IVF Technique के आने से आज बांझपन का भी इलाज संभव हो गया है. अब वह समय नहीं रहा कि infertility के कारण औरतों को बाँझ का दर्जा मिल जाता था और उनको समाज में हीन भाव से देखा जाता था. सन्तान न होने पर भाग्य को कोसने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं किया जा सकता था.

IVF Invitro Fertilization Hindi Nibandh
IVF invitro fertilization hindi nibandh बांझपन का इलाज
25 July 1978 को दुनिया की पहली test tube baby लूसी ब्राउन (Lousie Brown) के जन्म के बाद से इस क्षेत्र में इतनी तकनीकी प्रगति हो चुकी है कि संतानोत्पत्ति में असमर्थ माताओं के लिए भी अपनी सन्तान होने का सपना, अब सपना नहीं रह गया है. सबसे ताज़ा तकनीक है, जमे हुए मानव भ्रूण को गर्भाशय में जन्म देने की. एक क्षण के लिए यह बहुत जटिल, technique प्रतीत होती है पर अमेरिकी वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिए ‘invitro fertilization (इन – विंटरो फर्टिलाइजेशन)’ नाम की यह जनन प्रक्रिया बहुत सामान्य रूप ले चुकी है.
Aartificial insemination यानि कृत्रिम गर्भाधान
अमेरिका में हर साल जन्म लेने वाले करीब 38 लाख शिशुओं में से करीब 2 लाख का जन्म कृत्रिम विधिओं ‘अप्रजनन सेवाओं की सहायता से होता है, अमेरिकी कांग्रेस के तकनीकी मूल्यांकन विभाग की एक रपट के अनुसार 1987 में उस देश में प्रजननहीनता के इलाज पर करीब सौ करोड़ डालर खर्च किए गए थे. इस इलाज और कृत्रिम प्रजनन की तकनीक का लाभ उठाने वालों की संख्या पिछले दशकों में तेजी से बढी है. ऐसे जोड़ों में करीब 85 प्रतिशत का उपचार तो पारंपरिक विधियों से ही कर दिया जाता है, यानी शल्य चिकित्सा और कृत्रिम गर्भधान से. आज भी ये दोनों विधियाँ प्रजननहीनता (बांझपन) के इलाज की सर्वाधिक सफल विधियाँ हैं.
आई.वी.एफ. विधि IVF Process
आई.वी.एफ. (IVF) की एक विशेषता यह है कि अंडाणुओं और शुक्राणुओं की प्रक्रिया के बाद एक अंडाणु को माँ में स्थापित कर देने के पश्चात् शेष बचे निषेचित अंडाणुओं को liquid nitrogen के टैंक में जमा दिया जाता है. या यूं कहें कि हिमीकृत कर दिया जाता है. अगर माँ के गर्भाशय में स्थापित अंडाणु नहीं पनपता, तो हिमीकृत अंडाणुओं में से किसी एक को फिर गर्भाशय में रख दिया जाता है. बाद में यह अंडाणु भ्रूण का रूप ले लेता है और संबंधित महिला गर्भवती हो जाती है.
निषेचित अंडाणुओं, जिन्हें हम भ्रूण से पहले की अवस्था (पूर्व भ्रूण) भी कह सकते हैं, को महीनों, बरसों और शायद अनन्तकाल तक के लिए जमाए रखा जा सकता है और आश्चर्य की बात है कि वे पूर्व अवस्था में लाए जाने पर फिर सक्रिय हो जाते हैं. हिमीकरण की इस प्रक्रिया को ‘क्रायो – प्रिजवेशन’ नाम दिया जाता है, लेकिन ऐसे लेकर कई नैतिक और कानूनी विवाद भी उठ खड़े हुए हैं.
How does IVF work?
संतानहीन दंपतियों के लिए सन्तान प्राप्ति का एक और विकल्प है, अंडाणु दान का. जिन महिलाओं के शरीर में अंडाणु नहीं बनते या वे क्रियाशील नहीं होते, वे इस विधि के तहत मातृत्व सुख प्राप्त कर सकती हैं. इसमें किसी अन्य महिला के अंडाणु को पहली महिला के पति के शुक्राणु से क्रिया के पश्चात पहली महिला के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है. अमेरिकी कानूनों के अनुसार, इस तरह पैदा होनेवाले शिशु पर कानूनन दम्पति का ही अधिकार रहता है. जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय अस्पताल के बांझपन निवारण कार्यक्रम के निदेशक डा.राबर्ट स्टिलमैंन के अनुसार, ’ये ऐसे लोग हैं, जिन्हें अब तक बाँझ समझा जाता था, लेकिन ऐसा नहीं है.
