प्रस्तुत पोस्ट Deadly AIDS HIV Hindi Article में हम एड्स की बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। HIV संक्रमण कैसे होता है और आज मेडिकल साइंस में इसका क्या इलाज है, इसके बारे में भी जानेंगे।
एचआईवी एड्स जानलेवा, खून में दौड़ता मौत का वायरस Deadly AIDS HIV Hindi Article
एड्स एक खतरनाक बीमारी है। मूलतः असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स के जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीमारी का काफी देर बाद पता चलता है और मरीज भी एचआईवी टेस्ट के प्रति सजग नहीं रहते, इसलिए अन्य बीमारी का भ्रम बना रहता है। एड्स का पूरा नाम है ‘एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम।’ Deadly AIDS HIV Hindi Article
एचआईवी का पहला केस
न्यूयॉर्क में 1981 में इसके बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ”समलिंगी यौन क्रिया” के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए। इलाज के बाद भी रोग ज्यों-का-त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो चुकी थी। फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया ”एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम” यानी एड्स।
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भारत एचआईवी/एड्स उन्मूलन यानी रोकथाम के दिशा में लगातार कठिन प्रयास कर रहा है। एड्स नामक इस गंभीर भयानक बीमारी ने देश की एक बड़ी आबादी को अपने प्रभाव में जकड़ कर रखा है। एचआईवी से संबंधित मामलों को पूर्ण रूप से ख़त्म किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं एवं पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इस प्रयास में अंशतः सफलता भी पाई है। भारत को “पूर्णतः एड्स मुक्त” होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं। यह आँकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है। एचआईवी (Human immunodeficiency virus) आकलन 2012 के अनुसार भारतीय युवाओं में वार्षिक आधार पर एड्स के नए मामलों में 57% की कमी आई है।
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राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत किये गए एड्स के रोकथाम संबंधी विभिन्न उपायों एवं नीतियों का ही यह प्रभाव था कि 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की जो संख्या 2.74 लाख थी, वह 2011 में घटकर 1.16 लाख हो गई। 2001 में एड्स प्रभावित लोगों में 0.41% युवा थे जो प्रतिशत 2011 में घटकर 0.27 का हो गया। 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 24.1 लाख थी जो 2011 में घटकर 20.9 लाख रह गई।
एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई। 2007 से 2011 के बीच एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में वार्षिक आधार पर 29% की कमी आई। ऐसा अनुमान है कि 2011 तक लगभग 1.5 लाख लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की मदद से बचाया जा चुका है। भारत ने एचआईवी संबंधी आँकड़े देने वाले इन व्यापक स्रोतों का इस्तेमाल एड्स संबंधी कार्यक्रमों के निर्धारण में किया है ताकि एचआईवी की रोकथाम एवं इसके उपचार के उपायों से होने वाले प्रभावों की जानकारी प्राप्त की जा सके। एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (यूएनएड्स) के अनुमान यह दिखाते हैं कि पूरा विश्व एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने का प्रयास कर रहा है ताकि इस महामारी को जड़ से मिटाया जा सके। विगत दस वर्षों में इस दिशा में सराहनीय प्रयास किये गए हैं, फिर भी आज हमारे सामने यह एक विकट समस्या है।
एचआईवी के फैलने की प्रवृत्ति
एड्स के वायरस/एचआईवी से निपटने का एकमात्र उपाय है – इसकी रोकथाम। भारत की 99 प्रतिशत जनसंख्या अभी एड्स से मुक्त है, बाकि एक प्रतिशत जनसंख्या में इसके फैलने की प्रवृति के आधार पर इस महामारी की रोकथाम एवं इस पर नियंत्रण करने संबंधी नीतियाँ बनाई जा रही है।
एचआईवी/एड्स संबंधी मामलों में जागरूक बनें
एचआईवी संक्रमण को रोकने का एकमात्र तरीका है – लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए। लोगों को इसकी उत्पत्ति एवं प्रसार के बारे में बताया जाए ताकि लोग इस महामारी के दुष्प्रभाव से बच सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य जन-जन तक एचआईवी/एड्स एवं इसके रोकथाम से संबंधित सभी सूचनाएँ एवं जानकारियाँ पहुँचाना हैं।
भारत में एड्स के मामले
भारत में एचआईवी का पहला मामला 1986 में सामने आया। इसके पश्चात यह पूरे देश भर में तेजी से फैल गया एवं जल्द-ही इसके135 और मामले सामने आये जिसमें 14 लोगों में एड्स पूर्ण रूप से पाया गया। यहाँ एचआईवी/एड्स के ज्यादातर मामले यौनकर्मियों में पाए गए हैं। इस दिशा में सरकार ने पहला कदम यह उठाया कि अलग-अलह जगहों पर जाँच केन्द्रों की स्थापना की गई। इन केन्द्रों का कार्य जाँच करने के साथ-साथ ब्लड बैंकों की क्रियाविधियों का संचालन करना था। बाद में उसी वर्ष देश में एड्स संबंधी आँकड़ों के विश्लेषण, रक्त जाँच संबंधी विवरणों एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों में समन्वय के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना
हालांकि 1990 की शुरुआत में एचआईवी के मामलों में अचानक वृद्धि दर्ज की गई, जिसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य देश में एचआईवी एवं एड्स के रोकथाम एवं नियंत्रण संबंधी नीतियाँ तैयार करना, उसका कार्यान्वयन एवं परिवीक्षण करना है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन संबंधी अधिकार भी इसी संगठन को प्राप्त हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यक्रम प्रबंधन हेतु प्रशासनिक एवं तकनीकी आधार तैयार किये गए एवं राज्यों व सात केंद्र-शासित प्रदेशों में एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।
जन-संपर्क अभियान
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा टेलीविज़न एवं आकाशवाणी रेडियो पर नियमित रूप से जन जागृति के इस विषय से संबंधित प्रसारण आयोजित किये जाते हैं, जिसमें कंडोम के उपयोग, एड्स प्रभावित लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, समेकित परामर्श एवं परीक्षण केंद्र, एचआईवी/एड्स के प्रति भ्रांतियां, यौन संक्रमित रोगों के उपचार, युवाओं के एचआईवी संक्रमित होने की ज्यादा आशंका, एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी एवं रक्त आदान-प्रदान संबंधी सुरक्षा इत्यादि पर विस्तार से चर्चा की जाती है।
विश्व एड्स दिवस World AIDS Day
प्रत्येक वर्ष 1 दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। इस दिन को विश्वभर के लोग एड्स विरोधी अभियान में अपनी एकजुटता दिखाते हैं एवं एड्स प्रभावित लोगों को हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन देते हैं। इस दिन को एड्स से मरने वाले लोगों के स्मरणोत्सव के रूप में भी मनाया जाता हैं।
पोस्ट लेखक : सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
(सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाऐं भारतीय थल सेना और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी ) निवास :- ‘ श्री हरि विष्णु कृपा भवन ‘ ग्राम :- श्री गर्गवास राजबेरा, तहसील उपखंड :- शिव, जिला मुख्यालय :- बाड़मेर, पिन कोड :- 344701 राजस्थान ।
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