Christmas Festival Essay in Hindi /क्रिसमस पर हिंदी निबंध
क्रिसमस विश्व भर में फैले ईसाइयों का सबसे बड़ा त्यौहार है. आज से लगभग 2015 वर्ष पूर्व ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसामसीह (Jesus Christ) का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था. 25 दिसंबर को ही क्रिसमस कहा जाता है और विश्व भर में लोग इसे बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं.
ईसामसीह का जन्म फिलिस्तीन के प्राचीन नगर येरुशलम के निकट स्थित एक छोटे से गाँव बेथलेहम में रात्रि के समय एक गौशाला में हुआ था. उनके पिता का नाम युसूफ था. पेशा से वे बढई थे. इनकी माँ का नाम मरियम था.
बालक ईसा अपने माता – पिता के प्रिय और आज्ञाकारी पुत्र थे. वे बहुत ही मृदुल स्वाभाव के थे. कहा गया है कि होनहार बीरवान के चिकने पात. उसी प्रकार बालपन से ही ईसा का मन धार्मिक कार्यों में लगता था. जिसे देख उनके माता – पिता चिंतित हो जाते थे. ईसा ने भी अपने पिता के पेशा बढईगिरि को चुना और उसी से अपना जीविकोपार्जन करने लगे. लेकिन उनका मन इसमें नहीं लगा. वे तो यहूदी समाज का उद्धार करने के लिए धरती पर आये थे.
उनके जन्म के समय रोम में सम्राट की पूजा भगवान् की तरह की जाती थी. समाज में अनेक तरह की कुरीतियों और धार्मिक रुढियों का बोलबाला था. सम्पूर्ण यहूदी समाज में निराशा और हताशा का माहौल बना हुआ था. ईसा मसीह ने व्यक्ति पूजा और चारों तरफ से अन्धविश्वास से घिरे समाज को मुक्त करने का प्रयास किया. उन्होंने गाँव –गाँव घूमकर लोगों को उपदेश दिया कि ईश्वर या परमात्मा सबको समान दृष्टि से देखते हैं. उन्हें आत्मज्ञान हो गया था और सत्य क्या है? इसका भी पता चल गया था. दूसरी तरफ यहूदियों को ईसा का इस तरह से उपदेश देना अच्छा नहीं लगा.
प्रभु यीशु को सूली पर लटकाया गया
एक बार ईसा मसीह येरुशेलम के उत्सव में शामिल हुए. वहां उन्होंने यहूदियों के हिंसात्मक कार्य को देख उन्हें बहुत दुःख पहुंचा. उन्होंने इस कृत्य का खुलकर विरोध किया. इस घटना के बाद सम्पूर्ण यहूदी समाज उनका विरोधी बन बैठा. ईसामसीह के एक शिष्य जूडास ने एक षड़यंत्र रचकर उन्हें धोखे से गिरफ्तार करवा दिया. उन्हें दंड के रूप में सूली पर चढ़ाने की सजा सुनाई गयी. जब उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए लोग ले जा रहे थे तब उन्होंने कहा – “हे ईश्वर! इन सबको क्षमा करना क्योंकि ये लोग नहीं जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं.” ईसामसीह को येरुशलम नगर में कल्वरी नामक पहाड़ी पर सूली पर चढ़ाया गया. इसीलिये येरुशलम ईसाइयों का सबसे पवित्र तीर्थस्थल है.
ईसा मसीह का जीवन एक आदर्श जीवन था. वे अपने शत्रुओं को भी क्षमा करने में विश्वास करते थे. उन्होंने हमेशा सबको प्रेम का पाठ पढाया और क्षमा करना सिखाया. उनका मानना था कि प्रेम और क्षमा से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं. विश्व का कल्याण हो इसके लिए उन्होंने विश्वबंधुत्व की भावना का प्रचार किया. लोगों की भलाई के लिए अनेकों कष्ट सहे. अपने साथियों द्वारा विश्वासघात करने पर भी वे अपने सिद्धांत से अडिग नहीं हुये.
ईसामसीह के उपदेश
उनका कहना था कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं. हमें क्रोध और बदले की भावना का त्याग कर लोगों को क्षमा कर देना चाहिए. वे अपने अनुयायियों को यह कहते थे कि सहनशीलता से आतम की उन्नति होती है. उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, दीन –हीन लोगों की सेवा और बलिदान की शिक्षा दी. उन्होंने लोगों को बर्बरता और अत्याचार के मार्ग से हटाकर प्रेम, करुणा, दया, भातृत्व भाव का मार्ग दिखाया. दुनिया ऐसे महान इंसान को सदा गलत मानती रही.
