प्रस्तुत पोस्ट AtharvaVeda Sacred Quotes in Hindi अथर्ववेद के पवित्र विचार में हम अथर्ववेद के कुछ अति प्रमुख विचारों को जानेंगे. इस पवित्र धर्मग्रंथ का ज्ञान अंगिरा ऋषि के हृदय में प्रकट हुआ था। इस वेद को ब्रह्मवेद, छन्दवेद, अमृतवेद और आत्मवेद भी कहते हैं। इसमें 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त और 5977 मंत्र हैं। मंत्र संख्या के संबंध में विद्वानों में मतभेद भी हैं।
स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी ने अथर्ववेद के विषय में कहा है – “अथर्ववेद में ज्ञान, कर्म एवं उपासना तीनों का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है. वहाँ गूढ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधनों की कुंजी है। जीवन एक सतत संग्राम है। अथर्ववेद जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है।”
AtharvaVeda Sacred Quotes in Hindi अथर्ववेद के पवित्र विचार
1. मनुष्य वर्तमान क्लेशों को देख कर आने वाले क्लेशों को यत्नपूर्वक रोक कर आनंद भोगे।
2. जो पुरुषार्थी मनुष्य निष्कपट, सरल-स्वभाव होकर अग्रगामी होता है, वह सभी संकटों का हटा कर आनंद प्राप्त करता है।
3. गृहपत्नी घर को घृत-दुग्धादि अमृत पदार्थों से परिपूर्ण रख कर सब कुटुम्बियों को स्वस्थ और पुष्ट रखें और सब स्त्री-पुरुष धार्मिक, पुरुषार्थी और धनी होकर चोर-उचक्के, सिंहादि दुष्ट पशुओं से रक्षा करते हुए बस्ती को बसाए रखे।
4. संतान माता-पिता की आज्ञाकारी और माता-पिता संतानों के हितकारी, पत्नी और पति आपस में मधुरभाषी और सुखदायी हों।
5. पराजय अपयश, कुटिल आचरण और द्वेष हमारे पास कभी न आएँ।
6. सब कुछ हमें सुख-शांति देने वाला हो।
7. जल में अमृत है और जल ही औषधियाँ हैं।
8. मुझे सुख-शांति मिले, अभय मिले।
9. मेरे दाएँ हाथ में पुरुषार्थ है, इसलिए जीत तो मेरे बाएँ हाथ में है।
10. उन्नत होना और आगे बढ़ना प्रत्येक जीवन का लक्ष्य है।
11. सैकड़ों हाथों से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बिखेरो।
12. हम यशस्वी होकर पृथ्वी पर विचरें।
13. सद्बुद्धि ही संसार में सर्वश्रेष्ठ वस्तु है, जिसने अपनी विचारधारा शुद्ध कर ली उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया।
14. असत्य नहीं, सत्य बोलिए। सत्य के पथ पर चलना, शांतिदायक मार्ग है।
15. मनुष्य महादुःखदायिनी निर्धनता को प्रयत्नपूर्वक दूर हटाएँ।
16. मनुष्य दूसरों की वृद्धि देख कर कभी डाह न करें, अपितु दूसरे की उन्नति में अपनी उन्नति जाने।
17. मनुष्य सब स्थान और सब काल में शांतिदायक कर्म करें।
18. जो मनुष्य सती स्त्री को पाप में लगावें, मित्रघाती हो और वयोवृद्ध होकर भी अज्ञानी हो, वह विद्वानों में नीच गति पाता है।
इसे भी पढ़ें:
- चाणक्य (कौटिल्य)
- राष्ट्र संत स्वामी विवेकानंद / Swami Vivekanand
- Ishwar Chandra Vidyasagar The Great Reformer
- Lord Gautam Buddha Hindi Biography
- संत कबीरदास की जीवनी हिंदी में
- Great Indian Mother Jijabai जीजाबाई
Join the Discussion!