Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek शिरडी वाले साईं बाबा सबका मालिक एक
प्रस्तुत पोस्ट Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek में शिरडी वाले साईं बाबा के जीवन चरित का वर्णन किया गया है. आज भी यह एक पहेली है कि महाराष्ट्र के शिरडी नामक एक छोटे से स्थान से आनेवाले साईं वास्तव में हिन्दू थे या मुसलमान. साईं बाबा ने एक बार अपने भक्त को बताया कि “मैं ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ हूँ. मैं आरंभ से पाथरी में रहता था. मेरी माताजी ने मुझे एक फ़कीर को सौंप दिया था”. इस कथन से यह पता चलता है कि साईं बाबा का बालपन में पालन –पोषण किसी फ़कीर के यहाँ हुआ. कहीं कहीं साईं बाबा को साईनाथ कहकर भी बुलाया जाता है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि शायद वे महाराष्ट्र के नाथ सम्प्रदाय से जुड़े हुये थे. वैसे भी वे अपना जीवन यापन अवधूत शैली में करते थे.
उनके बारे में बताया जाता है कि वे योग विद्या में पारंगत थे. योग विद्या की शिक्षा उनको योग गुरु श्री व्यंकुशा गोपालस्वामी से प्राप्त हुआ था. स्थानीय बुजुर्ग लोग बताते हैं कि साईं बाबा अपने युवा काल में बहुत सुन्दर और तेजस्वी थे. वे बहुत उग्र स्वाभाव के थे तथा बड़े व्यक्तियों की तनिक भी परवाह नहीं करते थे. उनके मन में गरीबों के प्रति बहुत दया और करुणा थी. कथा और कीर्तन में बहुत अभिरुचि रखते थे.
द्वारकामाई में जब वे धूनी के सामने ध्यान लगाकर बैठते तो पूर्ण ब्रह्मलीन हो जाते थे. वे अपने भक्तों से कहते थे कि “मैं आपकी सभी भली- बुरी घटनाओं पर नजर रखता हूँ. मुझसे कुछ भी नहीं छिपता. विश्व रूपी रंगमंच पर पर्दा खींचनेवाला मैं एक निमित्त मात्र साधारण मनुष्य हूँ. मेरे हाथों में माया पटल दूर करने की ईश्वर प्रदत्त शक्ति है.
शिरडी वाले साईं बाबा समन्वय के प्रतीक Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek
शिरडी साईं के बारे यह यह जानकारी नहीं मिली कि वे कब, कहाँ और किस धर्म के अनुयायी के घर में पैदा हुये. वे कहा करते थे कि “ अल्ला तेरा भला करेगा. भगवान तेरी रक्षा करेगा”. जो लोग सोचते थे कि बाबा मुसलमान हैं, उन लोगों ने बाबा को हिन्दू ब्राह्मणों जैसा व्यवहार करते देखा. दूसरी ओर जो लोग बाबा को हिन्दू समझते थे, उन लोगों ने बाबा को यवनों जैसा आचरण करते देखा.
हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार साईं बाबा का कर्ण छेदन संस्कार हुआ था. साईं बाबा ने हिन्दू भक्तों को रामनवमी मनाने का निर्देश दिया तो दूसरी तरफ मुसलमान भक्तों को उर्स मनाने को कहा. श्री जन्माष्टमी के अवसर पर बाबा मल्ल युद्ध और पारम्परिक नृत्य का आयोजन करवाते थे तो ईद के अवसर पर उनके निवास पर नमाज अदा की जाती थी. जिस मस्जिद में साईं बाबा रहते थे उसका नाम द्वारकामाई था.
