दीवाली दीपों का पर्व है, प्रकाश का पर्व है, ख़ुशी और उल्लास का पर्व है. लेकिन आज इस पर्व का रूप विकृत होता जा रहा है. यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व है लेकिन हम ठीक इसके विपरीत जा रहे हैं. आइए हम इस पर्व के अवसर पर यह विचार करें कि दीवाली कैसे मनायी जाए:
1. देना सीखें : मेरी मुलाकात दो बच्चों से हुई एक क्लास 7 में और एक क्लास 5 में पढ़ती है. मैंने पूछा – आप दीवाली में पटाखे जलाते हो. उन दोनों ने कहा – नहीं. हम एक इको वारियर (Eco warrior) हैं हमने पटाखे नहीं जलाने की शपथ ली है. मेरी मम्मा जो मुझे पैसे देती है उसे मैं डोनेट कर देती हूँ अपने स्कूल के POOR STUDENTS FUND में. मैंने मन ही मन सोचा आज के ये छोटे छोटे बच्चे इस तरह से सोच सकते हैं कि पटाखे न जलाकर उस राशि को दान करना चाहिए तो हम क्यों नहीं.
आइए हम भी कुछ ऐसा करते हैं कि पटाखे जलाकर पर्यावरण को गन्दा करने की बजाय उस धनराशि का या तो book खरीदकर गरीब बच्चों में बाँट दे या कोई भी अन्य काम जो आपको उचित लगे. अपने ऊपर बाजार को हाबी न होने दें.
2. प्रकृति से जुड़े उससे दूर मत भागें : दीवाली मनाने के समय पर आपने विचार किया है कभी. यह वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद मनाया जाता है. आपने गौर किया होगा कि वर्षा के बाद पौधों का तेजी से विकास होता है. बारिश का पानी जहाँ तहां गड्ढों में भर जाता है. कीड़ों मकोड़ों की breeding काफी तेजी से होती है. लोग ज्यादातर बीमार भी इसी समय होते हैं. डेंगू, मलेरिया आदि बीमारी सबसे ज्यादा इसी समय होती है. पुराने समय में दीवाली पर लोग घी के दीये जलाते थे लेकिन आज बाजार इतना हावी हो गया है कि जिसको देखो छोटे छोटे बल्ब जलाकर पूरे आस पड़ोस को जगमगा देते हैं. और इसी में शान समझते हैं लेकिन अगर पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाय तो घी के दीये कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते थे और कीट उसमे जलकर मार जाते थे जिससे पर्यावरण में उनका संतुलन बना रहता था लेकिन आज लड़ी वाले इलेक्ट्रिक बल्ब में सिर्फ बिजली की खपत होती है कीटों पर इसका कुछ असर नहीं होता. पहले तो घी के दीये के सुगंध से वातावरण सुगन्धित हो जाता था. एक स्कूल में एक टीचर ने बच्चों को प्रोजेक्ट में मिट्टी के दीये बनाने का काम दिया. बच्चों ने अपने हाथ से बने दीये में घी डालकर दीवाली में जलाये. आप इस अवसर पर नए पौधे लगा सकते हैं.
3. ख़ुशी को शोर मुक्त बनायें : दीवाली के दिन भगवान् राम अयोध्या लौट कर आने वाले थे. इसी ख़ुशी में लोग इस पर्व को मानते हैं. हम अपनी ख़ुशी को शोर युक्त क्यों मनाएं? मिसेज लता अस्थमा की मरीज हैं. दीवाली के दिन उनके इनहेलर का डोज बढ़ जाता है और उसके बाद भी कई दिनों तक उन्हें दूषित वातावरण होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ता है. दीवाली मनाएं लेकिन अपने पड़ोसियों का भी ध्यान रखें. आपने कभी उन पशु पक्षियों के बारे में सोचा है कि दीवाली के दिन वे इस भयावह शोर और प्रदुषण को किस प्रकार झेलते होंगे. एक बार सोच कर देखें कि आपका पालतू पशु उस दिन कितना डरा होता है.
4. रचनात्मक बनें : दीवाली को रचनाशीलता का पर्व बनायें. घर के बाहर recycled चीजों या पुराने सामानों को reuse करके कुछ बनाये. तोरण बनाये. ध्यान रहे कुछ लोग तोरण द्वार बनाने के लिए केला और अशोक के पेड़ काट देते हैं. ऐसा न करें. रंगों को रंगोली बनायें. घर और पड़ोस की सफाई करें, आदि.
5. दीवाली और उपहार : आज सबसे खास बात यह देखने को मिलती है कि दीवाली पर लोग एक दूसरे को, सगे -संबंधी को उपहार देते हैं. यह बाजार की एक नयी इजाद है. आपने कभी सोचा है कि आप जो मिठाई खरीदते हैं वह सिंथेटिक खोया से बना होता है. दीवाली पर बिकने वाली अधिकांश मिठाई मिलावटी होती है जो जानलेवा होती है. अतः दीवाली पर किसी को गिफ्ट देना है तो इस तरह का गिफ्ट दें जो नुकसानदायक नहीं हो.
6. उत्सव को समुदाय के रूप में मनाएं : दीवाली मिलने मिलाने का पर्व है. आपसी सौहाद्र बढ़ाने का पर्व है इसलिए इस पावन पर्व को अपने आस-पड़ोस के साथ मिलकर मनाएं. दूसरे धर्मं के लोगों के साथ मिलाकर मनाये. यही हमारी संस्कृति रही है.
निवेदन : दीवाली को किस प्रकार प -मित्र (पर्यावरण मित्र ) बनाया जाय, से संबंधित कोई विचार या आईडिया यदि आपके पास है तो अपने comment के माध्यम से हमसे शेयर करें :
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