प्रस्तुत पोस्ट Karva Chauth Vrata in Hindi मे सुहागिनों द्वारा बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाए जानेवाले त्योहार करवा चौथ के विषय में चर्चा करेंगें ।

करवा चौथ: श्रध्दा भाव प्यार व समर्पण, सुहागिनों का सबसे बड़ा त्यौहार
करवा चौथ सुहाग की सलामती का पर्व और चांद से सुख समृद्धि मांगने का पर्व है। इस दिन सारे श्रृंगार करके, सुहागिनें मां पार्वती और भगवान शिव के साथ चांद की पूजा कर मांगती हैं खुशियों का वरदान। पति की लंबी आयु के लिए विवाहिताएं करवा चौथ का निर्जल व्रत रखती हैं। यह व्रत सूर्य उदय होने से पूर्व प्रारंभ होता और चंद्रमा के उदय होने के साथ संपन्न होता है।
सौभाग्यवती रहें
करवाचौथ पर उदित होते चंद्रमा का पूजन एवं अर्घ्य देने का विधान है। कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला यह करक चतुर्थी व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां करती हैं।
श्रद्धा और प्यार
‘करवाचौथ’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी’। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
सास की भेंट सरगी
करवाचौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है।
पहला करवाचौथ
नवविवाहिता के पहले करवा चौथ पर कुछ परिवारों में मायके से ससुराल में उपहार स्वरूप वस्त्र और श्रृंगार का सामान भिजवाया जाता है, जिसे पहन कर ही नवविवाहिता यह पूजा करती हैं। करवा चौथ के दिन छोटी बहू, परिवार की बड़ी बहू या फिर सास को करवा और मिष्ठान्न प्रदान कर अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती हैं।
सोलह श्रृंगार
करवाचौथ के दिन विवाहित स्त्रियां सुंदर कपड़े, गहने पहन कर सोलह श्रृंगार करती हैं और चंद्रमा की पूजा करती हैं। यह सत्य है कि स्त्रियों को सुंदर कपड़ों और गहनों से विशेष लगाव होता है। हिन्दू परंपराओं के अनुसार श्रृंगार की बहुत-सी चीज़ें केवल स्त्री के रूप को नहीं निखारती बल्कि उस पर सकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं। श्रृंगार की कुछ वस्तुएं जैसे नथनी, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां आदि उसके विवाहित होने का संकेत देती हैं।
मेहंदी लगाने का क्रेज
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का ये व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़-भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली-नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ-पांव पर तरह-तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।
करवाचौथ का इतिहास
बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया.
ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। ऐसी मान्यता है कि उसी दिन से करवा चौथ मनाने व व्रत की परम्परा शुरू हुई। आज बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता हैं ।
करवाचौथ पूजन
करवाचौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं द्वारा मिलकर व्रत की कथा सुनते समय चीनी अथवा मिट्टी के करवे का आदान-प्रदान किया जाता है तथा घर की बुजुर्ग महिला जैसे ददिया सास, सास, ननद या अन्य सदस्य को बायना, सुहाग सामग्री, फल, मिठाई, मेवा, अन्न, दाल आदि एवं धनराशि देकर और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया जाता हैं।
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इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म पर एक कथा का उल्लेख मिलता हैं। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।
करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे-धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है। करवा चौथ के बाद पहले तो रातों में धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है और दीपावली आते-आते दिन में भी ठंड बढ़नी शुरू हो जाती हैं।
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि Karva Chauth Vrata in Hindi
व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी। यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है।
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इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान हैं। चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडिय़ां, शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए। सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अध्र्य दें, आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें।
पूजन हेतु मंत्र
‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
चांद को अर्क
जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
करवाचौथ और आज का समाज
करवा चौथ का सामाजिक पक्ष भी बेहद सशक्त है लेकिन इसके साथ ही इसमें कुछ विरोधाभास भी है। भारतीय समाज में अकसर ज्यादातर व्रत महिलाएं ही रखती हैं। पति की लंबी उम्र के लिए तो पत्नियां व्रत रखती हैं लेकिन पत्नी की लंबी उम्र के लिए पति कभी व्रत नहीं रखते। ना ही समाज और ना ही वेद पुराणों में कहीं भी पतियों को व्रत रखने के लिए कहा गया है।
समाज में महिला समर्थकों की आवाज हमेशा इस तरफ उठी है कि अगर पत्नियां पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रख सकती हैं तो पति क्यूं नहीं व्रत रखते? लेकिन वहीं कुछ लोग महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले इस व्रत को सही ठहराते हैं। उनके अनुसार महिलाओं का यह व्रत रखना यह दर्शाता है कि महिलाएं पुरुषों का कितना ख्याल रखती हैं। यह महिलाओं के ममतामयी पक्ष को दर्शाता है जो अपने परिवार और पति का हमेशा भला चाहती हैं।
आखिर पति क्यूं ना रखें व्रत!
माना कि परंपरा के अनुसार पतियों का व्रत रखना जरूरी नहीं है लेकिन अगर पति भी पत्नियों के लिए करें तो इससे उनके आपसी संबंधों में मधुरता आ सकती है. मान्यताओं के अनुसार पति के लिए ऐसा कोई व्रत और उपवास तो नहीं बताया गया है फिर भी करवाचौथ के दिन वे पत्नी का साथ देने के लिए कम से कम फलाहार पर तो निर्भर रह ही सकते हैं।
करवा चौथ की कथा
इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक बहन और सात भाइयों की कथा बहुत प्रसिद्ध है। बहुत समय पहले की बात है एक लड़की के सात भाई थे। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवाचौथ पर वह अपने मायके आ गई। उसने करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवाचौथ होने की वजह से वह भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और बड़ी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी।
उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गए। उन्होंने बहन का व्रत समाप्त कराने के लिए पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबीयत खराब होने लगी। खबर सुन कर वह अपने ससुराल चली तो रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती जी के साथ मिले। पार्वती जी ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है क्योंकि उसने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था।
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यह सुनकर बहन ने अपने भाइयों की करनी के लिए क्षमा मांगी। पार्वती जी ने कहा कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा। इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई और उसी के अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया।
महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
चंद्रमा की पूजा का महत्व
छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार जो चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती हैं। करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओ सहित सभी को बधाई हो।
पोस्ट लेखक : सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
(सहायक उपानिरीक्षक -रक्षा सेवाऐं और
स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )
निवास – ‘श्री हरि विष्णु कृपा भवन ‘
ग्राम – श्री गर्गवास राजबेरा, पोस्ट ऑफिस – ऊण्डू
तहसील उपखंड – शिव, जिला – बाड़मेर
पिन कोड – 344701 राजस्थान ।
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