महान कवि और उपन्यासकार श्री जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी में ३० जनवरी १८९० को और देहावसान १५ नवम्बर १९३७ को हुआ था. छायावाद की बृहत्त्रयी के शीर्ष व्यक्तित्व वाले जयशंकर प्रसाद हिंदी के उन अग्रणी कवि, कथाकार और नाटककारों में हैं जिन्होंने इतिहास और पुराण के सन्दर्भों के आलोक में आधुनिक चिंतनधारा को गतिमान बनाया और कविता में विचार तत्व को प्रमुखता से उभारा. उनकी हर रचना अपने आप में परिपूर्ण और नवाचार की प्रतीक हैं.
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक योगदान:
काव्य: कामायनी, लहर, झरना, कानन कुसुम, आदि
उपन्यास: कंकाल, तितली, आदि
कहानी संग्रह: आकाशदीप, आंधी, छाया, आदि
नाटक: ध्रुवस्वामिनी, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, आदि
सम्पादन: इंदु मासिक
जयशंकर प्रसाद के अनमोल विचार
1. कभी कभी मौन रह जान बुरी बात नहीं है।
२. प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते।
३. व्यक्ति का मान नष्ट होने पर फिर नहीं मिलता।
4. राजा अपने राज्य की रक्षा करने में असमर्थ है, तब भी उस राज्य की रक्षा होनी ही चाहिए।
5. जीवन विश्व की संपत्ति है।
6. सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने ह्रदय में डुबा नहीं सकता।
7. जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।
8. वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छलछद्म की धुल उड़ती है।
9. प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।
10. सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूँ. पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है।
11. इस भीषण संसार में एक प्रेम करनेवाले ह्रदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।
12. दो प्यार करनेवाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।
13. संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत ही नरक है।
14. अत्याचार के श्मशान में ही मंगल का, शिव का, सत्य -सुन्दर संगीत का शुभारम्भ होता है।
15. अर्थ देकर विजय खरीदना देश की वीरता के प्रतिकूल है।
16. स्त्री की मंत्रणा बड़ी अनुकूल और उपयोगी होती है।
17. कविता करना अत्यंत पुण्य का फल है।
18. सम्पूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है।
19. ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात – दिन लड़ना पड़े।
20. संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?
21. क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।
22. जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।
23. भारत समस्त विश्व का है और सम्पूर्ण वसुंधरा इसके प्रेम पाश में आबद्ध है।
24. जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।
25. जो अपने कर्मों को इश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।
26. समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती है।
27. अपने कुकर्मों का फल चखने में कडवा, परन्तु परिणाम में मधुर होता है।
28. आत्म सम्मान के लिए मर मिटना ही दिव्य जीवन है।
29. राजसत्ता सुव्यवस्था से बढे तो बढ़ सकती है, केवल विजयों से नहीं।
30. पराधीनता से बढ़कर, विडंबना और क्या है?
31. असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में कांपकर लडखडाओ मत।
32. अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।
33. उत्पीडन की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही अंचल में छिपाए रखता है।
34. आतंक का दमन करना प्रत्येक राजपुरुष का कर्म है।
35. पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।
36. मनुष्यों के मुंह में भी तो साँपों की तरह दो जीभ होते हैं।
37. मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है।
38. ह्रदय का सम्मिलन ही तो ब्याह है।
39. पढाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।
40. स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।
41. सेवा सबसे कठिन व्रत है।
42. किसी के उजड़ने से ही कोई दूसरा बसता है।
43. जो आज गुलाम है, वही कल सुलतान हो सकता है।
44. स्त्रियों का ह्रदय, अभिलाषाओं का, संसार के सुखों का क्रीडा स्थल है।
45. बाहुबल ही तो वीरों की आजीविका है।
46. क्षणिक संसार!इस महाशून्य में तेरा इंद्रजाल किसे भ्रांत नहीं करता?
47. मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के जरिये शुद्ध हो सकता है।
48. सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।
49. विधान की स्याही का एक बिंदु गिरकर भाग्यलिपि पर कालिमा चढ़ा देता है।
50. मानव के अंतरतम में कल्याण के देवता का निवास है। उसकी संवर्धना ही उत्तम पूजा है।
51. प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता।
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52. पथिक प्रेम की राह अनोखी भूल भुलैया में चलने की तरह है। जब जिन्दगी की कड़ी धूप में उसे घनी छाँव की तरह पाकर मनुष्य आगे बढ़ता है, तब पाँव में कांटे ही कांटे चुभते हैं।
53. संदेह के गर्त में गिरने से पहले विवेक का अवलंबन ले लो।
54. जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
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aapka post mere liye kafi madadgar sabit hua aisa post kahi or nhi mila dhanywaad
aap real me bahot hi achchi kahaniya likhate hai
Post vakiya bht achha tha..Aaap aise post dalte rahe..padh kar achha laga
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बहुत है अच्छी पोस्ट अपने लिखी है जयशंकर प्रसाद एक महँ व्यक्ति थे उन्होंने हिंदी साहत्य में अपना महँ योगदान दिया है|
भईया जी आप बहुत अच्छी जानकारी देते है। मुझे भी आपकी तरह एक ब्लॉगर बनना है। आप अपने ब्लॉग पर सभी जानकारी बहुत विस्तार से समझाते है। अगर आपको याद होगा तो मैंने पहले भी आपकी पोस्ट में कमेंट की है।
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मैंने ये विचार highschool में पढ़ा था
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