Che Guevara /अर्नेस्टो गुईवारा का जन्म 14 जून 1928 को अर्जेंटीना के एक उच्च मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ. दो वर्ष की आयु में उन्हें दमा हो गया और जीवन पर्यन्त वे इस रोग से ग्रस्त रहे. उनके माता पिता कोर्डोवा आ गए ताकि वहां की जलवायु में उनकी हालत सुधर सके. हालांकि इन सबके बावजूद ची हमेशा रोगी रहे. वे दूसरों बच्चों के साथ खेलने की बजाय शांत भाव से किताबें पढना ज्यादा पसंद करते थे. छोटी आयु में ही उन्होंने मार्क्स और एंजेल का साहित्य पढ़ लिया था. उनका परिवार जुआन पेरोन की तानाशाही के खिलाफ था. उनकी माँ पेरोन के विरुद्ध आन्दोलन में सक्रिय थीं.
1940 के दशक के अंत तक ची को क्रांतिकारी छात्र आन्दोलनों में कोई रूचि नहीं थी. वे विशेष रूप से कुष्ठ रोग की चिकित्सा सीख रहे थे. वे पेरू की कुष्ठ कॉलोनी में रोग का अध्ययन करने गए. अर्जेंटीना लौटने से पहले उन्होंने कोलंबिया, वेनेजुअला और मिआमी की भी यात्रा की.
वे अपनी यात्राओं के दौरान मार्क्सवादी बन चुके थे. 1954 के सितम्बर महीने में वे मेक्सिको शहर के जनरल अस्पताल में काम करने लगे. इसके बाद उनकी मुलाकात फिडेल कास्ट्रो से हुई जिसे क्यूबा से राजनीतिक निर्वासन दिया गया था.
ची उनके शिष्य बन गए तथा क्यूबा के तानाशाह बतिस्ता के खिलाफ आवाज उठाने में सहायता का आश्वासन दिया. एक स्पेनी कप्तान ने उन्हें तथा उनके साथियों को गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी. यहीं उन्हें ची नाम दिया गया जिसको इतालवी भाषा में दोस्त कहा जाता है. ची और कास्ट्रो बंदी बना लिए गए, लेकिन जल्द ही छोड़ दिए गए. कास्ट्रो जानते थे कि वे मेक्सिको में ज्यादा समय नहीं बिता पाएंगे और उसके बाद क्यूबा की क्रांति शुरू हो गई.
ची ने क्रांति में कमांडर और डॉक्टर दोनों की भूमिका निभायी. वे अपने साथियों से सख्ती से काम लेते थे. उनके अनुसार सैनिकों को युद्ध के साथ ही साथ मार्क्सवादी सोच को भी अपनाना चाहिए.
वे कैदियों के साथ क्रूर व्यवहार करते और उन्हें प्राणदंड देने से नहीं चुकते थे. सरकार गिरने के बाद कास्ट्रो ने उन्हें उद्योग मंत्री बनाया. इसके बाद इनकी शादी हुई और वे लम्बे हनीमून पर निकल गए.
जब वे लौटे तो कास्ट्रो के साथ उनके नीति संबंधी टकराव शुरू हो गए. ची के सुझाव हानिप्रद रहे और फिडेल ने उन्हें अपने से अलग कर दिया. ची अपने साथ 120 क्यूबाई लोगों को लेकर अफ्रीकन कांगो चले गए ताकि साम्यवादी क्रांति कर सकें किन्तु असफल रहे.
फिर उन्होंने दक्षिणी अमरीका का रुख किया लेकिन वहां भी उनका विश्लेषण गलत निकला. 8 अक्टूबर 1967 को बोलीविया सेना ने उन्हें गोली मार दी. कहते हैं कि ची ने उनसे कहा था – ‘चलो गोली मारो, तुम सिर्फ एक इंसान को मार रहे हो’.
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