यह कहानी कर्मकांड से जुड़ी हुई है। यह कहानी कॉलेज के एक प्रोफेसर से शुरू होती है। प्रोफेसर साहब बहुत ही आधुनिक विचारों के थे और हमेशा समाज में बढ़ रही रूढ़िवादिता और अंधविश्वास के विरोधी थे। उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी जिसका नाम था – “हम कर्मकांड को क्यों नहीं माने- श्राद्ध कर्म ढोंग है ?”
इस पुस्तक में उन्होंने सदियों से चले आ रहे श्राद्ध कर्म का बहुत ही जोरदार विरोध किया। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी को भी इसके लिए सहमत करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी पत्नी बोली कि यदि मैं मर जाऊं तो आप मेरा उचित तरीके से श्राद्ध कर्म जरूर कीजिएगा।
प्रोफेसर साहब ने पत्नी का श्राद्ध कर्म संपूर्ण रीति रिवाज और परंपरा का पालन करते हुए करने का वचन दिया। कालांतर में जब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुआ तो उन्होंने उस इलाके के सभी ब्राह्मणों को बुलावा भेजा और पूरे सम्मान के साथ, पूरी विधि-विधान के साथ अपनी पत्नी का श्राद्ध कर्म किया।
Shraddh Karm Hindi Real Story के अलावे इसे भी पढ़ें : पैसा माँ बाप रिश्ता नहीं हिंदी कहानी
जब श्राद्ध कर्म संपूर्ण हो गया तब उन्होंने सभी ब्राह्मणों को यह कहा कि मैं अभी भी अपने उसी विचार पर कायम हूं कि श्राद्ध कर्म अनुचित है, इसे बंद कर देना चाहिए। आगे चलकर जब उनको लगा कि कुछ वर्षों में मेरी भी मृत्यु हो जाएगी तो उन्होंने अपने पुत्र को कहा कि देखो बेटा मेरे मरने के बाद मेरा श्राद्ध मत करना, सिर्फ मुझे जलाकर नदी में प्रवाहित कर देना और उत्तरी (कपडे का जनेऊ जो आग देने वाले बारह दिनों तक पहनते हैं) तोड़कर वापस घर चले आना। यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे साथ दाह संस्कार में जाए तो उसे उचित प्रकार से खिला पिला देना और और वापस घर आ जाना।
दो तीन बरसों के बाद उस सज्जन की मृत्यु हो गई। निर्देशानुसार बेटा ने वैसा ही किया जैसा कि पिताजी बता कर गए थे। हिंदू श्राद्ध कर्म पद्धति में 13 दिन का विधान होता है। मृत्यु के बाद प्रतिदिन कर्ता मृतक आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं और नदी के किनारे जाकर प्रेत आत्मा को भोजन पिंड द्वारा प्रदान करते हैं। 10 दिनों तक ऐसा चलता है फिर नख बाल का कार्य होता है और एकादशा और द्वादशा को उचित विधि विधान से मृतक आत्मा के लिए पूजा और दान में अन्य वर्तन, वस्त्र आदि दान किए जाते हैं।
प्रोफेसर साहब की मृत्यु के कोई 20-25 दिन बाद उनके पुत्र को लगा कि उसके पिताजी उसके बिस्तर के पास खड़े हैं और काफी दुखी हैं। कुछ दिनों बाद फिर पुत्र को सपना आया कि तुम मेरा श्राद्ध कर्म कर दो। किसी सुयोग्य पंडित को बुलाओ और मेरा श्राद्ध कर्म कर दो। मेरी आत्मा भटक रही है। यह सही है कि मैंने तुम्हें मना किया था लेकिन यदि तुम मेरी आत्मा की शांति चाहते हो तो मेरा श्राद्ध जरूर कर दो।
Shraddh Karm Hindi Real Story के अलावे इसे भी पढ़ें : सड़े आलू हिंदी कहानी
पुत्र बहुत ही पितृभक्त, संस्कारी और संपन्न था। उसने आसपास के ब्राह्मणों से सलाह मशविरा किया। एक बहुत ही विद्वान ब्राह्मण ने सलाह दिया कि अब यह श्राद्ध कर्म यहां नहीं हो सकता । लेकिन एक विधान है कि यदि आप गया (बोधगया) जाकर अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान कर उचित तरीके से श्राद्ध कर्म करें तो उनकी प्रेत आत्मा को मुक्ति मिल सकती है।
पुत्र ने गया जाकर अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए उचित प्रकार से श्राद्ध कर्म संपूर्ण किया और अपने पिता की भटकती आत्मा को को शांति मिले इसका उचित उपाय किया।
यह कहानी मुझे एक सुयोग्य ब्राह्मण श्रीमान केदार झा (चाक वाले) ने सुनाई थी और यह एक सच्ची कहानी है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे समाज में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जिसमें हमें अंधविश्वास या रूढ़िवादिता नजर आती है लेकिन क्या हम उस की वैज्ञानिकता या धार्मिकता या आध्यात्मिकता को पूर्ण रूप से जानते हैं? शायद नहीं इस कहानी को पढ़ने के बाद आप भी विचार कीजिए और अपने विचार को कॉमेंट द्वारा जरूर व्यक्त कीजिए! धन्यवाद!
आपको यह ब्लॉग कैसा लगता है आप अपने विचार हमसे जरूर शेयर करें। आपके विचार हमारे मनोबल को बढ़ाते हैं और कुछ अच्छा लिखने को सदैव प्रेरित करते हैं।
Anjali | 1HindiShare says
बहुत ही अच्छी कहानी
Rupendra kumar says
आपने बहुत अच्छी स्टोरी शेयर की है.
Vijay Chandora says
Nyc information
Satya prakash says
Bahut achha laga kahani padh k Chak wale pandit jee bahut hee gyani hai.