भजन-कीर्तन करना, शंख और घंटा बजाना, अग्नि-पूजा , हवनादि करना, शास्त्रीय विशी से देवी –देवताओं की पूजा करवाना आदि उनके हिन्दू होने का प्रमाण देते हैं तो मुसलमान जैसा पहनावा और बोलचाल उनके मुस्लिम होने का एहसास करवाते हैं. संत कबीर और संत नामदेव की ही तरह ही वे हिन्दू और मुसलमान दोनों से प्रेम करते थे, दोनों को अपन मानते थे. दूसरी ओर दोनों ही सम्प्रदाय के लोगों की उनमें गहरी आस्था थी, जो आज भी देखी जा सकती है. उनका शिरडी आश्रम दोनों धर्मों का समन्वय स्थल है, ऐसा कहा जा सकता है.
साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -1 ( Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek)
गोपालराव नाम का एक इंस्पेक्टर था. वह कोपरगाँव का रहनेवाला था. बाबा के आशीर्वाद से उसे संतान की प्राप्ति हुई. इसी खुशी में वह उर्स मनाना चाहता था. उसने बाबा से इजाजत माँगी. बाबा ने स्वीकृति दे दी. इसे लिए जिला कलेक्टर को आवेदन दिया गया. कलेक्टर ऑफिस का एक कर्मचारी कुलकर्णी ने इसका विरोध किया, लेकिन बाबा की कृपा से सब बाधा हट गयी. साईं बाबा का निर्देश था कि रामनवमी के दिन ही उर्स मनाया जाय. सन 1897 में शिरडी गाँव में सभी ग्रामीणों ने बाबा की आज्ञा से अद्भुत उत्सव मनाया. बाबा की आज्ञा से हिन्दू उर्स मना रहे हैं, यह खबर सुनकर आस-पड़ोस के मुस्लिम भी बड़ी संख्या में उर्स में शामिल हुये. तब से यह प्रतिवर्ष रामनवमी के दिन ही मनाया जाने लगा.
साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -2 ( Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek)
यह प्रसंग 1912 का है. श्री कृष्णराव भीष्म शिरडी पधारे. उन्होंने बाबा के सामने प्रस्ताव रखा कि रामनवमी के दिन रामजन्म का उत्सव मनाया जाय ताकि लोग इस दिन के महत्व को समझ सकें. लोगों की सहमति पर बाबा ने भी हामी भर दी. श्री राम जन्मोत्सव को बहुत ही धूम धाम से मनाया गया. साईं बाबा की अद्भुत परम्पराओं को देखने के बाद यह मानना पड़ता है कि संत सरल चित्त के होते हैं, उनका कोई ख़ास धर्म नहीं होता है. लोक मंगल और मानव सेवा हेतु कोई भी मार्ग, पंथ, संप्रदाय या दल अपना लिया जाए, इससे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता. सेवा कार्य होना चाहिए.
साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -3 ( Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek)
एक बार प्रयाग में कुंभ मेले का अवसर था. शिरडी के बहुत सारे लोगों ने इस पावन अवसर पर प्रयाग जाकर संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने की बात सोची. इसके लिए दासमणि महाराज साईं बाबा से सलाह लेने गए. बाबा ने जबाब दिया कि “बेकार में इतनी दूर जाकर स्नान करने से क्या लाभ. मन चंगा तो कठौती में गंगा. अपना प्रयाग तो यहीं है. बस मन में विश्वास कर लो तो त्रिवेणी स्नान का पुण्य यहीं प्राप्त हो जाएगा.” साईं के कहने का असर हुआ. महाराज ने बाबा के चरणों में अपना सिर रखा. तभी बाबा के दोनों पैरों के अंगूठे से गंगा और यमुना की धारा बह चली. यह देख कर वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए.
जब डॉक्टर को भगवान राम दीखे: साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -4
एक बार एक डॉक्टर और उनके एक मित्र शिरडी वाले साईं बाबा के चमत्कार की कहानी सुनकर उनका तमाशा देखने उनके आश्रम में आये. डॉक्टर साहब भगवान राम के परम भक्त थे. वे छुआछूत को मानते थे. शिरडी वाले साईं बाबा मस्जिद में रहते थे, जिसे देखकर डॉक्टर ने मस्जिद के अन्दर जाकर बाबा से मिलने का विचार त्याग दिया.
