Famous Quotes by Lord Krishna in Hindi
1. जब दो व्यक्ति एक दूसरे के निकट आते हैं तो एक दूसरे के लिए सीमायें और मर्यादायें निर्मित करने का प्रयत्न करते हैं। हम यदि सारे संबंधों पर विचार करें तो देखेंगे की सारे संबंधों का आधार यही सीमायें हैं जो हम दूसरों के लिए निर्मित करते हैं और यदि अनजाने में भी कोई व्यक्ति इन सीमाओं को तोड़ता है तो उसी क्षण हमारा ह्दय क्रोध से भर जाता है।
किन्तु इन सीमाओं का वास्तविक रूप क्या है? सीमाओं के द्वारा हम दूसरे व्यक्ति को निर्णय करने की अनुमति नहीं देते; अपना निर्णय उस व्यक्ति पर थोपते हैं। अर्थात किसी की स्वतन्त्रता का अस्वीकार करते हैं और जब स्वतन्त्रता का अस्वीकार किया जाता है तो उस व्यक्ति का ह्दय दुख से भर जाता है और जब वो सीमाओं को तोड़ता है तो हमारा मन क्रोध से भर जाता है। क्या ऐसा नही होता?
पर यदि एक-दूसरे की स्वतन्त्रता का सम्मान किया जाय तो किसी मयादाओं या सीमाओ की आवश्यकता ही नहीं होती। अर्थात जिस प्रकार स्वीकार किसी संबंध का देह है। क्या वैसे ही स्वतन्त्रता किसी संबंध की आत्मा नहीं?
स्वयं विचार कीजिए!
2. निर्णय के क्षण में हम हमेशा ही किसी अन्य व्यक्ति के सुझाव सूचना एवं मंत्रणा या परामर्श को आधार बनाते हैं और हमारे भविष्य का आधार हमारे आज किये हुये निर्णय के ऊपर होता है। तो क्या……? तो क्या हमारा भविष्य किसी अन्य व्यक्ति के दिये हुए सुझाव एवं परामर्श का फल है? क्या हमारा सम्पूर्ण जीवन किसी अन्य व्यक्ति की बुद्धि का परिणाम है?
सबका अनुभव है कि अलग-अलग लोग एक ही स्थिति में अलग-अलग परामर्श देते है मन्दिर में खड़ा भक्त कहता है कि दान करना चाहिए और चोर कहता है कि मौका मिले तो इस मूर्ति के श्रृंगार चुरा लूं। धर्म से भरा ह्दय धर्ममय सुझाव देता है और अधर्म से भरा ह्दय अधर्म का परामर्श देता है। धर्ममय सुझाव का स्वीकार ही मनुष्य को सुख की ओर ले जाता है किन्तु ऐसे परामर्श का स्वीकार करना तभी सम्भव हो पाता है जब ह्दय में धर्म हो। अर्थात किसी का सुझाव अथवा परामर्श स्वीकार करने से पूर्व स्वयं अपने ह्दय में धर्म को स्थापित करना क्या आवश्यक नहीं ?
स्वयं विचार कीजिए!
3. पिता हमेशा ही अपनी सन्तान के सुख की कामना करते हैं उनके भविष्य की चिन्ता करते रहते हैं। इसी कारणवश ही अपनी सन्तानों के भविष्य का मार्ग स्वयं निश्चित करने का प्रयत्न करते रहते हैं। जिस मार्ग पर पिता स्वयं चला है जिस मार्ग के कंकड़ – पत्थर को स्वयं देखा है, मार्ग की छाया मार्ग की धूप को स्वयं जाना है उसी मार्ग पर उसी का पुत्र भी चले यही इच्छा रहती है हर पिता की। निःसंदेह उत्तम भावना है ये… किन्तु तीन प्रश्नों के ऊपर विचार करना हम भूल ही जाते हैं। कौन से तीन प्रश्न?
Famous Quotes by Lord Krishna in Hindi के अलावे इसे भी पढ़ें: मुरारी बापू के अनमोल विचार
पहला – क्या समय के साथ प्रत्येक मार्ग बदल नहीं जाते? क्या समय हमेशा ही नई चुनौतियों को लेकर नहीं आता? तो फिर बीते हुए समय के अनुभव नई पीढ़ी को किस प्रकार लाभ दे सकते हैं?
