प्रस्तुत पोस्ट Srila Prabhupada Quotes in Hindi मे हम अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) के संस्थापक स्वामी श्रील भक्ति वेदांत प्रभुपाद जी महाराज के कुछ अनमोल वचन को पढ़ेंगे । ये वचन हमारे आध्यात्मिक और नैतिक विकास में सहायक साबित होंगे ।

श्रील प्रभुपाद जी – एक परिचय
स्वामी श्रील प्रभुपाद का जन्म 1 सितम्बर 1896 को कोलकाता में हुआ था। गौड़ीय वैष्णव समाज ने 1947 में उन के दार्शनिक विचार, भक्ति और ज्ञान की महत्ता पहचान कर ही भक्ति वेदांत की उपाधि से विभूषित किया था। उनके गुरु श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने ही उन्हें 1922 में वैदिक ज्ञान के प्रचार के लिए प्रोत्साहित किया। 1944 में स्वामी जी ने वैदिक ज्ञान को विश्व में प्रचारित करने के लिए एक अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। यह पत्रिका आज 30 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित की जाती है।
1966 के जुलाई महीने में स्वामी श्री भक्ति वेदांत जी ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ यानि इस्कॉन की स्थापना की। इस समय पूरे संसार में 100 से भी अधिक मंदिर, आश्रम, विद्यालय आदि संघ द्वारा संचालित है। अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का परलोकगमन 14 नवम्बर 1977 को 81 वर्ष की आयु में श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन में हुई । आइए जानते हैं श्री प्रभु पाद जी के कुछ अनमोल वचन।
स्वामी श्रील भक्ति वेदांत जी महाराज के अनमोल वचन Srila Prabhupada Quotes in Hindi
1. जीवन का सर्वप्रथम और आधारभूत सिद्धांत है – सुख का भोग। काश! हम सदा के लिए जीवन के सुखों का भोग कर पाते।
2. कुछ लोग कहते हैं कि मृत्यु प्रत्येक वस्तु का अंत है। कुछ स्वर्ग और नर्क में विश्वास करते हैं। अन्य कुछ लोगों का मत है कि उनका यह जीवन अनेक बीते हुए जीवनों में से एक है और भविष्य में भी हम जीवित रहेंगे।
3. जीवंत शक्ति ही महत्वपूर्ण तत्व है, इसकी उपस्थिति ही उसे जीवंत होने का आभास देती है। परंतु जीवन हो या मृत्यु, भौतिक शरीर जड़ पदार्थों के एक ढेर से अधिक कुछ नहीं है।
4. आत्म-साक्षात्कार कर चुका व्यक्ति सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखता है। यह जानते हुए कि सक्रिय तत्व आत्मा न केवल मानव शरीर में है, अपितु पशुओं, मछलियों, कृमियों और पौधों के शरीर में भी है।
5. इस संसार में हर व्यक्ति शरीर की बहुत अधिक चिंता करता है और जब वह जीवित है, वह अनेक प्रकार से इसकी देखभाल करता है। जब वह मर जाता है तो लोग इसके ऊपर भव्य स्मारकों और मूर्तियों का निर्माण करते हैं। यह देहात्म बुद्धि है परंतु कोई मनुष्य उस सक्रिय तत्व को नहीं समझता, जो शरीर को जीवन तथा सौंदर्य प्रदान करता है। कोई नहीं जानता कि मृत्यु के समय वास्तविक आत्मा सक्रिय तत्व कहां चला गया है। यह अज्ञान ही है।
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6. सच्चाई यह है कि आत्मा अपनी वासना और कर्मों के आधार पर एक शरीर से दूसरे शरीर में देह अंतरण करता है।
7. आत्मानुभूति अथवा ईश्वर अनुभूति मानव जीवन का उद्देश्य है।
8. इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप ईसाई हैं या मुस्लिम अथवा हिंदू। ज्ञान तो ज्ञान है। जहां कहीं भी मिल सके उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
9. मानव क्या समझ सकता है कि वह क्या है? पशु-पक्षी यह नहीं समझ सकते। अतः मानव होने के नाते हमें आत्म-साक्षात्कार के लिए प्रयास करना चाहिए ना कि मात्र पशु-पक्षियों के स्तर पर व्यवहार करना।
10. हमारे पास परम बुद्धि है जिसके द्वारा हम परम सत्य को समझ सकते हैं।
11. जब आत्मा शरीर को छोड़ देता है तो शरीर को फेंक दिया जाता है। यद्यपि इसके मालिक को वह बहुत प्यारा था।
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