प्रेमचंद जमीन से जुड़े हुए कथाकार और उपन्यासकार थे. उनका बचपन काफी संघर्षों भरा था, जो उनकी रचनाओं में भी दीखता है. उन्हें ग्राम्य जीवन की बहुत अनोखी परख थी. उनके उपन्यास गोदान को ग्रामीण संस्कृति का महाकाव्य कहा जाता है. उनका पूरा साहित्य दलित, दमित, स्त्री, किसान और समाज में हाशिये पर जी रहे लोगों की लड़ाई का साहित्य है, जिसमें समता, न्याय, चेतना और सामाजिक परिवर्तन की घोषणा है. आम लोगों की आसान और प्रचलित भाषा उनके लेखन की सबसे बड़ी खासियत थी. इसलिए तो इन्हें कलम का सिपाही भी कहा जाता है. प्रस्तुत हैं उनके कुछ अनमोल विचार. प्रेमचंद जमीन से जुड़े हुए कथाकार और उपन्यासकार थे. उनका बचपन काफी संघर्षों भरा था, जो उनकी रचनाओं में भी दीखता है. उन्हें ग्राम्य जीवन की बहुत अनोखी परख थी. उनके उपन्यास गोदान को ग्रामीण संस्कृति का महाकाव्य कहा जाता है. उनका पूरा साहित्य दलित, दमित, स्त्री, किसान और समाज में हाशिये पर जी रहे लोगों की लड़ाई का साहित्य है, जिसमें समता, न्याय, चेतना और सामाजिक परिवर्तन की घोषणा है. आम लोगों की आसान और प्रचलित भाषा उनके लेखन की सबसे बड़ी खासियत थी. इसलिए तो इन्हें कलम का सिपाही भी कहा जाता है. प्रस्तुत हैं उनके कुछ अनमोल विचार.
प्रेमचंद के अनमोल विचार ( Anmol Vichar Premchand)
१. यदि झूठ बोलने से किसी की जान बचती हो तो, झूठ पाप नहीं पुण्य है.
२. नारी और सब कुछ बर्दाश्त कर लेगी, पर अपने मायके की बुराई कभी नहीं.
३. अन्याय को बढ़ाने वाले कम अन्यायी नहीं.
४. जीवन में सफल होने के लिए ज्ञानवान और शिक्षित होना जरुरी है, सिर्फ डिग्रियां लेना काफी नहीं होता.
५. शत्रु का अंत शत्रु के जीवन के साथ ही हो जाता है.
६. नीति चतुर प्राणी अवसर के अनुकूल काम करता है, जहाँ दबना चाहिए वहां दब जाता है, जहाँ गरम होना चाहिए वहां गरम होता है. उसे मानापमान का, हर्ष या दुःख नहीं होता. उसकी दृष्टि निरंतर अपने लक्ष्य पर रहती है.
७. आलस्य वह रोग है जिसका रोगी कभी नहीं संभलता.
८. अपमान का भय कानून के भय से कम नहीं होता.
९. क्रोध में व्यक्ति अपने मन की बात नहीं कहता, वह तो केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है.
१०. व्यंग्य शाब्दिक कलह की चरम सीमा है. उसका प्रतिकार मुंह से नहीं हाथ से होता है.
११. महिला सहानुभूति से हार को भी जीत बना सकती है.
१२. विषय-भोग से धन का ही सर्वनाश नहीं होता, इससे कहीं अधिक बुद्धि और बल का भी नाश होता है.
१३. इंसान सब हैं पर इंसानियत विरलों में मिलती है.
१४. सौभाग्य उन्हीं को मिलता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.
१५. अन्याय में सह्तोग देना, अन्याय करने के ही समान है.
१६. जिसके पास जितनी ही बड़ी डिग्री है, उसका स्वार्थ भी उतना ही बड़ा हुआ है. मानो लोभ और स्वार्थ ही विद्वता के लक्षण हैं.
१७. संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते हैं.
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१८. माँ के बलिदानों का ऋण कोई बेटा नहीं चुका सकता, चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो.
१९. अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता, अनुराग से उत्पन्न होता है.
२०. भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुष नहीं होता.
२१. बालकों पर प्रेम की भांति द्वेष का असर भी अधिक होता है.
२२. पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाये रखना सबके वश की बात नहीं.
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