दूसरा – क्या प्रत्येक सन्तान अपने माता- पिता की छवि होता है? हां संस्कार तो सन्तानों को अवश्य माता-पिता देते हैं। किन्तु भीतर की क्षमता तो स्वयं ईश्वर देते हैं। तो जिस मार्ग पर पिता को सफलता मिली है तो विश्वास है कि उसी मार्ग पर उसकी सन्तानों को भी सफलता और सुख प्राप्त होगा?
तीसरा – क्या जीवन का संघर्ष और चुनौतियों लाभकारी नहीं होती? क्या प्रत्येक नया प्रश्न प्रत्येक नये उत्तर का द्वार नहीं खोलता? तो फिर सन्तानों को नई-नई चुनौतियों और नये-नये प्रश्नों से दूर रखना ये उनके लिए लाभ करना कहलायेगा या हानि पहुँचाना?
अर्थात जिस प्रकार मनुष्य के भविष्य के मार्ग का निर्माण करना श्रेष्ठ है वैसे ही सन्तानों के जीवन का मार्ग निश्चित करने के बदले उन्हे नये संघर्षो के साथ जूझने के लिए मनोबल और ज्ञान देना अधिक लाभदायक नहीं होगा?
स्वयं विचार कीजिए!
4. सबके जीवन मे ऐसा प्रसंग अवश्य आता है कि सत्य कहने का निश्चय होता है ह्दय में। किन्तु मुख से सत्य निकल नहीं पाता। कोई भय मन को घेर लेता है किसी घटना एवं प्रसंग के विषय मे बात करना या स्वयं से कोई भूल हो जाये उसके बारे मे कुछ बोलना।
क्या ये सत्य है? नहीं …. ये तो केवल तथ्य है। अर्थात जैसा हुआ वैसा बोल देना सामान्य सी बात है किन्तु कभी-कभी उस तथ्य को बोलते हुये भी भय लगता है कदाचित किसी दूसरे की भावनाओं का विचार आता है मन में! दूसरे को दुख होगा ये भय भी शब्दों को रोकता है तो ये सत्य क्या है?
जब भय रहते हुए भी कोई तथ्य बोलता है तो वो सत्य कहलाता है। वास्तव में सत्य कुछ और नहीं । केवल निर्भयता का दूसरा नाम है और निर्भय होने का कोई समय नहीं होता। क्योंकि निर्भयता आत्मा का स्वभाव है। अर्थात प्रत्येक क्षण क्या सत्य बोलने का क्षण नहीं होता?
स्वयं विचार कीजिए!
5. पूर्व आभासों के आधार पर हम भविष्य के सुख-दुख की कल्पना करते हैं। भविष्य के दुख का कारण दूर करने के लिए हम आज योजना बनाते हैं। किन्तु कल के संकट को आज निर्मूल करने से हमें लाभ मिलता है या हानि पहुँचती है? ये प्रश्न हम कभी नहीं करते। सत्य तो यह है कि संकट और उसका निवारण साथ जन्मते हैं व्यक्ति के लिए भी और सृष्टि के लिए भी…… नहीं ?
आप अपने भूतकाल का स्मरण कीजिए, इतिहास को देखिए आप तुरन्त ही ये जान पायेंगे कि जब-जब संकट आता है तब-तब उसका निवारण करने वाली शक्ति भी जन्म लेती है!
यही तो संसार का चलन है वस्तुतः संकट ही शक्ति के जन्म का कारण है प्रत्येक व्यक्ति जब संकट से निकलता है तो एक पद आगे बढ़ा होता है अधिक चमकता हुआ होता है आत्मविश्वास से भरा होता है न केवल अपने लिए अपितु विश्व के लिए भी… क्या यह सत्य नहीं ? वास्तव में संकट का जन्म है अवसर का जन्म! अपने आपको बदलने का, अपने विचारों को ऊँचाई पर करने का सत्य, अपनी आत्मा को बलवान और ज्ञान मंडित बनाने का सत्य! जो ये कर पाता है उसे कोई संकट नहीं होता| किन्तु जो यह नहीं कर पाता वो तो स्वयं एक संकट है। स्वयं के लिए भी और संसार के लिए भी!
