Chhath Puja Story in Hindi छठ पूजा की कथाएं
प्रति वर्ष दीपावली के बाद छठ महापर्व का अनुष्ठान किया जाता है. यह लोक आस्था का महान पर्व है. यह कार्तिक महीने के षष्ठी को मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी को और समापन सप्तमी को होता है. इसे कार्तिक छठ कहा जाता है.
इसके अलावे चैत मास में भी छठ पूजा होती है जिसे चैती छठ कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी उषा को छठी मैया कहा जाता है, इनकी पूजा सूर्यदेव की पूजा के साथ ही साथ की जाती है. छठ व्रत करनेवाले व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. छठी मैया उनके परिवार और संतान की रक्षा करती हैं.
आइये जानते हैं छठ महापर्व से जुडी कहानियां जो इसके महत्व को दर्शाता है:
भगवान सूर्य के आशीर्वाद से राजा प्रियव्रत को संतान प्राप्ति
बहुत प्राचीन समय की कथा है. एक बहुत प्रतापी राजा हुए. उनका नाम प्रियव्रत था. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. लेकिन उस दम्पती को कोई संतान नहीं थी. महामुनि कश्यप के आदेश पर उन लोगों ने पुत्र प्राप्ति यज्ञ किया. पुत्र भी हुआ, लेकिन मृत पैदा हुआ. इस घटना से राजा और रानी अति विचलित हो गये और अपने -अपने प्राण त्यागने की सोचने लगे.
उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई. उन्होंने राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं. इसीलिए उनको षष्ठी कहा जाता है. उनकी पूजा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा और रानी ने बहुत ही नियम और निष्ठापूर्वक छठी माता की पूजा की और उनको एक सुन्दर-सा पुत्र की प्राप्ति हुई . यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को की गयी थी. कहा जाता है कि तभी से छठ पूजा की जाती है.
माता सीता ने भी की थी छठ पूजा
बात त्रेता युग की है. दशानन रावण का वध करके भगवान् राम विजयादशमी के दिन अयोध्या पहुंचे और उनकी वापसी की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. लंका युद्ध में बहुत सारे लोगों का संहार हुआ था. रावण और उसके भाइयों का प्रभु श्रीराम ने विनाश किया. गुरु और ऋषियों की सलाह पर रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान् राम ने राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में ऋषि मुद्गल भी अयोध्या पधारे.
ऋषि मुद्गल ने माता सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को सूर्यदेव के उपासना करने का आदेश दिया. माता सीता ने उनके आश्रम में रहकर छः दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की. तभी से इस दिन छठ पर्व मनाया जाने लगा.
दानवीर कर्ण ने भी की थी सूर्य की उपासना और छठ पूजा
महाभारत में भी छठ पूजा और सूर्य पूजा के उदहारण मिलते हैं. कहा जाता है कि दानवीर कर्ण ने छठ पूजा की शुरुआत की थी. कर्ण को सूर्यपुत्र भी कहा जाता है. वे सूर्य के बहुत बड़े उपासक थे. कहा जाता है कि वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते है और अपने द्वार पर आये याचक को दान करते थे. वे प्रतिदिन घंटों कमर तक गंगाजल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा अर्चना किया करते थे. भगववान सूर्य और छठी माता की कृपा से वे एक महान योद्धा बने.
द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा
जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी. छठ पूजा के उपरांत इसका फल मिला और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया और उन्होंने बहुत लम्बे समय तक हस्तिनापुर पर राज किया.
इन सभी कथाओं से छठ पूजा की प्राचीनता और महत्ता का पता चलता है. आज यह पर्व देश और विदेशों में भी मनाई जाती है. यह पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मुंबई, दिल्ली, न्यूयॉर्क आदि जगहों पर मनाया जाता है. इस पर्व में लोक मंगल के तत्त्व समाहित है. सूर्य उपासना से जीवन को नव उर्जा मिलती है. छठ माता हम सब पर अपनी कृपा बनाये रखें, देश का विकास हो, सर्वत्र सुख और शांति रहे. यही छठ माता से हमारी प्रार्थना है.
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nishikant Choudhary says
Chhath pooja par vrihad jankari dene ke liye bahut dhanyavad. Kafi rochak kathayen hain .
Pankaj Kumar says
ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका बहुत- बहुत धन्यवाद निशिकांत जी!
Suman Gupta says
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saloni says
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