प्रस्तुत पोस्ट Live in Present Hindi Article में हम एक बेहतर और सुखी जीवन जीने का सूत्र पर चर्चा करेंगे. उम्मीद है यह सूत्र Live in Present आपके जीवन में positivity और success लेकर आएगा.
चिंता को छोड़कर तनावमुक्त हो सुख से जीएं लक्ष्य बनाकर कार्य करें – वर्तमान में जीएं
हमारा वर्तमान ही हमारा जीवन है। जो बीत गया, उसे बदला नहीं जा सकता। जो होना है, उसे टाला नहीं जा सकता। जागृत रहकर हम विवेकयुक्त कार्यों एवं विचारों से अदृश्य शक्ति की की सहायता लेते हुए उसका परिष्कार कर उसे अपने अनुकूल बना सकते हैं।
यह तभी संभव है, जब हम वर्तमान पर ध्यान केंद्रित रखें, होता उसके विपरीत हैं। हम अतीत की स्मृतियों में खोए हुए रहते हैं। पिछली घटनाएं बार-बार हमारे मन में जागृत होती हैं। हमारे वर्तमान को प्रभावित करती रहती है।
हम स्मृति को रोक नहीं पाते। साहस नहीं बटोर सकते । संकल्प शक्ति का अभाव पाते हैं। इसी का परिणाम है कि हम जीवन में अनेक भावी आशंकाओं से भी घिरे रहते हैं। अनेक प्रकार के भय हमारे मन में छाए रहते हैं और बिना कारण ही हम डरे-सहमें हुए जीते हैं। अपनी कल्पनाओं में खोए रहते हैं। हमारी स्वयं के प्रति भोग आसक्ति शायद इसके मूल में हैं। इससे छूट पाना कठिन कार्य है।
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छुटकारे का आभास हो जाना ही हमें बहुत कुछ सुखी बना सकता हैं। जीवन को तनावमुक्त कर सकता है। हमारे तनाव का कारण तो स्मृतियां और कल्पनाएं ही हैं, जो हमारे मन को उद्वेलित करती रहती हैं। उसे चंचल बनाती हैं। शरीर तो उनकी अभिव्यक्ति मात्र हैं। शरीर स्वयं में कुछ नहीं कर सकता। आसक्ति का भाव हमें वर्तमान में नहीं जीने देता ।
भविष्य की आशंकाएं हमारी आंखो से ओझल नहीं होती । नींद में भी परेशान करती रहती हैं। यही तो तनाव का मूल कारण हैं। पूरे दिन कार्य करके भी नहीं लगता कि आज जो कुछ करना था, पूरा हो गया। पूरी उम्र जीने के बाद भी लगता कि सब कुछ कर लिया हैं, शांति से मर सकते हैं।
हमें इस परिस्थिति को समझना चाहिए। इसके बिना हम शरीर से, मन से, विवेक से स्थिर नहीं हो सकते हैः। वर्तमान में जी नहीं सकते हैं। बिना वर्तमान को समझे, बिना स्वस्थ वर्तमान के हमारा भविष्य उज्ज्वल कैसे हो सकता हैं? वर्तमान में बिना कुछ किए हमें भविष्य में फल किसके मिलेंगे?
बिना कुछ किए तो हमारा वर्तमान ही व्यर्थ चला जाएगा। जीवन के अर्थ ही नहीं रह जाएगें। हमारा संकल्प हमें वर्तमान से जोड़े रखे यह पहली आवश्यकता हैं। हमें कल का भय न हो। अतीत और अनागत से मुक्त रहने के लिए दृढ़ संकल्प और विवेक की आवश्यकता हैं। इसके लिए ममत्व से दृष्टि हटानी पड़ेगी। कर्म को प्रधानता देनी होगी। कर्म को लक्षित अकर्म का विवेक करना होगा ।
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हमारी वृत्तियां ही हमारे अंहकार को जीवित रखती हैं। मन को तरंगित करती हैं। शरीर को अस्थिर करती हैं। शरीर तो मन का घर होता हैं। हमारी वृत्तियां शरीर और मन दोनों को चंचल कर देती हैं। यही क्षोभ स्तृति और कल्पना का जन्मदाता हैं। इसी कारण वर्तमान से विच्छेद हो जाता हैं। इसका समाधान कुछ सीमा तक वृत्तियों के परिष्कार से हो सकता हैं।
कर्म को कर्म ही मानकर करने से भी हो सकता हैं। कर्म से अंहकार को अलग रखना अर्थात् फल प्राप्ति के भाव से मुक्त रहना जीवन को तनाव मुक्त कर देता हैं। स्मृति और कल्पना के लिए फिर कोई अवकाश नहीं रह जाता। कल्पना स्वतंत्र भी हो सकती हैं, और स्मृति के साथ भी जुड़ सकती हैं।
अधिकांशत: दोनों साथ-साथ होते हैं। स्मृति के संस्कार कल्पना का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जीवन के अनुभव, ज्ञान और लक्ष्य मिलकर कल्पना को गति देते हैं। संकल्प हमें भावनात्मक शक्ति देता हैं कार्य करने की। संतुलित अवस्था में सब ठीक होता हैं।
विवेकहीन होते ही क्रम बदल जाता हैं, अव्यवस्थित हो जाता हैं। वर्तमान सुदृढ़ होते ही स्मृति और कल्पना संतुलित और व्यवस्थित नजर आते हैं। अत: हमें सारी चिंताएं छोड़कर तनावमुक्त होकर कार्य को लगन और मेहनत के साथ किया जाए तो उसके परिणाम सुखद व आशा के अनुरूप सिध्द होगें। चिंता व तनाव शरीर मन व दिमाग को अवरुद्ध करता हैं। ” चिंता छोड़ो सुख से जीयो “
पोस्ट लेखक : सूबेदार रावत गर्ग उण्डू (सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाऐं भारतीय थल सेना स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी, आकाशवाणी श्रोता )
निवास – ‘श्री हरि विष्णु कृपा भवन ‘ग्राम – श्री गर्गवास राजबेरा, पोस्ट ऑफिस – ऊण्डूतहसील उपखंड – शिव, जिला – बाड़मेर पिन कोड – 344701 राजस्थान ।
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