स्वयं विचार कीजिए!
6. परम्परा में धर्म बसता है और परम्परा ही धर्म को सम्भालने का कार्य करती है यह सत्य है! क्या केवल परम्परा ही धर्म है?
सत्य तो यह है कि जिस प्रकार पाषाण में शिल्प होता है उसी प्रकार परम्परा में धर्म होता है! इस पत्थर में शिल्प है ये पत्थर शिल्प नहीं ! शिल्प को उजागर करने के लिए उसे तोड़ना पड़ता है अनावश्यक भागो को दूर करना पडता है उसी प्रकार परम्पराओं में धर्म ढूढना पड़ता है! जिस प्रकार मेरे(कृष्ण) द्वारा इन्द्र पूजा की परम्परा को तोडकर गोवरधन पूजा का धर्म न ढूंढा जाता तो यादवों को उनकी मुक्ति का मार्ग नहीं मिल पाता!
अर्थात परम्परा को पूर्णतः छोड देने वाला धर्म से वंचित रह जाता है और परम्परा का अन्तः अनुकरण करने वाला भी धर्म को प्राप्त नहीं कर पाता!
कहते हैं हंस के पास नीरक्षीर विवेक होता है दूध में मिले पानी को छोडकर केवल दूध ही ग्रहण करता है तो क्या सच्चा धर्म प्राप्त करने के लिए ह्दय में ज्ञान से जन्मा विवेक आवश्यक है?और ऐसे विवेक के बिना जिसे धर्म मान भी लिया जाये जो वास्तव मे धर्म न भी हो! ऐसा भी तो हो सकता है!
स्वयं विचार कीजिए!
7. भविष्य के आधार पर सब आज का निर्णय लेना चाहते हैं! भविष्य मे सुख मिले, भविष्य सुरक्षित हो ऐसे निर्णय आज लेने का प्रयत्न रहता है सबका! आप अपने जीवन को देखिये! क्या आपके अधिकतर निर्णय के पीछे भविष्य का विचार नहीं होता?
और हो भी क्यों न ? अपने जीवन को सरल और सुखमय बनाने का प्रयत्न करने का अधिकार सबका है! पर भविष्य तो कोई नहीं जानता केवल कल्पना ही की जा सकती है तो जीवन के सारे महत्वपूर्ण निर्णय केवल कल्पनाओं के आधार पर करते हैं हम|
क्या निर्णय करने का कोई तीसरा मार्ग हो सकता है? सारे सुखों का आधार धर्म है और वो धर्म मनुष्य के ह्दय में बसता है तो प्रत्येक निर्णय से पूर्व स्वयं अपने ह्दय से एक प्रश्न अवश्य पूछ लेना कि ये निर्णय स्वार्थ से जन्मा है या धर्म से! क्या इतना पर्याप्त नहीं भविष्य के बदले धर्म का विचार करने से क्या भविष्य अधिक सुखपूर्ण नहीं होगा?
स्वयं विचार कीजिए!
8. जब अपने किसी अच्छे कार्य के उत्तर में दुख प्राप्त होता है अथवा किसी के दुष्ट कार्य मे सुख प्राप्त होता है तो मन अवश्य यह विचार करता है कि अच्छा कार्य करने का धर्म के मार्ग पर चलने का तात्पर्य क्या है? पर दुष्ट आत्मा को क्या प्राप्त होता है यह भी देखिए ….. दुष्टता करने वाला ह्दय सदा चंचल रहता है और उबलता रहता है मन में सदा नये-नये संघर्ष उत्पन्न होते हैं! अविश्वास उसे जीवन भर दौड़ाता है तो क्या यह सुख है? जबकि धर्म पर चलने वाला अच्छा कार्य करने वाला सव चरित्र व्यक्ति का ह्दय शान्त रहता है परिस्थ्तियाँ उसके जीवन मे बाधायें नहीं बनती! समाज में सम्मान और मन में सन्तोष रहता है सदा……
अर्थात अच्छा वर्ताव भविष्य में किसी सुख का मार्ग नहीं ! अच्छा वर्ताव स्वयं सुख है अथवा बुरा बर्ताव भविष्य में किसी दुख का मार्ग नहीं ! बुरा बर्ताव स्वयं दुख है अधर्म उसी क्षण दुख उत्पन्न करता है! अर्थात धर्म से सुख नहीं .. धर्म स्वयं सुख है|
स्वयं विचार कीजिए!