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संतानहीन दम्पतियों के लिए शायद सर्वाधिक असामान्य व नया विकल्प है किसी अन्य महिला के गर्भाशय के इस्तेमाल का. यह विधि उन दम्पतियों के लिए वरदान है, जिनमें महिला के शरीर में गर्भाशय नहीं होता या इतना कमजोर होता है कि संतानोत्पत्ति के काबिल नहीं होता. इस दम्पति के शुक्राणु और अंडाणु को प्रयोगशाला में क्रिया कराकर किसी ऐसी महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है, जो उनके लिए संतानोत्पत्ति का भर उठाने को तैयार हो, आमतौर पर पैसे के लिए यह भार वहन करने वाली स्त्रियां भी मिल जाती हैं.
यूं भी यह एक बहुत बड़ा परोपकार है. ऐसे शिशु आनुवंशिक रूप से उस दम्पति से ही जुड़े होते हैं. कभी –कभी ऐसा भी होता है कि किसी महिला के बाँझ होने की हालत में उसके पति के शुक्राणु को कृत्रिम रूप से किसी अन्य महिला के अंडाणु से क्रिया कराई जाती है. वह पराई महिला बच्चे को जन्म देती है और बाद में बच्चा उसके पिता को सौंप देती है, जिसका शिशु पर कानूनी अधिकार होता है. इस प्रक्रिया को ‘बेबी एम’ नाम दिया गया है.
अमेरिका में ऐसे ही एक मामले में बच्चा पैदा करने वाली महिला का मन बदल गया और उसने बच्चा उसके पिता को सौंपने से इंकार कर दिया. बच्चे के पिता ने कृत्रिम संतानोत्पत्ति के बदले उसे दस हजार डालर देने का अनुबंध किया था. उसने न्यूजर्सी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. न्यायालय ने आदेश दिया कि बच्चे पर उसके पिता का अधिकार है, जिसने उस महिला की सेवाएँ खरीदी हैं .
IVF treatment
Invitro fertilization ‘इन – विंटरो फर्टिलाइजेशन’ के लिए अमेरिका के निजी अस्पतालों में अभी भारी – भरकम फीस वसूली जाती है और फिर भी करीब 12.5 प्रतिशत मामलों में ही सफलता मिलती है. इसलिए अब ऐसी विधिओं की खोज चल रही है, जिनमें संयुक्त अंडाणु को महिला के गर्भाशय में स्थापित करने से पहले ही उनके विकसित होने की संभावना का परीक्षण किया जा सकेगा. इस परीक्षण में यह जाँच भी की जा सकेगी कि कहीं भावी शिशु किसी गंभीर बीमारी के आनुवंशिक कण (जीन्स) तो लेकर पैदा नहीं होगा.
कृत्रिम ढंग से संतानोत्पत्ति की एक अन्य विधि में अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में सम्पर्क नहीं कराया जाता, बल्कि पुरूष के शुक्राणु को सीधे महिला के शरीर में प्रवेश कराया जाता है और वहीं वह अंडाणु से संयोग करता है. गैमेट इंट्राफैलोपियन ट्यूब ट्रान्सफर (GIFT ) नाम की यह प्रक्रिया कृत्रिम ढंग से संतानोत्पत्ति की ऐसी अकेली विधि है, जिसे कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी हुई है.
कृत्रिम संतानोत्पत्ति के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयोगों का आलम यह है कि अब पुरूष भी बच्चा पैदा कर सकते हैं. आपको शायद यह जानकर बहुत आश्चर्य हो रहा होगा. इसे हम कृत्रिम गर्भाधान की पराकाष्ठा मान सकते हैं, पर यह सच है. न्यूजीलैंड स्त्री रोग विज्ञानी डॉक्टर पीटर जैक्सन और अमेरिका के डॉक्टर सेसिल जेकबसन व डॉक्टर राय हटरज ने अलग – अलग प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि भ्रूण के विकास के लिए कोख या गर्भाशय का होना जरूरी नहीं है. यानी वह पुरूष के पेट में भी पल सकता है.
