प्रस्तुत आलेख Baba RamdevJi Ramapir in Hindi में लोक देवता बाबा रामदेव जी के बारे में विशेष आलेख पेश कर रहा हूं। बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म या अवतार बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र के उण्डू काश्मीर में हुआ था। वर्तमान में यह जगह बाड़मेर से करीब सौ किलोमीटर दूर उण्डू के पास ग्राम पंचायत काश्मीर से हाल ही में अलग हो नवसृजित ग्राम रामदेरिया है। यहां पर मंदिर निर्माण किया गया है। आगंतुकों के लिए यहाँ पर हर प्रकार की संपूर्ण सुविधाएं उपलब्ध हैं ।
सांप्रदायिक सद्भाव व एकता के प्रतीक लोक देवता श्री बाबा रामदेव जी ‘रामापीर’
राजस्थान की धन्य धरा पर अनेक महापुरुष व लोक देवी-देवता हुए हैं जो आज बड़ी आस्था विश्वास व श्रध्दा से पूजे जाते हैं । ऐसे ही राजस्थान के मारवाड़ की धरती पर लोक देवता हुए श्री बाबा रामदेव जी महाराज जो साम्प्रदायिक सौहाद्र के प्रतीक माने जाते हैं। हिन्दू व मुसलमान दोनों ही धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से इनको पूजते हैं ।
लोक देवता बाबा रामदेव जी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र के उण्डू काश्मीर (वर्तमान रामदेरिया) में जन्म / अवतार लिया था। किंवदन्ती है कि ये भगवान श्री कृष्ण का अवतार थे। श्रद्धालु इनके जन्म की कथा को कुछ यूँ बयान करते हैं।
बाबा रामदेव जी के अवतार की कथा
दिल्ली के शासक अनंगपाल को पुत्र नहीं था। पृथ्वीराज चौहान उनकी पुत्री का पुत्र था। एक बार अनंगपाल तीर्थयात्रा को निकलते समय पृथ्वीराज चौहान को राजकाज सौंप गये। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें राज्य पुनः सौंपने से इन्कार कर दिया। अनंगपाल और उनके समर्थक दुखी हो राजस्थान के बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ग्राम उण्डू – काश्मीर में बस गये थे। इन्हीं अनंगपाल के वंशजों में अजमल और मेणादे थे।
निसंतान अजमल दम्पत्ति श्री कृष्ण के अनन्य उपासक थे। एक बार कुछ किसान खेत में बीज बोने जा रहे थे कि उन्हें अजमल जी रास्ते में मिल गये। किसानों ने नि:संतान अजमल को शकुन खराब होने की बात कह कर ताना दिया। दुखी अजमल जी ने भगवान श्री कृष्ण के दरबार में अपनी व्यथा प्रस्तुत की।
लोगों की मनौती होती है पूरी
भगवान श्री कृष्ण ने इस पर उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे। बाबा रामदेव के रूप में जन्मे श्री कृष्ण पालने में खेलते अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से लोगों की आस्था का केन्द्र बनते गये। लोक भावनाओं के अनुसार उन्होंने पीरों को उनके बर्तन मक्का मदीना से मंगवा कर चमत्कृत किया। भैरव राक्षस के आतंक से रामदेवरा के लोग को मुक्त कराया। बोयता महाजन के डूबते जहाज को बचाया। सगुना बाई के बच्चों को जीवित करना, अंधों को दृष्टि प्रदान करना और कोढयों को रोगमुक्त करना उनके अन्य चमत्कारों में से कुछ थे। इसलिए आज भी लोग उनसे मनौतियाँ मांगते हैं और मनौती पूरी होने पर भेंट चढाते हैं।
