इस पोस्ट Summer Season Hindi Essay में हम भारत में ग्रीष्म ऋतु का समय और उसके दौरान आम जन को किस प्रकार अपने आहार-विहार का ध्यान रखना चाहिए; इसके बारे में चर्चा करेंगे।

ग्रीष्म ऋतु पर हिंदी निबंध
ग्रीष्म ऋतु का का आगमन हो रहा है। ग्रीष्म ऋतु में दो महीने मूलतः आते हैं – ज्येष्ठ और आषाढ़। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु हालांकि मनुष्य मात्र के लिए कष्टकारी अवश्य है, परन्तु तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। रोमन कैलेंडर के मुताबिक मई और जून में ग्रीष्म ऋतु रहती है।
मनमोहक और रागयुक्त वसंत का अन्त होते ही ग्रीष्म की प्रचंडता आरम्भ हो जाती है। वसन्त ऋतु जहाँ काम से, वहीं ग्रीष्म क्रोध से सम्बन्धित है। ग्रीष्म ऋतु, भारतवर्ष की छह ऋतओं में से एक ऋतु ही है, जिसमें वातावरण का तापमान प्रायः ज्यादा रहता है। दिन बड़े हो जाते हैं रातें छोटी होने लगती है। शीतल सुंगधित पवन के स्थान पर गरम-गरम लू चलने लगती है। धरती पर अधिक गर्मी के चलते नदी-तालाब, सरोवर-पोखर सूखने लगते हैं। हरे बहरे पौधे, फूल आदि मुरझा जाते हैं। दिन बड़े होने लगते हैं।
ऐसा लगता है मानो चहुओर अग्नि की वर्षा हो रही हो। शरद ऋतु का बाल सूर्य ग्रीष्म ऋतु को प्राप्त होते ही भगवान शंकर की क्रोधाग्नि-सी बरसने लगती है। ज्येष्ठ मास में तो ग्रीष्म की अखंडता और भी प्रखर हो जाती है जिससे बहुत अधिक गर्मी पड़ने लगती है। छाया भी छाया ढूंढने लगती है। ऐसे गर्मी के मौसम में शीतल पेय और ठंडा वातावरण ही मन को भाता है।
ग्रीष्म ऋतु में गर्मी की प्रचंडता असहनीय होती है
गरमी के महीने में सूर्य ताप की प्रचंडता का प्रभाव प्राणियों पर पड़े बिना नहीं रहता। शरीर में स्फूर्ति का स्थान आलस्य ले लेता है। तनिक-सा श्रम करते ही शरीर पसीने से सराबोर हो जाता है। कंठ सूखने लगता है। अधिक श्रम करने पर बहुत थकान हो जाती है। इस मौसम में यात्रा करना भी दूभर हो जाता है। यह ऋतु प्रकृति के सर्वाधिक उग्र रुप को दिखाता है।
भारत में सामान्यतया 15 मार्च से 15 जून तक ग्रीष्म मानी जाती है। इस समय तक सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, जिससे सम्पूर्ण देश में तापमान में वृद्धि होने लगती है। इस समय सूर्य के कर्क रेखा की ओर अग्रसर होने के साथ ही तापमान का अधिकतम बिन्दु भी क्रमशः दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता जाता है और मई के अन्त में देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क भागों में इस समय चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को ‘लू’ कहा जाता है।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रायः शाम के समय धूल भरी आँधियाँ आती है, जिनके कारण दृश्यता तक कम हो जाती है। पिछले कुछ सालों में महानगर जैसे दिल्ली आदि में यह प्रदूषण का भी एक कारक बन जाता है। धूल की प्रकृति एवं रंग के आधार पर इन्हें काली अथवा पीली आंधियां कहा जाता है। सामुद्रिक प्रभाव के कारण दक्षिण भारत में इन गर्म पवनों तथा आंधियों का अभाव पाया जाता है।
पर्व- त्योहार
ग्रीष्म माह में अच्छा भोजन और बीच-बीच में व्रत करने का प्रचलन रहता है। इस माह में निर्जला एकादशी, वट सावित्री व्रत, शीतलाष्टमी, देवशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा आदि त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के बाद से श्रावण मास शुरू होता है और इसी से ऋतु परिवर्तन हो जाता है और वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है।
ग्रीष्म ऋतु के आहार-विहार
यदि ग्रीष्म ऋतु में खान-पान और आहारविहार का ठीक से ध्यान नहीं रखा जाय तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। आइये देखते हैं कि इस ग्रीष्म ऋतु में अपने खान-पान का विशेष ध्यान किस प्रकार रखना चाहिए।
क्या लें आहार Summer Season Hindi Essay
ग्रीष्म ऋतु में साठी के पुराने चावल, गेहूँ, दूध, मक्खन, गुलाब का शरबत, आमपन्ना से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति तथा शक्ति आती है। सब्जियों में लौकी, गिल्की, परवल, नींबू, करेला, केले के फूल, चौलाई, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में रस, तरबूज, खरबूजा, एक-दो-केले, नारियल, मौसमी, आम, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभकारी होता है। इस ऋतु में तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। नमकीन, रूखा, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ, दही, अमचूर, आचार, इमली आदि न खाएं तो ज्यादा अच्छा हो। गरमी से बचने के लिए बाजारू शीत पेय (कोल्ड ड्रिंक्स), आइस क्रीम, आइसफ्रूट, डिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें।
इनके सेवन से शरीर में कुछ समय के लिए शीतलता का आभास होता है परंतु ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं। इनकी जगह कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, पानी में नींबू का रस तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबत, जीरे की शिकंजी, ठंडाई, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, दूध और चावल की खीर, गुलकंद आदि शीत तथा जलीय पदार्थों का सेवन करें। इससे सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर का रक्षण किया जा सकता है।
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पोस्ट लेखक: सूबेदार रावत गर्ग उण्डू

( सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाऐं भारतीय सेना और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी ) प्रदेशाध्यक्ष – अखिल भारतीय श्री गर्ग रेडियो श्रोता संघ राजस्थान । निवास :- ‘ श्री हरि विष्णु कृपा भवन ‘ ग्राम :- श्री गर्गवास राजबेरा, तहसील उपखंड :- शिव, जिला मुख्यालय :- बाड़मेर, पिन कोड :- 344701, राजस्थान ।
ji bilkul sahi kaha aapne hum sab ko ye upay karne chahiye
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