Ganesh Chaturthi गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव; विघ्न विनाशक, मंगलकर्ता, ऋद्धि –सिद्धि के दाता, विद्या और बुद्धि के आगार ‘गणपति’ की पूजा-आराधना का सार्वजनिक उत्सव है. इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी के जन्म-दिन पर यह उत्सव मनाया जाता है.
Ganesh Chaturthi गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव: एक सार्वजनिक पूजा
वैदिक काल से लेकर आज तक,सिंध और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तक तथा भारत में जन में प्रत्येक विचार और विश्वास में गणपति समाए हैं. जैन सम्प्रदाय में ज्ञान का संकलन करनेवाले गणेश या गणाध्यक्ष की मान्यता है तो बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा का विश्वास कभी यहाँ तक रहा है कि गणपति स्तुति के बिना मन्त्र सिद्धि नहीं हो सकती. नेपाली तथा तिब्बती वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश जी को स्थापित रखते रहे हैं. सुदूर पूर्व के देश जापान तक बौद्ध प्रभावशाली राष्ट्रों में गणपति पूजा का कोई न कोई रूप मिल ही जाता है.
गणेशजी की प्रथम पूजा
सनातन धर्म के माननेवालों के पन्च देवताओं में – गणेश, विष्णु, शंकर, सूर्य और भगवती में, गणेश प्रमुख हैं. इसलिए सभी शुभ कार्यों के प्रारम्भ में सर्वप्रथम गणेश की पूजा की जाती है. दूसरी धारणा यह है, ‘शास्त्रों में गणेश को ओंकारात्मक माना गया है. इसी से इनकी पूजा सब देवताओं से पहले होती है.’ तीसरी धारणा यह है, ‘देवताओं ने एक बार पृथ्वी की परिक्रमा करनी चाही. सभी देवता पृथ्वी के चारों ओर गए, किन्तु गणेश ने सर्वव्यापी राम नाम लिखकर उसकी परिक्रमा कर डाली, जिससे देवताओं में सर्वप्रथम इनकी पूजा होती है’. लौकिक दृष्टि से एक बात सर्वसिद्धि है कि प्रत्येक मनुष्य अपने शुभ कार्य को निर्विघ्न समाप्त करना चाहता है. गणपति मंगल-मूर्ति हैं, विघ्नों के हर्ता हैं. इसीलिए इनकी पूजा सर्वप्रथम होती है.
हमारे धर्मग्रन्थ पुराणों में रूपकों की भरमार के कारण गणपति के जन्म का आश्चर्यजनक रूपकों में अतिरंजित वर्णन है. अधिकांश कथाएँ ब्रह्मवैवर्त पुराण में हैं. गणपति कहीं शिव-पार्वती के पुत्र माने गए हैं तो कहीं पार्वती के ही.
गणेश जी के जन्म से जुडी कथाएं
पार्वती से शिव का विवाह होने के बहुत दिनों तक भी पार्वती कोई शिशु न दे पाई तो महादेव ने पार्वती से पुण्यक-व्रत करने का वर दिया. परिणामस्वरूप भगवान गणपति का जन्म हुआ.
नवजात शिशु को देखने को ऋषि, मुनि, देवगण आए आनेवालों में शनिदेव भी थे. शनिदेव जिस बालक को देखते हैं, उनका सिर भस्म हो जाता है, वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है. इसलिए शनि ने बालक को देखने से इंकार कर दिया. पार्वती के आग्रह पर जैसे ही शनि ने बालक पर दृष्टि डाली, उसका सिर भस्म हो गया .
सिर भस्म होने या कटने के सम्बन्ध में दूसरी कथा इस प्रकार है – एक बार पार्वती स्नान करने गई. द्वार पर गणेश को बैठा गई, आदेश दिया कि जब तक मैं स्नान करके न लौटूं किसी को प्रवेश न करने देना. इस बीच शिव आ गए. गणेश ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें भी रोका. शिव क्रुद्ध हुए और बालक का सिर काट दिया.