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खास बात यह है कि यह भ्रूण पुरूष के पेट में रोपित होने के बाद उसके शरीर के किसी संवहनी अंग से सम्पर्क कर लेता है और उसके जरिए भोजन और रक्त की आपूर्ति प्राप्त कर लेता है. बिलकुल उसी तरह जैसे महिला के पेट में वह यही काम नाल (प्लेसेंटा )के माध्यम से करता है.
Invitro fertilization (इन – विंटरो फर्टिलाइजेशन) को लेकर काफी विवाद भी हुए हैं. विवाद यह है कि निषेचित अंडाणुओं को कैसा दर्जा दिया जाए – निर्जीव या सजीव का, मानव का या किसी बेकार पदार्थ का ? यह साफ है कि ये अंडाणु या भ्रूण से पहले की अवस्था एक शिशु तो नहीं है, पर आखिरकार वह एक ऐसी जीवित वस्तु तो है, जो मानव बन सकती है. ऐसी हालत में उन्हें द्रव नाइट्रोजन के टैंक में अनिश्चितकाल के लिए जमा देने या उनमें एक के सफल इस्तेमाल के बाद शेष को नष्ट कर देना कहाँ तक उचित है? क्या यह नर हत्या नहीं है? क्या यह मानवता के प्रति विज्ञान का अत्याचार नहीं है? बहुत से वैज्ञानिक इन पूर्व – भ्रूणों को निषेचन के बाद से ‘पूर्ण मानव’ मानकर चलते हैं, जबकि अन्य कहते हैं कि इन पूर्व-भ्रूणों की कोई जीवित हैसियत नहीं है.
अमेरिकन फर्टिलिटी सोसायटी के अनुसार,’पूर्व –भ्रूण को विशेष सम्मान के साथ देखे जाने की जरूरत है, क्योंकि यह आनुवंशिक दृष्टी से अद्वितीय मानवीय अस्तित्व है, जो इन्सान बन सकता है.’ इस सिलसिले में एक अमेरिकी अदालत के स्पष्टीकरण को भी देख लिया जाए. अदालत के मुताबिक ’इन – विंटरो फर्टिलाइजेशन’ से पैदा होने वाले भ्रूण कोई निर्जीव पदार्थ नहीं हैं, क्योंकि मानव जीवन गर्भधारण के साथ ही शुरू हो जाता है.’
IVF आई.वी.एफ. बेहतर या माइक्रोसर्जरी
सुमिता परेशान थी. उसके विवाह को 7 वर्ष हो चुके थे, पर वह अब भी निसंतान थी. जाँच में पता चला कि उसकी दोनों फैलोपियन नलियां बंद थीं. कुछ डॉक्टर उसे IVF (आई.वी.एफ.) करने की सलाह दे रहे थे, तो कुछ माइक्रोसर्जरी द्वारा नलियां खुलवाने की. वह असमंजस में थी कि क्या करे, क्या न करे?
उपरोक्त समस्या हर उस स्त्री के सामने आती है, जिसकी दोनों फैलोपियन नलियां बंद होती हैं. इस समस्या के दो ही समाधान होते हैं, IVF आई.वी.एफ. या माइक्रोसर्जरी
IVF
IVF (आई.वी.एफ.) यानी invitro fertilization (इन – विंटरो फर्टिलाइजेशन ) को ही परखनली शिशु तकनीक के नाम से जाना जाता है. इस पद्धति में महिला को hormone के इंजेक्शन देकर उसमें 1 ही माह में कई अंडाणु पैदा किए जाते हैं, फिर इन अंडाणुओं को अंडाशय से निकाल कर निषेचित कराया जाता है.
निषेचित अंडाणु जब 4-8 कोशाओं का हो जाता है, तो उसे स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जहाँ पर वह भ्रूण के रूप में विकसित होने लगता है. गर्भाशय में सफल प्रत्यारोपण की संभावनाए 15 -25 % प्रति चक्र होती हैं. अतः सामान्यतया 3 से 6 बार प्रत्यारोपण करना पड़ता है. यह एक तथ्य है कि शत –प्रतिशत सफलता की संभावना तब तक भी नहीं होती.
