Rakhi Festival/ रक्षा बंधन
प्रति वर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन Rakhi Festival पूरे भारत वर्ष में बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है. यह भारतीय संस्कृति की व्यवस्था में बिलकुल निराला त्यौहार है. ज्ञानोपार्जन के लिए कृत संकल्प, वीतरागी पुरूष समाज को नेह के बंधन के बाँध ,घर में ही पड़े रहने को, आज के दिन बहनें मजबूर कर देती हैं. ज्ञान के साथ-साथ कर्म की उपासना का सबक, भारत की देवियाँ ही देती हैं.

Happy Raksha Bandhan Festival राखी (Image : shutterstock)
पुरूषों का कर्तव्य केवल ज्ञानार्जन ही नहीं है; देश, समाज तथा राष्ट्र की रक्षा का दायित्व भी उन पर है. साथ ही जिन खेतों में बीज डालकर उन्होंने यज्ञ और हवन करके वर्षा का आह्वान किया वे खेत लहलहा उठे हैं और कुछ ही दिनों में सोना उगलेंगे, उस समय अकेली अबलाएँ क्या करेंगी क्या वे माँ धरित्री के जीवनदायी अन्यतम उपहार को बटोरकर घरों में भरने का काम निभा सकेंगी, राष्ट्र की जीवन रक्षा का वह महान कार्य तो समाज के दोनों अंगों – स्त्री और पुरूष – को मिल जुलकर करना है.
नवरात्र पर माँ शक्ति का आह्वान करके हथियारों को सजाने के साथ ही अन्य बहुत –से काम पड़े हैं संसार में करने को . संसार यदि ज्ञान भूमि है तो वह कर्म भूमि भी है. केवल ज्ञानोपार्जन मात्र से तो संसार चलता नही और न ज्ञान मार्ग को विसारकर केवल कर्म मार्ग को अपनाने से भव सागर से निस्तार हो सकता है. भारत के ऋषियों ने कभी एकांगी चिन्तन नहीं किया, समन्वय और संतुलन उनके जीवन का लक्ष्य रहा है.
Raksha Bandhan Festival और उपनयन संस्कार
आर्यों को द्विज भी कहा गया है. द्विज शब्द से तात्पर्य द्विजन्म से है. अर्थात एक जन्म तो प्राकृतिक रूप से जो माता के गर्भ से होता है तथा दूसरा और वास्तविक जन्म उस समय होता है जब उसे भारतीय राष्ट्र का नागरिक होने के लिए दीक्षित किया जाता है. अर्थात जब कि उसका उपनयन संस्कार होता हैं और वेदाध्यययन के लिए गुरू के आश्रम में प्रवेश कराया जाता है उस समय जनेऊ के तीन तारों में जो ब्रह्मगाँठ बंधी जाती है वह अज्ञानरूपी गांठ को सुलझाने के प्रण को याद दिलाने के लिए गले पड़ी ब्रह्म फाँस है और यह फाँस गले में उस समय ही कटती है जब साधक ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त कर लेता है.
जिस प्रकार प्रति वर्ष जन्म की तिथि पर प्रत्येक व्यक्ति अपना – अपना जन्मोत्सव मनाया करता है उसी प्रकार द्विजों के लिए उपनयन धारण करके दूसरा जन्मप्राप्त करते वाले संस्कार को पूण्य-स्मृति के रूप में चिरस्थायी बनाए रखने के लिए श्रावणी पूर्णिमा का दिन निश्चित किया गया है. इस दिन सामूहिक रूप से द्विज मात्र नए जनेऊ धारण करते हैं, और ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त करने के अपने प्रण को दोहराते हैं. यह पुनीत कार्य नदी या जलाशय के किनारे अथवा बाग़- बगीचे में या जंगल में सम्पन्न होता है.
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जिस समय इस-संस्कार से युक्त होकर अपने घर लौटता है तो आरती का थाल सजाए बहन- बेटियां स्वागत में आँख बिछाए घर पर तैयार मिलती हैं, उत्सव की तैयारी में नाना प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं. उनकी भीनी- भीनी सुगंध से घर भरा हुआ होता है. थालों में अनेक प्रकार के मिष्ठान्न फल और पुष्प सजाये हुए बहनें अपने भैयों को शुद्ध आसन पर बिठला उसके दाहिने हाथ में रक्षा का डोरा बंधती हैं. उसके कच्चे धागे में जो मजबूती रहती है वह लौह-जंजीरों में भी नहीं पाई जाती. क्योंकि यह भावनात्मक बंधन है जिसमें गली- मोहल्ले के चाचा तथा गाँव – गोत्र के भाई – भतीजों को बंधना मुश्किल नहीं. जब स्वयं भगवान भी बंधे हुए अपने भक्तों के पास चले आते हैं. ऐसे ही प्रेम की डोर कहते हैं.
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रक्षा के इस कच्चे धागे के बंधन में दोहरी शक्ति होती है. बहन भाई को अपने प्रेमपूर्ण आर्शीवाद के कवच से मंडित करती है, ताकि वह संसार में रहकर और सांसारिक कृत्य करते हुए भी आध्यात्मिकता की साधना से विचलित न हो और नैष्ठिक जीवन बिताने में समर्थ हो सके. दूसरी ओर यदि बहन के परिवार पर कोई संकट आवे तो भाई के नाते वह उस संकट में उसकी सहायता को सदा प्रस्तुत रहे.
