Bal Gangadhar Tilak Speech/ बाल गंगाधर तिलक का ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ वाला भाषण
भाषण
Bal Gangadhar Tilak/ Lokmanya Tilak / बाल गंगाधर तिलक भारत माता के ऐसे वीर सपूत थे जिन्होंने अपने लेखों के लिये छह वर्षों की जेल की यातना उठाई. जब उन्होंने यह महसूस किया कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की रफ़्तार धीमी पर रही है तो जेल से लौटकर उन्होंने 1916 में Home Rule की स्थापना की. प्रस्तुत speech/भाषण उन्होंने 1917 में होम रूल की स्थापना की पहली वर्षगाँठ के अवसर पर दिया था.
Bal Gangadhar Tilak Speech / ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ वाला भाषण
मैं स्वाभाव से जवान हूँ, भले ही शरीर से वृद्ध हो चुका हूँ. मैं युवावस्था के इस विशेषाधिकार को गवाना नहीं चाहता. जो कुछ भी आज मैं कहने जा रहा हूँ, वह सर्वदा तरुण है. शरीर भले ही वृद्ध, जर्जर और नाश हो सकता है लेकिन आत्मा अमर होती है. इसी तरह यदि हमारे स्वराज्य के क्रिया कलापों में स्पष्ट तौर से गति में कमी आ जाती है तब अंतरात्मा की स्वतंत्रता जो कि शाश्वत और अविनाशी है वह पीछे छूट जायेगी और यही हमारी आजादी को सुनिश्चित करेगी. स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. जबतक यह मुझमें जागृत रहेगा, मैं वृद्ध नहीं हूँ. इस भावना को न कोई हथियार काट सकता है और न ही अग्नि जला सकती है, न जल भिंगो सकता है और न ही हवा सूखा सकती है. हमलोग स्वराज्य की मांग करते हैं और हम लोग इसे अवश्य प्राप्त करेंगे.
राजनीति का विज्ञान वही है जो स्वराज्य से समाप्त होता है न कि बह जो दासता से ख़तम होता है. राजनीति का विज्ञान ही देश का वेद है, आपकी आत्मा है और मैं इसे सिर्फ जागृत करना चाहता हूँ. मैं उस अंधविश्वास को समाप्त करना चाहता हूँ जो अज्ञानी, धूर्त और स्वार्थी लोगों के द्वारा धारण किया गया है.
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राजनीति के विज्ञान के दो भाग हैं. प्रथम भाग ईश्वरीय और दूसरा भाग शैतानिक है. किसी राष्ट्र की दासता का निर्माण दूसरा भाग करता है. राजनीति के शैतानिक भाग का कोई औचित्य नहीं हो सकता है. वह राष्ट्र जो इसे उचित करार देता है, ईश्वर की नजर में पाप का भागी है. कुछ लोग साहस करते हैं और कुछ लोग साहस नहीं करते हैं, उन चीजों की घोषणा करने के लिये जो उनके लिये हानिकारक होती है. राजनीतिक और धार्मिक शिक्षण इसी सिद्धांत का ज्ञान देने में शामिल है. धार्मिक और राजनीतिक शिक्षण पृथक नहीं हैं यद्यपि कि वे ऐसा प्रतीत होते हैं विदेशी शासन के कारण. सभी दर्शन राजनीति विज्ञान में शामिल हैं.
स्वराज्य का अर्थ कौन नहीं जानता. कौन नहीं इसे चाहता. क्या आप यह पसंद करेंगे कि मैं आपके घर में प्रवेश कर जाऊं और आपके रसोई घर पर अधिकार जमा लूँ? मुझे घरेलू मामले की व्यवस्था का अधिकार अवश्य है. हम लोग को कहा गया कि हम स्वराज्य के काबिल नहीं हैं. एक शताब्दी के व्यतीत हो जाने के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत हम लोगों को स्वराज्य के योग्य नहीं मानती. अब हमलोग खुद को योग्य बनाने के लिये खुद ही प्रयास करेंगे. असंगत बहानेबाजी प्रदान करना, किसी प्रकार के लालच का प्रतिकार करना और दूसरे को ऐसा मौका प्रदान करना अंग्रेजी राजनीति को कलंकित करने के सामान है, इंग्लैंड भारत की मदद से बेल्जियम जैसे छोटे से राज्य को बचाने की कोशिश कर रहा है.
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तब यह कैसे कहा जाता है कि हमारे देश में स्वराज्य नहीं है? वे लोग जो हम में दोष ढूंढते हैं, वे लालची लोग हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सर्व दयावान ईश्वर में भी दोष ढूंढ़ लेते हैं. हम लोगों को अवश्य ही किसी की चिंता किये बगैर राष्ट्र की आत्मा को बचाने के लिये कठिन परिश्रम करना चाहिए. हमारे देश की भलाई इसी जन्मसिद्ध अधिकार की रक्षा करने में है. कांग्रेस ने इस स्वराज्य को पाने का प्रस्ताव पारित किया है.
व्यवहारिक राजनीति में हमारे स्वराज्य की इच्छा का प्रतिकार करने के लिये कुछ तुच्छ आपत्तियां उठाई जाती हैं. हमारे अधिकांश लोगों की निरक्षरता उन आपत्तियों में से एक है, परन्तु मेरे विचारानुसार उसे अपने मार्ग में बाधा के तौर पर नहीं आने देना चाहिए. हम लोगों के लिये यह कहना पर्याप्त होगा कि हमारे देश के निरक्षर लोगों के पास मात्र स्वराज्य की स्पष्ट विचारधारा है, उसी तरह से जैसे ईश्वर के बारे में उनकी अस्पष्ट धारणा है.
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वे लोग जो अपने निजी मामलों को कुशलतापूर्वक निबटा लेते हैं, वे अशिक्षित हो सकते हैं किन्तु मुर्ख नहीं हो सकते. वे उतने ही बुद्धिजीवी होते हैं जितना कि एक शिक्षित व्यक्ति. और अगर वे तत्क्षण मुद्दों को समझ सकते हैं तो उन्हें स्वराज्य के सिद्धांत को समझने में या उसे ग्रहण करने में कोई कठिनाई नहीं होती है. अगर निरक्षरता सभ्य कानून की दृष्टि में अयोग्यता नहीं है तो अकारण प्रकृति के नियम में ऐसा क्यों होना चाहिए?
अशिक्षित लोग भी हमारे भाई हैं और उन्हें भी यही अधिकार हैं और वे भी इसी भावना से प्रेरित हैं. अतएव हमलोग हमने कर्तव्य से आबद्ध हैं कि हम लोगों को जागरूक करें. परिस्थितियाँ बदल गयी हैं और अनुकूल हैं. आवाज उठ रही है कि ‘अभी नहीं तो कभी नहीं.’ ईमानदारी और संवैधानिक आन्दोलन अकेले नहीं हैं जो आप लोगों से उम्मीद की गयी हैं. पीछे नहीं हटें और आत्मविश्वास के साथ अंतिम मुद्दे को प्रभु के हाथों में सौंप दें.
[ नासिक 17 मई 1917]
Yogi Saraswat says
स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में बढ़िया , ज्ञानवर्धक और प्रोत्साहन देंती पोस्ट !!
Homemade Solutions in Hindi says
Really great freedom fighter of our country. Jai Hind