कल रात मयंक ने एक स्वप्न देखा. उसने देखा कि अभी उसके सुख के दिन चल रहे हैं. वह समुद्र तट के किनारे बिखरे रेत पर चला जा रहा था. जहाँ –जहाँ भी वह जा रहा था, वहाँ–वहाँ उसके पद चिह्न रेत पर बनते जा रहे थे. लेकिन एक चमत्कारिक बात थी. रेत पर एक जोड़ी के स्थान पर दो जोड़ी पद चिह्न दिख रहे थे. मयंक सोचा, यह दूसरा पद चिह्न किसका है – ईश्वर का! अर्थात वह जहाँ–जहाँ भी गया ईश्वर उसके साथ थे.
अब वह आगे स्वप्न देखता है. वह मुसीबत में है. उसके लिए यह विपत्ति की घड़ी है. वह फिर रेत पर चला जा रहा है. अरे यह क्या? अभी तो सिर्फ एक जोड़ी पद चिह्न बन रहे हैं! यह क्या जब मैं संकट में हूँ तो ईश्वर ने मेरा साथ छोड़ दिया क्या? यह देख कर मयंक को अत्यन्त दुःख हुआ कि ऐसे समय में रेत पर केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिख रहे थे. उसने ईश्वर से शिकायत की – हे ईश्वर ऐसा क्यों? विपत्ति के समय में आपने मेरा साथ क्यों छोड़ दिया? जब मेरे खुशहाली के दिन थे,जब मैं प्रसन्न था तब तब तो आप मेरे साथ थे और विपत्ति में आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?
इस पर ईश्वर ने उत्तर दिया,” अरे पगले, मैंने संकट में भी तेरा साथ नहीं छोड़ा. जब तूने सुख के समय में मेरा साथ नहीं छोड़ा तो मैं संकट के समय में तेरा साथ कैसे छोड़ सकता हूँ?”
“फिर संकट और विपत्ति के समय में मुझे सिर्फ एक जोड़ी पद चिह्न ही क्यों दिखे?” मयंक ने पूछा.
“पुत्र ! संकट के समय मैंने तुम्हें अपनी गोद में उठाया हुआ था, ” ईश्वर ने उत्तर दिया. अतः सिर्फ मरे पद चिह्न ही रेट पर बने.
अतः हमें सुख या दुःख कोई भी स्थिति हो हमेशा ईश्वर को याद करते रहना चाहिए. वे सदैव हमारे साथ होते हैं.
यह लेख भवेश भारद्वाज ने अहमदाबाद से भेजा है. भवेश अभी SAP Consultant के रूप में कार्यरत हैं. इन्होंने MCA की डिग्री देश के एक प्रतिष्ठित Institute से लिया है. इस लेख के लिए भवेश का बहुत शुक्रिया. Thanks.
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