प्रस्तुत पोस्ट International Women’s Day in Hindi यानी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस में इस दिन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे. यूँ तो भारतीय वांग्मय में महिलाओं या नारियों को देवी माना गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं. लेकिन इक्कीसवीं सदी में नारियों का महत्व और भी बढ़ गया है. आइये जानते हैं कैसे?

क्यों मनाते हैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
विश्व महिला दिवस के दिन पूरी दुनिया भर की महिलाओं को सम्मान दिया जाता हैं, उनका गुणगान किया जाता हैं। कई देशों में इस दिन अवकाश भी रखा जाता हैं। और कई तरह से इस दिन को मनाया जाता हैं लेकिन क्या महिलाओं की स्थिति दुनियाँ के किसी भी देश में इतनी सम्मानीय हैं? क्या महिलाएं अपने ही घर एवम देश में सुरक्षित हैं? उनके अधिकारों की क्या बात करें, जब उनकी सुरक्षा ही सबसे बड़ा विचारणीय मुद्दा है। ऐसे में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस जैसे दिन समाज को दर्पण दिखाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
माना कि एक दिन से महिला विकास संभव नहीं, लेकिन कहीं ना कहीं, यह एक दिन भी पूरी दुनियाँ को एक साथ इस ओर सोचने का मौका देता हैं, जो हर हाल में महत्वपूर्ण है। इसलिए इस एक दिन को छोटा समझ कर इसे भुलाने की गलती ना करे, बल्कि एकजुट होकर इस एक दिन को साकार बनाये, ताकि देश-विदेश, हर जगह महिला सशक्तिकरण की ओर कार्य किया जा सके।
महिलाओं पर हिंसा – अति दुर्भाग्यपूर्ण
भारत में महिलाएं हर तरह के सामाजिक, धार्मिक, प्रान्तिक परिवेश में हिंसा का शिकार हुई हैं। महिलाओं को भारतीय समाज के द्वारा दी गई हर तरह की क्रूरता को सहन करना पड़ता है चाहे वो घरेलू हो या फिर शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, आर्थिक हो। भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बड़े स्तर पर इतिहास के पन्नों में साफ़ देखा जा सकता है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति आज के मुकाबले बहुत सुखद थी पर उसके बाद, समय के बदलने के साथ-साथ महिलाओं के हालातों में भी काफी बदलाव आता चला गया। परिणामस्वरुप हिंसा में होते इज़ाफे के कारण महिलाओं ने अपने शिक्षा के साथ सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक समारोह में भागीदारी के अवसर भी खो दिए।
महिलाओं पर अत्याचार – चिंता का विषय
हमारे देश में महिलाओं पर बहुत अत्याचार किया जाता रहा है. उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था, उन्हें अपने मनपसंद कपड़े पहनने की अनुमति नहीं थी, जोर जबरदस्ती उनका विवाह करवा दिया जाता था, उन्हें गुलाम बना के रखा जाने लगा, वैश्यावृति में धकेला गया। महिलाओं को सीमित तथा आज्ञाकारी बनाने के पीछे पुरुषवादी सोच थी। पुरुष महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखते थे जिससे वे अपनी पसंद का काम करवा सके। भारतीय समाज में अक्सर ऐसा माना जाता है कि हर महिला का पति ही उसका परमेश्वर है। उन्हें अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखना चाहिए तथा हर चीज़ के लिए उन्हें अपने पति पर निर्भर रहना चाहिए।
पुराने समय में विधवा महिलाओं के दोबारा विवाह पर पाबंदी थी तथा उन्हें सती प्रथा को मानने का दबाव डाला जाता था। महिलाओं को पीटना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। महिलाओं के प्रति हिंसा में तेज़ी तब आई जब नाबालिग लड़कियों को मंदिर में दासी बना कर रखा जाने लगा। इसने धार्मिक जीवन की आड़ में वैश्यावृति को जन्म दिया।
कन्या भ्रूण हत्या एवं अन्य कुरीतियां
मध्यकालीन युग में इस्लाम और हिन्दू धर्म के टकराव ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बढ़ावा दिया। नाबालिग लड़कियों का बहुत कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था और उन्हें हर समय पर्दे में रहने की सख्त हिदायत दी जाती थी। इस कारण महिलाओं के लिए अपने पति तथा परिवार के अलावा बाहरी दुनिया से किसी भी तरह का संपर्क स्थापित करना नामुमकिन था। इसके साथ ही समाज में बहुविवाह प्रथा ने जन्म लिया जिससे महिलाओं को अपने पति का प्यार दूसरी महिलाओं से बांटना पड़ता था। दहेज़ के लिए नववधू की हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और अन्य सामाजिक विषमताएं इसके उदाहरण हैं।
इसके अलावा महिलाओं को भरपेट खाना न मिलना, सही स्वास्थ्य सुविधा की कमी, शिक्षा के पर्याप्त अवसर न होना, नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न, दुल्हन को जिन्दा जला देना, पत्नी से मारपीट, परिवार में वृद्ध महिला की अनदेखी आदि समस्याएँ भी महिलाओं को सहनी पड़ती थी।
क्या कहते हैं आंकड़े
भारत में महिला हिंसा से जुड़े केसों में होती वृद्धि को कम करने के लिए 2015 में भारत सरकार जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) बिल लाई। इसका उद्देश्य साल 2000 के इंडियन जुवेनाइल लॉ को बदलने का था क्योंकि इसी कानून के चलते निर्भया केस के जुवेनाइल आरोपी को सख्त सजा नहीं हो पाई। इस कानून के आने के बाद 16 से 18 साल के किशोर, जो गंभीर अपराधों में संलिप्त है, के लिए भारतीय कानून के अंतर्गत सख्त सज़ा का प्रावधान है। आइए हम प्रण लें कि महिलाओं व बहन बेटियों को उचित सम्मान देंगे, उन पर हो रहे अत्याचारों का खुलकर विरोध के साथ रोकथाम व सुरक्षा हेतु हरसंभव प्रयास करेंगे।
हम सब एकजुट होकर उत्पीड़न मुक्त व महिला सशक्तिकरण के कार्य करेंगे। यह केवल महिला दिवस तक ही समिति नहीं रहकर हर दिन सम्मान देने की जरूरत हैं। महिला दिवस पर हम सबको यह विचार करना चाहिए कि किस प्रकार महिलाओं को उचित अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, समानता आदि मिले कि वह स्वाबलंबी बनकर देश और विश्व के विकास में अपना योगदान कर सकें.
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पोस्ट लेखक: सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
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