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तीसरी कथा इस प्रकार है – ‘जगदम्बिका लीलामयी हैं. कैलास पर अपने अंतपुर में वे विराजमान थीं. सेविकाएँ उबटन लगा थीं. शरीर से गिरे उबटन को उन आदि-शक्ति ने एकत्र किया और एक मूर्ति बना डाली. उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं. उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा मांगी. उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाए, बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया, भगवान शंकर अन्तःपुर में आने लगे तो उसने रोक दिया, भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं. उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी – बालक को द्वार से हटा देने की. इन्द्र, वरूण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए – वह महाशक्ति का पुत्र जो था. इसका इतना पराक्रम उचित नहीं, फलत: भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया.पार्वती रो पडीं.
व्रत की तपस्या से प्राप्त शिशु का असमय चले जाना दुखदायी था ही, उस समय विष्णु के परामर्श से शिशु हाथी का सिर काटकर इनको जोड़ दिया गया. मृत शिशु जी उठा. पर उनका शीश हाथी का हो गया. गणपति ’गजानन’ हो गए.
गणेशजी एक महान लेखक
गणेश जी महान लेखक भी हैं, व्यास जी का महाभारत इन्होंने ही लिखा था, वे शिव के गणों के पति होने के कारण ’गणपति’ तथा ‘विनायक’ कहलाए. गज के मुख के समान मुख होने के कारण ‘गजानन’ तथा पेट बढ़ा होने के कारण ‘लम्बोदर’ कहलाए. एक दांत होने के कारण ‘एकदन्त’ कहलाए. विघ्नों के नाश कर्ता होने के नाते ‘विघ्नेश’ कहलाए. ‘हेरम्ब’ इनका पर्यायवाची नाम है.
कहते हैं इनको गजानन, देवों के भूप हैं
जाने संसार ये तो विद्या के रूप हैं
करते चूहे की सवारी
पूजे जग के नर नारी
विद्या के हैं भंडारी
जो कोई इनसे वर मांगे तो देते भरपूर हैं
जाने संसार ये तो विद्या के रूप हैं.
Ganesh Chaturthi गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव का महाराष्ट्र में आयोजन
वर्तमान समाज में इनके जन्म-दिन का उत्सव भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक मनाया जाता है. इसका कारण कुछ लोग यह भी मानते हैं कि महाराष्ट्र के पेशवा प्राय: मोर्चे पर रहते थे. भादों के दिनों में चौमासा के कारण वे राजधानी में ही रहते थे. अतः तभी उन्हें विधिपूर्वक पूजन का अवसर मिलता था.
महाराष्ट्र में Ganesh Chaturthi गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव की प्रथा सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने चलाई थी. पेशवाओं ने गणेशोत्सव को खूब बढ़ावा दिया.
गणेशोत्सव को राष्ट्रीय रूप देने का श्रेय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है. दिया. इसके बाद तो महाराष्ट्र में गणपति का पूजन एक पर्व बन गया. घर-घर और मुहल्ले-मुहल्ले में गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमा रखकर गणेशोत्सव दस दिन तक मनाया जाने लगा. भाद्रपद में शुक्ल-पक्ष की चतुर्दशी को गणेश जी की शोभायात्रा निकली जाती है. गणपति की प्रतिमाओं को समुद्र या नदी या अन्य जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है. उत्सव के प्रत्येक चरण में ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तु जल्दी आ’ अर्थात ‘गणपति बाबा फिर –फिर आइए, अगले वर्ष जल्दी आइए’ के नारे से गगन गूँज उठता है.
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भारत के सभी नगरों और महानगरों में महाराष्ट्र के लोग रहते हैं. उनकी प्रेरणा से और सर्वमंगल-विघ्ननाशक होने के नाते हिन्दू – जन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को बड़े धूमधाम से गणेश जी की शोभा – यात्रा निकालकर आनन्दोत्सव मनाते हैं. अब यह पर्व महाराष्ट्र के अलावे देश के अन्य प्रदेशों और विदेशों में भी मनाया जाने लगा है.
श्री गणेश जी की आराधना से सभी पाप मिट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. प्रेम से बोलिए : विघ्नहर्ता वक्रतुंड भगवान श्री गणेश की जय.
AchhiGyan says
Nice Information ….
सुनील सैनी says
गणेश जी से जुडी अच्छी जानकारी