यहां भाद्रपद महीने में भी मेला लगता है जिसमें आस-पास के गांवों के लोग इकट्ठे होते हैं। उण्डू काश्मीर में जन्म लेकर बाल्यावस्था यहीं गुजारी फिर उण्डू काश्मीर से सौ सवा सौ किलोमीटर दूर स्थित रामदेवरा में बस गए थे। रामदेवरा अथवा रूंणीचा धाम असल में रामदेव जी की कार्यस्थली रही है। यहीं उन्होंने रामसर तालाब खुदवाया। यहीं समाधि ली और अपने 33 वर्ष के छोटे से जीवन में दीनदुखियों और पिछडे लोगों के कल्याण के लिए काम करके देवत्त्व प्राप्त किया।
लोकगीतों में गायी जाती है गाथा
रामदेवरा किसी समय जोधपुर राज्य का गांव था जो जागीर में मंदिर को दे दिया गया था। इस गांव के ऐतिहासिक व प्रामाणिक तथ्य केवल यहीं तक ज्ञात हैं कि इसकी स्थापना रामदेवजी की जन्म तिथि और समाधि दिवस के मध्य काल में हुई होगी। वर्ष 1949 से यह फलौदी तहसील का अंग बन गया और बाद में जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील बन जाने पर उसमें शामिल कर दिया गया।
रामदेव जी के विवाह की गाथा लोकगीतों में आती है पर संतान व अन्य तथ्यों की पुष्टि नहीं होती। इनका विवाह निहाल दे नामक महिला से हुआ था। डाली बाई और हरजी भाटी इनके अनन्य भक्तों में से थे। डालीबाई का मंदिर रूंणीचे में बाबा की समाधि के पास बना है।
कहते हैं कि डालीबाई बाबा रामदेव को टोकरी में मिली थी। रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1931 में बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था। इस पर उस समय 57 हजार रुपये की लागत आई थी।
बाबा रामदेव जी का बचपन
हिन्दुओं के लिए बाबा रामदेव जी और मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए रामसा पीर कहे जाने वाले बाबा ने ईश्वर का अवतार लेकर कई ऐसे चमत्कार दिखाए और कार्य किये जिन्हें कोई भी साधारण मनुष्य नही कर सकता। चमत्कारी पुरुष बाबा रामदेव जी के इन्ही चमत्कारों को 24 पर्चे भी कहा जाता है। जिनमें बाबा ने पहला पर्चा झूले झूलते हुए माँ मैनादे को दिया था। ऐसे रामसा पीर बचपन से छुआछूत और भेदभाव के कट्टर विरोधी थे।
जब बाबा रामदेव जी पोकरण रजवाड़े के राजा बने तो इन्होंने शासक की बजाय एक जनसेवक के रूप में कई महान कार्य किये। उस समय दलित समुदाय को उच्च जाति के लोग दीन-हीन समझकर उनसे बात करना पसंद नहीं करते थे। राजपूत परिवार में जन्मे इन्हीं बाबा रामदेव जी दलित बालिका डालीबाई को अपनी धर्म बहिन बनाया और जीवन पर्यन्त उन्होंने खुद से ज्यादा वरीयता अपनी बहिन को दी। यहाँ तक कि जब रामदेवजी समाधि लेने लगे तो डाली बाई ने इसे अपनी समाधि बताकर जीवित समाधि ले ली थी। जो बाबा राम सा पीर की समाधि के पास ही स्थित हैं। इन्हीं हिन्दू-मुस्लिम दलित प्रेम के कारण आज बाबा रामदेवजी को सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग बड़ी आस्था से ध्याते हैं।
बाबा रामदेव जी की बाल लीला
अवतारी पुरुष बाबा रामदेव जी की लीलाए उनके जन्म के साथ ही शुरू हो गई थी। उनके जन्म के समय सारे महल में जल से भरे बर्तन दूध में बदल गये, घंटिया बजने लगी, आकाश आकाश वाणी होने लगी, आँगन में कुमकुम के पद चिह्न बन गये। माँ के एक बार झुला झुलाते समय दूध उफनने लगा तो बाबा रामदेव जी ने अपने हाथ के इशारे से दूध को थमा दिया था।