9. मनुष्य के जीवन का चालक है भय(डर)! मनुष्य सदा ही भय का कारण ढूंढ लेता है! जीवन मे हम जिन मार्गो का चुनाव करते हैं! वो चुनाव भी हम भय के कारण ही लेते हैं! किन्तु यह भय वास्तविक (REAL) होता है?
भय का अर्थ है आने वाले समय मे विपत्ति की कल्पना करना| किन्तु समय का स्वामी कौन है? न हम समय के स्वामी हैं और न हमारे शत्रु! समय तो ईश्वर के अधीन चलता है! तो क्या कोई यदि आपको हानि पहुँचाने के लिए केवल योजना बनाता है!
तो क्या वो आपको वास्तव मे हानि पहुँचा सकता है? नहीं ……
किन्तु भय से भरा हुआ ह्दय हमें अधिक हानि पहुँचा सकता है क्या यह सत्य नहीं ?
विपत्ति के समय भयभीत ह्दय अयोग्य निर्णय करता है और विपत्ति को अधिक पीडादायक बनाता है! किन्तु विश्वास से भरा ह्दय विपत्ति के समय को भी सरलता से पार कर जाता है! अर्थात जिस कारण से मनुष्य ह्दय में भय को स्थान देता है! भय ठीक उसके विपरीत कार्य करता है क्या यह सत्य नहीं ?
स्वयं विचार कीजिए!
10. जीवन मे आने वाले संघर्षो के लिए मनुष्य स्वंय को योग्य नहीं मानता! जब उसे अपने ही बल पर विश्वास नहीं रहता! तब वो सतगुणों को त्याग कर दुर्गुणों को अपनाता है!
वस्तः मनुष्य के जीवन मे दुर्गुनता जन्म ही तब लेती है जब उसके जीवन में आत्मविश्वास नहीं होता! आत्मविश्वास ही अच्छाई को धारण करता है!
ये आत्मविश्वास है क्या?
जब मनुष्य यह मानता है कि जीवन का संघर्ष उसे र्दुबल बनाता है तो उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं रहता| वो संघर्ष के पार जाने के बदले संघर्ष से छूटने के उपाय ढूंढने लगता है किन्तु वह जब यह समझता है कि ये संघर्ष उसे अधिक शक्तिशाली बनाते हैं ठीक वैसे जैसे व्यायाम करने से देह की शक्ति बढती है तो प्रत्येक संघर्ष के साथ उसका उत्साह बढ़ता है!
अर्थात आत्मविश्वास और कुछ भी नहीं सिर्फ मन की स्थिति है जीवन को देखने का दृष्टिकोण मात्र है और जीवन का दृष्टिकोण मनुष्य के अपने वश मे होता है!
स्वयं विचार कीजिए!
Famous Quotes by Lord Krishna in Hindi के अलावे इसे भी पढ़ें:
- प्रेरणादायी वचन
- बुद्धिमानी से संबंधित अनमोल वचन
- कुछ प्रसिद्ध अज्ञात अनमोल विचार
- Famous Quotes in Hindi and English
- World best Proverbs in Hindi & English
- लोकप्रिय सुभाषित वचन
- क्रिकेट से संबंधित उक्तियाँ
- विश्वास से संबंधित अनमोल वचन
- आस्था/विश्वास से संबंधित अनमोल वचन
- अहंकार से संबंधित अनमोल वचन
- दंभ से सम्बन्धित कुछ अनमोल वचन
Very nice thought ….
Nice line i am fine
Bahut sundar लिखा h 100% सच्चाई