उनकी मृत्यु के बाद लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ. उनके अवसान के बाद ही ईसाई धर्म प्रचार –प्रसार पूरी दुनिया में हुआ. आज ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या अन्य धर्मों की अपेक्षा अधिक है. आज यह धर्म विश्व के लगभग सभी देशों में फैला हुआ है. इसका मुख्य कारण यह है कि यह धर्म आडम्बर रहित है. ईसा के उपदेश पवित्र ग्रन्थ बाईबिल में संकलित है.
सभी देशों में ईसा मसीह की जन्म दिवस 25 दिसम्बर को हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. लगभग एक माह पूर्व से ईसाई समाज के समस्त वर्ग के लोग इसकी तैयारियाँ करने लग जाते हैं, नये-नये कपड़े सिलवाये जाते हैं, क्रिसमस कार्ड खरीदे जाते हैं और बच्चों, मित्रों एवं सगे- सम्बन्धियों को भेंट करने हेतु तरह-तरह की वस्तुओं का चयन किया जाता है.
क्रिसमस का उत्सव कैसे मनाया जाता है?
क्रिसमस का कार्यक्रम एक दिन पहले से आरम्भ हो जाता है. 24 दिसम्बर को क्रिसमस ईव कहा जाता है. इस दिन सभी ईसाई अपने-अपने घरों और गिरिजाघरों को दीपकों से सजाते हैं. इस दिन लोग आपस में मिलते हैं. जगह-जगह पार्टियों और खाने-पीने का आयोजन किया जाता है. हर ईसाई घर में खूब स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं.
25 दिसम्बर को ईसा मसीह का जन्म दिवस मनाया जाता है. प्रात:काल गिरिजाघरों में ईश प्रार्थना होती है और उनके पुत्र ईसामसीह का गुणगान किया जाता है. पादरी द्वारा ईसामसीह के उपदेशों की व्याख्या होती है. आराधना का कार्यक्रम समाप्त होते ही गरीबों को देने के लिए अन्न, वस्त्र और धन का दान एकत्र किया जाता है. फिर लोग एक-दूसरे को बधाई देते हुए, गले मिलते हैं.
क्रिसमस पर ईसाई लोग अधिकतर केक-पेस्ट्री आदि खाने की चीजें घर पर ही बनाते हैं. सब लोग क्रिसमस की बधाई देने एक-दूसरे के घर मिलने जाते हैं. अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है. सभी आने वालों के लिए खाने के लिए केक, पेस्ट्री आदि दिए जाते हैं.
सांता क्लाउस और उपहार
क्रिसमस पर ईसाईयों में एक-दूसरे को तोहफे देने का रिवाज है. लोग इन तोहफों को खरीदने के लिए पहले से ही पैसे जमा करते हैं. कई बार तो उधार लेकर भी तोहफे दिए और लिए जाते हैं.
घरों में लोग छोटे बच्चों को यह कहकर सुलाते हैं कि, “क्रिसमस फादर आएँगे और तुम्हारे लिए चीजें लाएँगे.” बच्चे जब सो जाते हैं, तब उनके माता-पिता उनके सिरहाने सुंदर-सुंदर खिलौने और कपड़े रख देते हैं. क्रिसमस के दिन उठने पर जब बच्चों को अच्छी-अच्छी चीजें मिलती हैं, तब वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं.
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क्रिसमस पर हर घर में एक क्रिसमस ट्री रखा जाता है. इस वृक्ष को सुंदर-सुंदर छोटे-छोटे रंगीन बल्बों से सजाया जाता है. इसमें अनेक कार्ड भी लगाए जाते हैं. उसकी शाखाओं से अनेक पारितोषिक, टाफी, चाकलेट आदि खाने की चीजें टांग देते हैं, जिन्हें बच्चे तोड़-तोडकर खाते हैं. रात्रि में रोशनी से झिलमिलाता क्रिसमस ट्री देखने में बहुत ही अच्छा लगता है.
ईसामसीह का जन्म दिवस होने के कारण क्रिसमस का अपना एक महत्व है. इसे बड़ा दिन भी कहा जाता है. 21 दिसम्बर को वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है. 22, 23 व 24 दिसम्बर को दिन एक समान ही रहता है और 25 दिसम्बर से, दिन एक-एक मिनट बड़ा होना आरम्भ हो जाता है, इसलिए इसे बड़े दिन के नाम से जाना जाता है.
kadamtaal says
Very informative post…. thank you
priya says
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pri
atoot bandhan says
क्रिसमस पर इस शानदार निबंध को शेयर करने के लिए शुक्रिया
Pankaj Kumar says
आपका भी धन्यवाद!