बचपन में बाबा रामदेव जी दवरा कपड़े का घोड़ा बनवाने की जिद पर अड़ जाने के बाद अजमल जी ने एक दर्जी को कपड़े देकर बालक रामदेव के लिए घोड़ा बनाने को कहा। बाबा रामदेव जी जब उस कपड़े के घोड़े पर बैठे तो वह आकाश में उड़ गया। खेलते-खेलते बाबा रामदेव जी द्वारा दैत्य भैरव का वध करना जैसे बहुत चमत्कारिक पर्चे (चमत्कार) इन्होंने बेहद कम आयु अपने बाल समय में बाबा रामदेव जी ने दिखाकर सभी लोगों का दिल जीत लिया था।
बाबा रामदेव जी द्वारा भैरव राक्षस वध कथा
इन्हीं बाबा रामदेवजी के अवतार की एक वजह भैरव नाम के दैत्य के बढ़ते अपराध भी था। भैरव पोकरण के आस-पास किसी भी व्यक्ति अथवा जानवर को देखते ही खा जाता था। इस क्रूर दैत्य से आमजन बेहद त्रस्त थे।
रामदेव जी की कथा के अनुसार बचपन में एक दिन गेंद खेलते हुए, मुनि बालिनाथ जी की कुटिया तक पहुंच जाते हैं। तभी वहाँ भैरव दैत्य भी आ जाता हैं, मुनिवर बालक रामदेव को गुदड़ी ओढ़ाकर छुपा देते हैं। दैत्य को इसका पता चल जाता हैं। वह गुदड़ी खीचने लगता हैं। द्रोपदी के चीर की तरह वह बढ़ती जाती हैं। अत: भैरव हारकर भागने लगता हैं। तभी ईश्वरीय शक्ति पुरुष बाबा रामदेव जी घोड़े पर चढ़कर इसका पीछा करते हैं।
लोगों की किवदन्ती की माने तो उन्हें एक पहाड़ पर मारकर वही दफन कर देते हैं। जबकि मुह्नौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत के अनुसार इसे जीवनदान देकर आज से कुकर्म न करने व मारवाड़ छोड़ चले जाने पर बाबा रामदेव जी भैरव को माफ कर देते हैं। और वह चला जाता हैं। इस प्रकार एक मायावी राक्षसी शक्ति से जैसलमेर के लोगों को रामसा पीर ने पीछा छुड़वाया।
बाबा रामदेव जी का विवाह संवत
सन 1426 में बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं। यहाँ के दलपत जी सोढा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री बाबा रामदेवजी का विवाह हुआ। नैतलदे जन्म से विकलांग थी, जो चल फिर नहीं सकती थी, मगर अवतारी पुरुष (कृष्ण अवतार) ने पूर्व जन्म में रुखमनी (नैतलदे) को वचन दिया था कि वे अगले जन्म में आपके साथ ही विवाह करेगे।
विवाह प्रसंग में नैतलदे को फेरे दिलवाने के लिए बैशाखिया लाई गयीं, मगर चमत्कारी श्री रामदेवजी ने नैतलदे का हाथ पकड़कर खड़ा किया और वे अपने पैरों पर चलने लगी। इस तरह बाबा रामदेवजी का विवाह बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। दुल्हन नैतलदे ने साथ अपने ग्राम रामदेवरा पहुंचने पर उनकी बहिन सुगना बाई (चचेरी बहिन) उन्हें तिलक नहीं लगाने आई।
जब इसका कारण पूछा गया तो पता चला उसके पुत्र यानि रामदेवजी के भांजे को सर्प ने डस लिया था। तब बाबा स्वयं गये और अपने भानजे को उठाकर साथ लाए तो लोग हक्के–बक्के से रह गये।
बाबा रामदेव जी के चौबीस पर्चे (चमत्कार)
