव’. कबीर ने तो गुरू को परमेश्वर से भी बड़ा माना है –
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दिओ मिलाय
ध्यातव्य है कि शिक्षक दिवस विद्यालयों में विशेषरूप से मनाये जाते हैं. कॉलेज और यूनिवर्सिटी में इसे नहीं मनाया जाता है. ऐसा क्यों? महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय इसकी सीमा में क्यों नहीं आते जबकि डा.राधाकृष्णन जिनके जन्मदिन पर यह कार्यक्रम निर्धारित किया गया है, स्वयं महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध रहे हैं?
पहली बात, क्षेत्र की बात छोड़ दें तो डा. राधाकृष्णन मूलतः अध्यापक थे. दूसरे प्राथमिक से लेकर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ही विद्यार्थियों में संस्कारों के निर्माण स्थल, हैं. यहाँ जिन संस्कारों के बीज उनमें अंकुरित होंगें, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में जाकर वे पल्लवित होंगे.
16 वर्ष की आयु तक अध्ययन करने की शैली, खेल के प्रति रुचि, एन.सी.सी.द्वारा अनुशाशन, सभा-मंचों द्वारा वाद-विवाद प्रतियोगिता, संगीत और कला की साधना, स्काउटिंग द्वारा मानवीय भावनाओं की जागृति विद्यालयों में ही सम्भव है, इसी कारण शिक्षक-दिवस पर विद्यालयों के शिक्षकों का ही सम्मान करना उचित है.
Teachers Day और वर्तमान शिक्षा की दशा दिशा
आजादी के बाद भारत के विद्यालयों की संख्या तो बहुत तेजी से बढी है, किन्तु उनकी पढाई और व्यवस्था का स्तर बहुत गिरा है. राजकीय और राजकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में अध्यापन और अनुशासन का तो और भी बुरा हाल है. सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन दिल्ली CBSE का परीक्षा-परिणाम इस बात का प्रमाण है. इस परिणामों का आंकड़ा 30 -35 % तक आ जाना इन स्कूलों की व्यवस्था और अध्यापकों की सक्रियता का दर्पण ही तो है. जब इन स्कूलों के आचार्य और प्राचार्य सम्मानित होती हों तो लगता है राजनीति के विष ने विद्यालयों को विषैला और विद्यार्थी को विद्या की अरथी उठाने पर विवश कर दिया है. व्यक्तित्व विकास के लक्ष्य के अभाव ने विद्यार्थी के आचरण को प्रभावित किया. आजीविका के अभाव ने विद्यार्थी को परजीवी बनाकर असामाजिक बना दिया है.
महाकवि कालिदास अपने नाटक ‘माल्विकग्रिमित्रम’ में कहते हैं कि जो अध्यापक नौकरी पा लेने पर शास्त्रार्थ से भागता है, दूसरों के अंगुली उठाने पर भी चुप रह जाता है और केवल पेट पालने के लिए विद्या पढ़ता है, ऐसा व्यक्ति पंडित नहीं वर्ण ज्ञान बेचने वाला दुकानदार कहलाता है.
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चावल या गेहूं में कंकर देखकर चावलों को फेंका नहीं जाता, गेहूं को अनुपयोगी नहीं माना जाता. समझदार व्यक्ति कंकर को चुन-चुन कर बाहर करता है और गेहूं-चावल का सदुपयोग करता है. प्रशासन यदि बच्चों की शिक्षा –दीक्षा के प्रति समर्पित अध्यापकों को ही सम्मानित करे तो Teachers Day और भी गौरवान्वित होगा. अपने नाम को भी सार्थक करेगा.
आज आधुनिक शिक्षा ने बच्चों को किताबी कीड़ा बने पर मजबूर कर दिया है. सरकार और समाज दोनों की यह जिम्मेवारी बनती है कि छात्रों का समग्र विकास हो और शिक्षक को उचित मान सम्मान मिले ताकि वे अपनी जिम्मेवारी को भलीभांति निभा सकें.
नोट : इस निबंध को teachers day पर essay लिखने या फिर speech/भाषण के तौर पर दिया जा सकता है. यदि भाषण दे रहे हों तो आगे संबोधन लगा लें.
Yogi Saraswat says
शिक्षक दिवस पर बढ़िया पोस्ट पंकज जी