सफल प्रत्यारोपण के बाद प्रसव होने तक भ्रूण गर्भपात जैसे खतरे से ग्रसित हो सकता है. सामान्यत: 15 – 20% भ्रूण गर्भपात से नष्ट हो जाते हैं. अतः यदि गर्भपात होता है, तो आई.वी.एफ. को पुनः दोहराना पड़ता है.
एक बार सफल ivf आई.वी.एफ. के पश्चात शिशु पैदा होने पर अगर स्त्री दोबारा गर्भवती होना चाहती है, तो उसे पुनः ivf आई.वी.एफ. करना पड़ेगा.
IVF Cost
IVF (आई.वी.एफ.) का खर्च विभिन्न क्लीनिकों में भिन्न-भिन्न होता है, पर 1.5 लाखसे लेकर 4.5 लाख रूपये तक हो सकता है.
माइक्रोसर्जरी
अब माइक्रोसर्जरी को लें. माइक्रोसर्जरी द्वारा बंद नलियों को खोलना संभव है. इस सर्जरी में अत्यंत सूक्ष्म औजारों का प्रयोग करके, माइक्रोस्कोप में देखकर आपरेशन किया जाता है. माइक्रोस्कोप से नलियों का आकार लगभग 4 से 10 गुना बड़ा दिखाई पड़ता है और नलियों को खोलना भी आसान हो जाता है. अभी तक बहुत खराब नलियों का समाधान नहीं था, पर अब वें ग्राफ्ट को नली में डालकर ऐसी खराब नलियों का समाधान भी संभव हो गया है.
उपरोक्त विधि में पैर की शिरा निकाल कर फैलोपियन नली के अंतर्सतह की जगह रख देते है, जबकि ब्राह्य स्थ पूर्ववत बंद की जाती है,इससे शिरा को आवश्यक रक्त की पूर्ती होती है वैसे पूरी नली को बदलने के भी प्रयास किए गए हैं, लेकिन असफल रहे हैं. पूरी नली को बदलने पर रक्त प्रवाह बंद हो जाता है और परिवर्तित की गई नली भी बंद हो जाती है, जबकि अंतर्सतह को बदलने से रक्त प्रवाह सामान्यतया चलता रहता है.
IVF Treatment Cost
माइक्रोसर्जरी द्वारा बंद नलियों को खोलने में भी शत-प्रतिशत सफलता की उम्मीद नहीं होती. सामान्यतया 25 – 90% सफलता की ही उम्मीद होती है. एक बार सफलता के पश्चात गर्भपात आदि होने पर स्त्री पुनः गर्भवती हो सकती है. एक सफल प्रसव के पश्चात वह पुनः बिना किसी आपरेशन के गर्भवती हो सकती है. इस आपरेशन का खर्च 40 से 90 हजार रूपये तक आता है.
अब आप स्वयं देखिए कि अगर किसी स्त्री में माइक्रोसर्जरी सफल होती है, तो एक लाख रूपये के भीतर ही अपनी समस्या से निजात पा सकती है. अगर वह असफल होती है, तो इतनी रकम की हानि होगी. इसके विपरीत अगर 1.5 -4.5 लाख रूपये खर्च करके कोई स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) से सफलता प्राप्त कर सकती है तो पुनः गर्भवती होने के लिए उसे पुनः इतनी रकम चाहिए, अगर वह असफल होती है. तो उसे इतने धन की हानि होगी.
फिर भी डॉक्टर स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) के पीछे क्यों भागते हैं? क्योंकि पश्चिमी देशों के डॉक्टर जो कुछ कह देते हैं, हम उसका अन्धानुकरन करने लगते हैं. विदेशों में स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) अधिक प्रचलित इसलिए है क्योंकि वहां माइक्रोसर्जरी स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) से 10 गुना महंगी है. वहाँ स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) सस्ता है.
कई चिकित्सक यह मानते हैं कि भारत में तो सर्वप्रथम माइक्रोसर्जरी ही करनी चाहिए. जब माइक्रोसर्जरी असफल हो जाए, तभी स्त्री IVF (आई.वी.एफ.) के बारे में सोचना चाहिए.
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