लोक देवता बाबा रामदेव जी ने जन्म से लेकर अपने जीवन में 24 ऐसे चमत्कार दिखाए, जिन्हें आज भी बाबा रामदेव जी के भजनों में याद किया था। माँ मैनादे को इन्होंने पहला चमत्कार दिखाया, दरजी को चिथड़े का घोड़ा बनाने पर चमत्कार, भैरव राक्षस को बाबा रामदेव जी का चम्त्कार सेठ बोहितराज की डूबती नाव उभारकर उनको पर्चा, लक्खी बिनजारा को पर्चा, रानी नेतल्दे को पर्चा, बहिन सुगना को पर्चा, पांच पीरों को पर्चा सहित बाबा रामदेव जी ने कुल 24 परचे दिए।
बाबा रामदेव जी की समाधि
मात्र तैतीस वर्ष की अवस्था में चमत्कारी पुरुष श्री बाबा रामदेव जी ने समाधि लेने का निश्चय किया। समाधि लेने से पूर्व अपने मुताबिक स्थान बताकर समाधि को बनाने का आदेश दिया। उसी वक्त उनकी धर्म बहिन डालीबाई आ पहुंचती हैं। वो भाई से पहले इसे अपनी समाधि बताकर समाधि में से आटी डोरा आरसी के निकलने पर अपनी समाधि बताकर समाधि ले ली। डालीबाई के पास ही बाबा रामदेव जी की समाधि खुदवाई गई। हाथ में श्रीफल लेकर सभी ग्रामीण लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर उस समाधि में बैठ गये और बाबा रामदेव के जयकारे के साथ सदा अपने भक्तो के साथ रहने का वादा करके अंतर्ध्यान हो गये।
बाबा रामदेव जी का अवतार धाम उण्डू काश्मीर व समाधि स्थल रामदेवरा में भव्य मेला
आज बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं। उनके द्वारा बसाए गये। रामदेवरा गाँव में वर्ष भर मेले का हुजूम बना रहता हैं। भक्त वर्ष भर बाबा के दर्शन करने आते हैं। बाबा रामदेव जी के जन्म दिन भादवा सुदी बीज को रामदेवरा में विशाल मेला भरता हैं। लाखों की संख्या में भक्त दर्शन की खातिर पहुचते हैं। पूरे राजस्थान में बाबा रामदेव जी के भक्तों द्वारा दर्शनार्थियों के लिए जगह-जगह पर भंडारें और रहने की व्यवस्था हैं।
लगभग तीन महीने तक चलने वाले इस रामदेवरा मेले में सभी धर्मों के लोग अपनी मुराद लेकर पहुचते हैं। बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी इच्छायेँ और दु:ख दर्द स्वत: दूर हो जाते हैं। बाबा रामदेवजी का जन्म स्थान उण्डू काश्मीर ( वर्तमान रामदेरिया ) है, जो बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र में स्थित हैं। वहां पर बाबा रामदेव जी का विशाल मन्दिर हैं। समाधि के दर्शन करने वाले सभी भक्त गन जन्म स्थान को देखे बिना घर लौटने का मन ही नही करते।
जहां झुकते हैं हिंदू-मुसलमान, दोनों के सिर
मरू प्रदेश राजस्थान में जैसलमेर जनपद के रामदेवरा में मध्यकालीन लोक देवता बाबा रामदेव के दर्शन के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक माने जाने वाले इस लोक देवता की समाधि के दर्शन के लिए विभिन्न धर्मों को मानने वाले, ख़ास तौर पर आदिवासी श्रद्धालु देश भर से इस सालाना मेले में आते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हैं रामदेव
बाबा रामदेव को कृष्ण भगवान का अवतार माना जाता है। उनकी अवतरण तिथि भाद्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीय को रामदेवरा मेला शुरू होता है। यह मेला एक महीने से अधिक चलता है। वैसे बहुत से श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी रामदेव जयंती पर रामदेवरा अवश्य पहुँचना चाहते हैं।
