यह कहानी महाराज कृष्णदेव राय के शासनकाल की है. वे विजय नगर राज्य के प्रसिद्ध राजा थे. यह राज्य वर्तमान में दक्षिण भारत में स्थित था. उनके राजगुरु व्यास राय थे.
उन्हीं दिनों दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध संत हुए – पुरंदरदास. वे सादगी – भरा जीवन जीते थे. कृष्णदेव राय के सामने उनके राजगुरु प्राय: पुरंदरदास जी सादगी की प्रशंसा करते थे. उन्होंने जब उनके मुख से पुरंदरदास जी की कई बार प्रशंसा सुन ली तो उन्होंने सोचा – ‘क्यों न संत पुरंदरदास जी की परीक्षा ली जाए.’
एक दिन कृष्णदेव राय ने अपने सेवकों को भेजकर पुरंदरदास जी को महल में बुलवाया. महाराज ने संत को भिक्षा में चावल दिए. संत प्रसन्न होकर बोले – “महाराज, आप रोज मुझे इसी तरह भिक्षा दिया करें.”
भिक्षा लेकर प्रसन्न मन से पुरंदरदास अपने घर लौट आए और भिक्षा की थैली अपनी पत्नी को सौंप दी. उनकी पत्नी सरस्वती देवी जब चावल बीनने बैठीं तो उन्हें चावलों में बहुत -से हीरे दिखाई दिए. उन्होंने अपने पति से पूछा –“ये चावल आप कहाँ से लाए हैं?”
पुरंदरदास ने कहा – “मुझे आज महाराज कृष्णदेव राय ने बुलाया था. उन्होंने ही ये चावल दिए हैं.”
पति की बात सुनकर सरस्वती देवी समझ गई कि चावल में हीरे क्यों हैं. वे चावलों में से हीरे बीनकर घर के पिछवारे मिट्टी के ढेर पर फेक आई और चावलों को खाने के लिए पका लिया.
अगले दिन पुरंदरदास जी फिर भिक्षा के लिए राजमहल गए. उनके मुख पर प्रसन्नता देखकर राजा ने समझा कि हीरों के कारण संत का मुख चमक रहा है. राजा ने फिर चावलों में हीरे मिलाकर उन्हें भिक्षा दे दी. एस प्रकार एक सप्ताह तक पुरंदरदास राजमहल में भिक्षा के लिए आते रहे और राजा उन्हें हीरे मिलाकर चावल देते रहे.
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एक सप्ताह बीत जाने के बाद राजा कृष्णदेव राय ने अपने गुरु व्यास राय से कहा – “गुरुदेव, आप तो कहते थे कि पुरंदरदास जी जैसा कोई दूसरा वैरागी नहीं है, परन्तु मुझे तो वे लोभी जान पड़ते हैं. यदि आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो उनके घर चलिए और सच्चाई अपनी आँखों से देख लीजिए.”
कृष्णदेव राय राजगुरु व्यास राय के साथ संत पुरंदरदास जी की कुटिया पर पहुँचे. वहाँ पहुंचकर उन्होंने देखा की लिपे-पुते आंगन में तुलसी के पौधे के निकट बैठकर पुरंदरदास जी की पत्नी चावल बीन रही हैं.
राजगुरु ने सरस्वती देवी से कहा – “बहन, क्या आप चावल बीन रही हैं ?”
सरस्वती देवी ने कहा – “हाँ भाई, मैं चावल बीन रही हूँ. इन चावलों में कोई गृहस्थ कंकड़ डाल देता है. मेरे पति इन चावलों को इसलिए ग्रहण कर लेते हैं कि भिक्षा देने वाले का दिल दुखी न हो, इन कंकडों को बीनने में बहुत समय लगता है.”
राजा कृष्णदेव राय ने कहा – “बहन, तुम बहुत भोली हो! ये कंकड़ नहीं हैं, ये तो बहुमूल्य हीरे हैं.”
सरस्वती देवी बोलीं – “हीरे होंगे आपके लिए, हमारे लिए तो ये मात्र कंकड़ हैं. जब हम जीवन का आधार धन को मानते थे, तब ये हमारी दृष्टि में हीरे थे, परन्तु अब हमने जीवन का आधार भगवान को मान लिया है तो ये हमारे लिए कंकड़ ही हैं.”
सरस्वती देवी ने चावलों में से बीने हुए हीरों को घर के पीछे कूडें में फ़ेंक दिया, जहाँ उन्होंने पहले बीने हीरों को फेंका था.यह देखकर कृष्णदेव राय लज्जित हो गए. वे श्रद्धा पूर्वक सरस्वती देवी के चरणों में झुक गए. यह देख व्यास राय मंद-मंद मुस्कराने लगे.
वाकई महान देश भारत में एक से बढ़कर एक संत हुए हैं जिनका जीवन अनुकरणीय और प्रेरणादायी है. इसलिए भारत को धर्म और अध्यात्म का देश कहा जाता है. जबतक भारत भूमि में ऐसे संत होते रहेंगे भारत का धर्म ध्वज लहराता रहेगा.
INSPIRATIONAL STORIES IN HINDI says
jabrdatttttt.. possst he bhiiiii mjaaa agyaaaa padkeeeeee mee sharee bhiiii krugaaaa
Pankaj Kumar says
Thanks for comment!