Surdas ke poem/सूरदास के पद
छाडि मन
हरि बिमुखनि कौ संग, छाडि मन …
कहा भयौ पय पान करायें
बिषु नहीं तजे भुजंग, छाडि मन …
कौवहि कहा कपूर चुगायें
स्वान न्हवाये गंग, छाडि मन …
खर को कहा अगरजा लेपन
मरकत भूषण अंग, छाडि मन …
पाहन पतित बान नहीं भेदे
रीतौ भयौ निषंग, छाडि मन …
सूरदास ए काली कांबरी
चढ़े न दुजौ रंग, छाडि मन ….
In English
Turn away mind, from those who turn from Hari (God)
What is the good in giving cobras milk?
Snakes never lose their venom.
Why waste camphor feeding it to crows
or squander Ganges water washing dogs?
Why go plastering perfume on an ass
or covering a monkey with jewels?
Surdas says, once a blanket’s dyed black
it never takes on a different hue.
Empty your quiver, but arrows cannot pierce
a stone that’s fallen to the ground.
In Hindi
प्रस्तुत पद में कवि सूरदास ‘हरि विमुखन’ शब्द से ऐसे व्यक्तियों की ओर इशारा कर रहे हैं, जिनका ईश्वर भक्ति में मन नहीं लगता। ऐसे व्यक्ति सिर्फ सांसारिक वस्तुएँ पाना चाहते हैं। वे अपने साथ रहनेवालो को भी अपनी तरह का बना देते हैं। कितना भी प्रयत्न करने पर ऐसे व्यक्ति पर हरि यानी भगवान की भक्ति का रंग नहीं चढ़ता।
जिस तरह साँप को कितना भी दूध पिलाओ; वह जहर उगलना नहीं छोड़ता। कौए को कितना भी कपूर चुगाओ; वह अपना कर्कश स्वर नहीं छोड़ता। कुत्ते को गंगा स्नान कराने से भी वह गंदगी के प्रति अपना प्रेम नहीं छोड़ता। गधे को भले ही चंदन का लेप लगा दिया जाए, वह धूल में लोटने की आदत नहीं छोड़ता। बंदर को कितना भी मूल्यवान आभूषण पहना दिया जाए, वह उसे तोड़ कर फेंक ही देगा। काले रंग के कंबल पर कोई दूसरा रंग चढ़ाना बहुत कठिन होता है। पत्थर पर कितने भी तीर चलाओ, वह व्यर्थ ही जाता है। हरि से विमुख व्यक्ति का स्वभाव भी ऐसा ही होता है। उसे कितना भी समझाओ, कितना भी ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाओ; पर उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं जागता।
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