सारांश यह कि श्रावणी पूर्णिमा के दिन दो त्योहारों का समन्वय किया गया है – एक आध्यात्मिक और दूसरा आधिभौतिक. श्रावणी उपक्रम और रक्षाबन्धन की संतुलित समन्वय की रीति को अपनाकर ही हिन्दू समाज अब तक जीवित रहा है.
भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि रक्षा-बन्धन के द्वारा विदेशी और विधर्मियों को भी प्रेम की डोर में बाँधा गया है. जो लोग दूसरों को या अपने से कमजोरों को सताते रहने में ही अपना बडप्पन मानते हैं ऐसे लोगों को समाज की हितचिंता का भार सौंपना भी इस त्यौहार का एक उद्देश्य बन गया था. आवश्यकता इस बात की है कि समाज में इस प्रथा की प्रतिष्ठा को पुनः संस्थापित किया जाय.
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Indian Festivals की यह भी विशेषता रही है कि पुरानी संस्कृति को उन्होंने जीवित रखा है. इस युग के मानव से यह आशा की जाती है कि वह नए से नए विचारों को लेकर आगे बढ़े. नए से नए आशा की जाती है कि वह नए से नए विचारों को लेकर आगे बढ़े. नए से नए क्षेत्रों में प्रगति की राह खोले . समूचे ज्ञान का संग्रह करके समाज का ढांचा तैयार करे. हमारी संस्कृति जड़ नहीं है, वह चैतन्य है और जड़ को भी चेतन बनाया उसका लक्ष्य है. इस संस्कृति से यदि प्रेरणा लेकर वे आगे बढ़ें तो उन्हें बना बनाया मार्ग आगे बढने को मिलेगा.
राष्ट्रपिता गांधीजी को ही लीजिए. जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें उन्होंने बुद्धि का दीप लेकर प्रवेश न किया हो राजनीति में तो वह रोज नए प्रयोग करते ही थे. परन्तु उद्दोग-धंधे, राष्ट्रीय-शिक्षण, समाज-सुधार, स्वास्थ्य, आहार आदि के क्षेत्र में भी उन्होंने अनेकानेक सफल प्रयोग किए. इन प्रयोगों का आधार सत्य और अहिंसा था. वे विचारशील व्यक्ति थे ही – आस्तिक और श्रधावान भी थे, शुद्ध विचारों के साथ उन्होंने हर कार्य को आगे बढ़ाया और बड़ी दृढ़ता से उसे पार पहुँचाया. इसी तरह प्रत्येक भारतीय संस्कृति के मानने वाले व्यक्ति का यह फर्ज हो जाता है कि वह युग के साथ चले और निरंतर आगे बढ़ते रहने का शुभ संकल्प करे.
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पुराने युग की भांति आज भी किसी नदी में खड़े होकर पंचगव्य प्रश्न से शरीर और मन की शुधि करके ऋषि- पूजन करना ही उपक्रम की क्रिया है, ऋषि के अर्थ है विचारक. विचारकों की बात का आदर करना ही ऋषि – पूजन है. आज के युग में विचार और विचारकों की आवश्यकता का अनुभव तो सब करते हैं परन्तु अपने- अपने स्वार्थ के कारण न कोई आदरपूर्वक उनकी बातें ठीक से सुनता ही है और न व्यवहार में लाता है. इसलिए हमें ऐसे योग्य विचारकों का आदर करना सीखना चाहिए, उनकी बातों पर ध्यान देना और आगे प्रगति करने के लिए उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए, उनकी बातों पर ध्यान देना और आगे प्रगति करने के लिए उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.
यही Raksha Bandhan, उपक्रम और ऋषि – पूजन के इस महापर्व का संदेश है. शिष्य और गुरू दोनों ही एक साथ सूर्य के सम्मुख मुख करके हाथ जोडकर यह संकल्प करें –
सहनाववतु सहनो भुनक्तु सहवीर्य करवावहे।
तेजस्विनावधीतमस्तु माँ विद्विषावहै ॥
Happy Raksha Bandhan Festival राखी : वर्तमान स्वरुप
आज बहुत सी बहनें अपने भाई के लिये homemade Rakhi तैयार करती हैं. इन्टरनेट पर Raksha Bandhan Wallpaper की भरमार हो जाती है. लोग Rakhi Gifts खरीदते हैं. आजकल तो online Rakhi Gifts भी भेजे जाने लगे हैं. आज राखी के त्यौहार को नए रूप में देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर Happy Rakhi या Happy Raksha Bandhan के सन्देश तैरते मिलते हैं.
लोग अपनी बहनों द्वारा कलाई पर बंधी Raksha Bandhan images को खूब शेयर करते हैं. किसी की कलाई में homemade Rakhi बंधी होती हैं तो किसी को online rakhi भेजा जाता है. रक्षा बंधन के एक दिन पहले से ही raksha bandhan sms का आना जाना शुरू हो जाता है. मिठाईयों की बिक्री बढ़ जाती है. यदि music की बात करें तो Rakhi songs खूब बजते हैं. टीवी चैनल Rakhi Movies दिखाना शुरू कर देते हैं. बहिना के मुख से यदि निकलता है : रखिया बंधा ले भैया सावन आयो, जियो तु लाख बरीस. यानि मेरे भाई! तुम राखी बंधा लो और यह धागा तुम्हे दीर्घायु बनाये. Happy Raksha Bandhan!
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