उनके मित्र बाबा के पास गए और उनको प्रणाम किया. जब मित्र ने अपनी आँखें खोली तो उन्होंने देखा कि डॉक्टर भी बाबा के चरणों में शीश झुकाकर उनका आशीष ले रहे हैं. उन्हें इस प्रकार देख कर मित्र को आश्चर्य हुआ. बाद में उन्होंने डॉक्टर मित्र से पूछा – “तुम तो मस्जिद में नहीं जानेवाले थे, फिर यह सब कैसे? कोई नाटक तो नहीं कर रहे?” डॉक्टर भी अचकचाकर बोला – “मैं जब यहाँ आया तो मुझे द्वार पर भगवान् राम खड़े दिखाई पड़े और मैं उनके साथ ही यहाँ चला आया. अब तो मैं बाबा के चरणों में हूँ. क्या यह मस्जिद है? डॉक्टर ने साईं बाबा से कहा- “मुझे तो आप में भगवान राम दीख रहे हैं? आज मेरा अहंकार और अविश्वास दूर हुआ”.
साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -5 ( Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek)
बालाराम मानकर नामक एक व्यक्ति अपनी पत्नी की अचानक मृत्यु हो जाने से बहुत दुखी और उद्विग्न था. वह सबकुछ छोड़ छाड़कर शांति की खोज में बाबा की शरण में आ गया. उनके अन्दर संसार के लिए पूर्ण विरक्ति की भावना आ चुकी थी. एक दिन साईं बाबा ने बालाराम को बारह रुपये दिए और मच्छिन्दरगढ़ चले जाने के लिए कहा. बालाराम बाबा को छोड़कर कहीं भी नहीं जाना चाहता था. बाबा ने उसे समझाते हुये कहा कि “ वहीं जाकर योग साधना करो”. बाबा के उसे योग साधना के बारे में बताया और उसकी विधि समझाई.
बाबा बीच- बीच में मच्छिन्दरगढ़ जाकर निर्देश भी देते रहते थे. एक बालाराम ने ने कहा – “ मैं आपके पास ही रहकर योग साधना कर लेता तो आपको बार-बार यहाँ आने का कष्ट नहीं उठाना पड़ता”. बाबा ने उसे समझाते हुये कहा – “ साधना के लिए शांत वातावरण चाहिए. वहां शिरडी में भक्तों की भीड़ में तुम अपने आप को एकाग्र नहीं कर पाते. केवल यह सोचना कि मैं केवल शिरडी में ही सशरीर रहता हूँ, यह तुम्हारा भ्रम है.” इतना कहकर साईं बाबा अदृश्य हो गए. मच्छिन्दरगढ़ में बाबा द्विशरीरी के रूप में प्रकट हुये थे यानि एक ही व्यक्ति का दो जगहों पर एक समय में प्रकट होना. उनका ऐसा चमत्कार लोगों ने पहले भी देखा था.
साईं बाबा से जुड़े प्रसंग -6 ( Shirdi Sai Baba Sabka Maalik Ek)
साईं बाबा के भक्त तहसीलदार नानासाहब चान्दोरकर की बेटी प्रसव के लिए पिता के घर आई हुई थी. प्रसव वेदना के समय उसकी अवस्था गंभीर हो गई. जामनेर जैसे छोटे गाँव में इलाज की सुविधा तो थी नहीं अतः सब लोग चिंतित हो उठे. नानासाहब संकट से मुक्ति के लिए बाबा का स्मरण करने लगा. शिरडी में बैठे साईं बाबा को अतीन्द्रिय शक्ति से सब कुछ ज्ञात हो गया. उन्होंने खानदेश जा रहे एक साधु को कहा कि वे मार्ग में जामनेर रूकते हुए नानासाहब को भभूत और आरती देते जाएँ.
