Murkh Mitra Jaan ka Grahak Hindi Story मूर्ख मित्र जान का ग्राहक हिंदी कहानी
ऐसे तो यह एक बहुत प्रचलित कहानी है. लेकिन इस पोस्ट Murkh Mitra Jaan ka Grahak Hindi Story द्वारा इसे एक नए परिपेक्ष्य में देखने की जरुरत है. खासकर जब हम अपने मित्र का चुनाव करें. कहा भी गया है पूत परखिये मीत से. अर्थात आपका पुत्र की संगति कैसे लोगों से है, इसे देखकर आप उसके बारे में अंदाजा लगा सकते हैं. यदि उसका मित्र मूर्ख या बुद्धिहीन है तो वह कभी भी संकट से घिर सकता है.
एक राजा था. उसे बंदरों से बहुत ही लगाव था. उसने एक बड़े बन्दर को तो अपने निजी सेवक के रूप में पाल रखा था. वह राजा लोगों से कहता – ‘यह बन्दर नहीं, यह तो मेरा मित्र है.’ जब राजा अपने शयनकक्ष में होता तो वह बंदर वहीं निकट ही पहरेदारी करता रहता.
एक बार राजा जंगल में शिकार खेलने गया तो काफी दिनों बाद वापस लौटा. वह यात्रा के दौरान काफी थक चुका था. अतः आते ही वह शयनकक्ष में आराम करने चला गया. उसने बंदर को आदेश दिया कि किसी को भी उसकी नींद में खलल न डालने दे. बंदर आदेश का पालन करने के लिए वहीं राजा के पलंग के निकट नंगी तलवार हाथ में लेकर बैठ गया.
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थोड़ी देर बाद बंदर ने देखा कि एक मक्खी शयनकक्ष में घुस आई है. फिर वह मक्खी राजा की नाक पर बैठ गई. बंदर ने उसे उड़ाना चाहा लेकिन मक्खी वहीं आसपास मंडराती रही.
अब बंदर से रहा न गया, इस बार जैसे ही मक्खी राजा की नाक पर बैठी. बंदर ने आव देखा न ताव, उस पर तलवार चला दी. मक्खी का तो क्या होना था, वह तो उड़ गई, लेकिन राजा का सिर जरूर धड़ से अलग हो गया.
यदि राजा ने एक बन्दर की मानसिक दशा, उसकी सोच और समझ को ध्यान में रखा होता तो उसे अपनी जान गवानी नहीं पड़ती. इसलिए कहा भी गया है कि एक मूर्ख मित्र से कहीं अच्छा होता है एक बुद्धिमान शत्रु.
यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप अपने लिए कैसा मित्र चुनते हैं एक बन्दर या फिर एक समझदार जो आपको सुख और दुःख में समझता हो और आपको अच्छे काम में प्रोत्साहित करता हो , वहीँ बुरे काम से बचाता हो.
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