डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के सारन जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय था. महादेव सहाय फारसी भाषा के एक अच्छे ज्ञाता थे. साथ ही वे एक अच्छे वैद्य भी थे. उनकी माँ एक धार्मिक महिला थीं. जिस धार्मिकता का असर उनके बच्चों पर भी हुआ. राजेंद्र अपने परिवार में सबसे छोटे थे, इसलिए सबके विशेष प्रिय थे.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद
उनकी आरंभिक शिक्षा छपरा में हुई. उसके बाद वे कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढने गए. वहां एफ. ए. की परीक्षा में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम आये. बी. ए. 1906 और एम. ए. 1907 में अंग्रेजी विषय के साथ उतीर्ण हुए. 1909 में वे गोखले के संपर्क में आये जिन्होंने इनके अन्दर की प्रतिभा को पहचान लिया. वे गोखले के सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी में शामिल हो गए.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का वकालत से राष्ट्रपति तक का सफ़र
राजेंद्र प्रसाद एक अच्छे वकील थे. इनके वकालत की चर्चा दूर- दूर तक फैली हुई थी. चंपारण आन्दोलन के समय इनकी मुलाकात गांधीजी से हुई और तब से ये स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए.
1919 में अंग्रेजों ने जालियांबाला बाग़ में निरपराध लोगों पर गोलियों की बौछार की. इस जघन्य अपराध ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. इस घटना के बाद राजेंद्र प्रसाद अपनी वकालत छोड़ पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.
सत्याग्रह आन्दोलन में उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया. इसी समय वे अस्थमा से ग्रसित हो गए. फिर भी इन्होंने आन्दोलनकारियों का साथ नहीं छोड़ा. 1924 में पटना बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए. 15 जनवरी 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया. उस समय राजेन्द्र प्रसाद जेल में थे. उनकी तबियत ख़राब थी, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें इलाज के लिए जेल से रिहा कर दिया, वे इलाज कराने के बजाय भूकंप पीड़ितों की सहायता में लग गए. लोगों की खूब सेवा की. लोग उन्हें बिहार का गाँधी कहते थे.
1935 में उन्हें बंबई कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया. 1946 के अंतरिम सरकार में कृषि मंत्री बनाये गए. वे भारत के संविधान समिति के अध्यक्ष भी रहे. आजादी मिलने पर उन्हें सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया. वे 12 वर्ष इस पद पर रहे. 1962 में उन्हें भारतरत्न से अलंकृत किया गया. उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें ‘भारत का विभाजन’ और ‘चंपारण सत्याग्रह का इतिहास’ प्रमुख है. 28 फरवरी 1963 को 79 वर्ष की अवस्था में पटना के सदाकत आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज भी वह हम सबके दिलों में अमर हैं, उनका कृतित्व अमर रहेगा.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की महत्वपूर्ण उपलब्धियां
> अपने समय के नामी वकील
> आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे
> सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के सक्रिय सदस्य
> 1935 में कांग्रेस के अध्यक्ष
> 1946 के अंतरिम सरकार में कृषि मंत्री
> संविधान सभा के अध्यक्ष
> देश के प्रथम राष्ट्रपति (1950 – 1962 )
> 1962 में भारतरत्न से अलंकृत
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