साधु रामगिरि बुवा के पास केवल दो ही रूपये थे. साईं बाबा उनकी बात कहे बिना ही समझ गए थे. उन्होंने साधु को पैसों की चिंता न करने को कहा. रामगिरि बुवा जब जलगांव स्टेशन पर उतरे तो रात के दो बज रहे थे. सुबह होने तक साधु ने स्टेशन पर ही रूक जाना उचित समझा. ठीक उसी समय एक तांगे वाला शिरडी के रामगिरि बुवा को पूछते हुए वहाँ आया और बोला, ‘मुझे नानासाहब ने आपको लाने के लिए भेजा है,” साधु गाँव की सीमा के पास आए तो उसे लघुशंका की इच्छा हुई. वह नीचे उतर कर कुछ दूर आड़ में चले गये. आकर साधु ने देखा कि न तो तांगा वहाँ है और न ही तांगेवाला.
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रामगिरि पता पूछते-पूछते नानासाहब के घर पहुँच गये. उसने बाबा की भेजी भभूत और आरती नानासाहब को दी. भभूत को पानी में घोल कर बेटी को पिलाया. थोड़ी देर में सुरक्षित प्रसव की सूचना मिलने पर नानासाहब का मानसिक तनाव कम हुआ. अब रामगिरि बुवा ने शिकायत के लहजे में नानासाहब से कहा, ”आपने बड़ी कृपा की कि स्टेशन पर तांगा भेजा पर तांगेवाला तो बड़ा ही विचित्र निकला. गाँव के पास आने पर न जाने वह कहाँ गायब हो गया.” नानासाहब पलट कर बोला, “यह आप क्या कह रहे हैं? मैंने तो कोई तांगा नहीं भेजा.” सबको समझते देर नहीं लगी कि यह साईं बाबा का चमत्कार था.
साईं बाबा और उनका ईंट
बाबा एक ईंट अपने सिर के नीचे तकिया बना कर सोया करते थे. सन 1917 की विजयादशमी के कुछ दिन पहले द्वारकामाई मस्जिद की सफाई करने वाले एक बालक से वह ईंट गिर गई. बाबा इस ईंट को अपनी जीवन-संगिनी कहते थे. वे समझ गए कि अब उनका शेष समय आ गया है. वे अपने भक्तों से बोले, “मुझे मेरी बूटी की हवेली (उनकी मूल निवास की जगह ) में ले चलो.” वे वहाँ गए. शिष्यों ने रामविजय ग्रन्थ का पाठ आरम्भ किया. बाबा तो उसे सुनते-सुनते ही अपने शिष्य की गोद में सर टिका कर अंतर्धान हो गए.
साईं बाबा: एक सच्चे फ़कीर
भारत में फकीर की तरह का जीवन व्यतीत करने वाली इस विभूति ने ईशदूत की भांति सारे धर्मों के मूल धर्म से परिचय कराया और एक मस्जिद का नाम द्वारकामाई रखकर शिरडी को एक पवित्र धर्म-संगम तीर्थ बना दिया. कहा जाता है कि जब भारत विभाजन के समय नासिक दंगों से ग्रस्त था तब शिरडी धाम परम शांति और सदभाव की स्थली बना हुआ था. बाबा ने धर्म का सत्य प्रयोजन अपने आचरण से जग-जाहिर कर दिखाया. साईं बाबा का दर्शन अमोघ है. उनके दर्शन को लोग दूर-दूर से लोग आते हैं और बाबा के दर से कोई खाली वापस नहीं आता. सबका मालिक एक कहकर बाबा ने सबको अपनाया और सबको सबको स्वीकार किया.
श्रद्धा और सबूरी मात्र दो शब्द नहीं बल्कि साईं बाबा के जीवन का सर्वोच्च दर्शन है. सच ही कहा गया है हमारा देश भारत संतों और फकीरों का देश है. इस देश में साईं बाबा जैसे संत का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने लोक मंगल और सौहार्द का सन्देश दिया. साईं बाबा की कृपा भारत वर्ष पर बनी रहे ताकि यह दिन- दूनी रात चौगुनी तरक्की करता रहे. जय हो साईं बाबा की.
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