बाबा रामदेव जी को मुस्लिम भाई कहते है रामसा पीर
मुस्लिम दर्शनार्थी इन्हें ‘बाबा रामसा पीर’ कह कर पुकारते हैं। इस बार 633 वें रामदेवरा मेले में भी श्रद्धालु गाते बजाते और ढोल नगाड़ों पर थाप देते हुए बाबा की लंबी ध्वज पताकाएं लिए रामदेवरा की ओर बढ़ते हुए देखे जा सकते हैं। जैसलमेर से रामदेवरा तक का पूरा मार्ग भजन ‘ओ अजमाल जी रा कंवरा, माता मेनादे रा लाल, रानी नेतल रा भरतार, म्हारो हेलो सुणो जी राम पीरजी’ से गुंजायमान रहता है।
कोरोना महामारी की छाया में बाबा रामदेव मेला प्रशासन ने इस बार रद्द किया
वैश्विक महामारी कोरोना के वायरस कोविड 19 के चलते बाबा रामदेव अवतार धाम – रामदेरिया (उण्डू – काश्मीर ) व समाधि स्थल रामदेवरा ( रूणिचा) में लगने वाला विशेष मेला सरकार के निर्देशानुसार प्रशासन ने रद्द करवाया गया है। इसमें देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं ।
भादवा शुक्ला द्वितीया से भादवा शुक्ला एकादशी तक भरने वाले इस मेले में सुदूर प्रदेशों के व्यापारी आकर हाट व दूकानें लगाते हैं। पैदल यात्रिायों के जत्थे हफ्तों पहले से बाबा की जय-जयकार करते हुए अथक परिश्रम और प्रयास से रूंणीचे पहुंचते हैं।
लोकगीतों की गुंजन और भजन कीर्तनों की झनकार के साथ ऊँट लढ्ढे, बैल गाड़ियाँ और आधुनिक वाहन यात्रियों को लाखों की संख्या में बाबा के दरबार तक पहुंचाते हैं। यहां कोई छोटा होता है न कोई बडा, सभी लोग आस्था, भक्ति और विश्वास से भरे, रामदेव जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचते हैं।
विशाल मेला का आयोजन
यहां मंदिर में नारियल, पूजन सामग्री और प्रसाद की भेंट चढाई जाती है। मंदिर के बाहर और धर्मशालाओं में सैकडों यात्रियों के खाने-पीने का इंतजाम होता है। प्रशासन इस अवसर पर दूध व अन्य खाद्य सामग्री की व्यवस्था करता है। विभिन्न कार्यालय अपनी प्रदर्शनियां लगाते हैं। प्रचार साहित्य वितरित करते हैं और अनेक उपायों से मेलार्थियों को आकृष्ट करते हैं।
मनोरंजन के अनेक साधन यहां उपलब्ध रहते हैं। श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ-साथ मेलार्थी अपना मनोरंजन भी करते हैं और आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी भी। नि:संतान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और सवामणी करते हैं। रोगी रोगमुक्त होने की आशा करते हैं तो दुखी आत्माएं सुख प्राप्ति की कामना करते हैं । इस प्रकार एक लोक देवता में आस्था और विश्वास प्रकट करता हुआ यह मेला एकादशी को सम्पन्न हो जाता है। इस बार कोरोना महामारी की वजह से मेला रद्द हुआ है।
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पोस्ट लेखक
सूबेदार रावत गर्ग उण्डू ( सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाएं व स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी ) निवास – RJM – 04 ‘ श्री हरि विष्णु कृपा भवन ‘ श्री गर्गवास राजबेरा, पोस्ट ऑफिस – उण्डू, तहसील उपखंड – शिव, बाड़मेर, 344701 राजस्थान ।
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