भगवान बुद्ध की जयंती Lord Gautam Buddha Birthday Jayanti
Lord Gautam Buddha Birthday Jayanti/गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक हैं. उन्हें महात्मा बुद्ध या भगवान बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें भगवान विष्णु का भी अवतार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म 560 ईसा पूर्व और निधन 480 ईसा पूर्व में हुआ था.
उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माँ का नाम माया देवी था. उनका जन्म लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था. बचपन में उनका लालन पालन बड़े ही लाड प्यार के साथ हुआ. किशोवारावस्था में उनकी शादी यशोधरा नामक राजकन्या के साथ कर दिया गया. परन्तु विलास पूर्ण संसाधनों के बीच, कंचन और कामिनी का संसर्ग भी ज्यादा समय तक उनके मन को बांट न सका और उनका मन वैराग्य की ओर बढ़ता चला गया.
गौतम बुद्ध का अवतार तो संसारिक माया के मोह पाश में फंसे लोगों को सत्य, अहिंसा और करुणा का पाठ पढ़ाकर उनसे त्राण दिलाने के लिये हुआ था. जन्म के समय ही उनके ग्रह दशा पर विचार करने वाले ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी करते हुए राजा शुद्धोधन को बताया था कि –” हे राजन! आप बड़े भाग्यशाली हैं. आपका नवजात पुत्र आगे चलकर या तो पृथ्वी का सम्राट होगा या धर्म का सम्राट. यदि मन वैराग्य की ओर गया तो यह विरक्त हो जायेगे.”
राजा तो सामान्य सांसारिक लोगों की तरह राज्य लिप्सा और माया मोह में फंसे व्यक्ति थे, उन्होंने पूछा- ‘वैराग्य कैसे उत्पन्न होगा?’ ज्योतिषियों ने कहा – “जन्म, मृत्यु और बुढ़ापे को देखकर.’
राजा ने भरसक यह कोशिश की कि उनके पुत्र को इन दृश्यों से दूर रखा जाय. परन्तु होश सम्हालते ही छोटे सिद्धार्थ के मन में मैं कौन हूँ, मैं क्यों उत्पन हुआ हूँ, यह संसार क्या है, आदि अनेक प्रश्न पैदा होने लगे.
भगवान बुद्ध पर घटनाओं का असर
एक दिन मार्ग एक दुर्बल, कृशकाय और अपंग वृद्ध व्यक्ति को देखा, वह बहुत दुखी दिख रहा था. कुमार सिद्धार्थ ने अपने सारथी से पूछा- यह व्यक्ति कौन है? सारथी ने बताया – ‘यह एक वृद्ध अपंग व्यक्ति है और अपने दिन पूरे कर रहा है.’ कुमार ने पूछा – क्या इस जगत में सभी लोग ऐसे बूढ़े हो जाते हैं?’ सारथि ने कहा – ‘हां राजकुमार! इस संसार का यही नियम है. पहले बालपन, फिर यौवन और फिर बुढ़ापा, फिर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है.’ ‘क्या इसे बदलने का कोई उपाय नहीं है’ – राजकुमार ने पूछा. सारथि बोला – ‘नहीं कुमार! आजतक इस नियम को कोई भी नहीं बदल सका है.’
दूसरे दिन जब वह नगर भ्रमण को निकले तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक शव को कंधे पर उठाये शमशान की तरफ ले जा रहे हैं. इस दृश्य को देख बालक सिद्धार्थ चकित रह गए. उन्होंने घबरा कर सारथि से पूछा – ‘ यह क्या है?’ सारथि बोला –‘ यही वह राह है जहाँ एक दिन सबको जाना पड़ता है.” ‘तो क्या मुझे भी एक दिन इस संसार से ऐसे ही जाना पड़ेगा” – कुमार ने पूछा. सारथि ने कहा – ‘ इस दुनिया में जो भी पैदा होते हैं उसे एक दिन अपनी इच्छा नहीं होते हुए भी सब कुछ छोड़कर मरना पड़ता है. मृत्यु सत्य है.’ राजकुमार सिद्धार्थ इससे ज्यादा देख नहीं सके और राजभवन को वापस चल पड़े.
गृह त्याग
इसी बीच उनकी पत्नी यशोधरा ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया, उसका नाम राहुल रखा गया. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. युवराज सिद्धार्थ के मन में वैराग्य प्रवेश कर चुका था. इसलिए अपना घर, राज-पाट, पत्नी, पुत्र सबको त्यागकर घर से निकल पड़े. अभोदा नदी के तट पर उन्होंने अपने सभी वस्त्र और आभूषण और केश उतार दिए. वह दिन रात किसी सच्चे गुरु की खोज में भटकने लगे. मन वैराग्य पूर्ण विचारों से भरा रहता था. अंत में बोधगया (बिहार) में एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर साधना में लीन हो गए और वहीँ उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ अर्थात वे बुद्धत्व को प्राप्त हुए.
उनके उपदेशों से संसार को सार्भौमिक शांति का दो उपाय मिला, वह था –अहिंसा और दया. धीरे धीरे उनके उपदेशों का प्रभाव लोगों पर पड़ने लगा और लोग उनके भक्त बनने लगे. भारत से बाहर भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हुआ. जापान, चीन आदि देशों में बौद्ध धर्म फैला. इस प्रकार बौद्ध धर्म का प्रभाव चहु दिश फैला. उनके विचारों और उपदेशों की स्मृति को बनाये रखने के लिये प्रति वर्ष वैसाख पूर्णिमा को श्री भगवान बुद्ध जयन्ती मनाई जाती है.
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Yogi Saraswat says
बढ़िया जानकारी