Essay on National Unity and Integrity in Hindi/ राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर हिंदी निबंध
दुनिया का कोई भी राष्ट्र हो, उसकी सार्वभौम सत्ता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए वहां के नागरिकों में एकता की भावना का होना बहुत जरुरी होता है. इतिहास साक्षी है कि जिस राष्ट्र के नागरिकों में इस एकता की कमी हुई है, उसकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ी है.
यदि हम इस सन्दर्भ में अपने देश भारत को लें तो यहाँ प्राकृतिक और भौगोलिक कारणों से विविधता और अनेकता दिखाई पड़ती है. भाषाएं, बोलियाँ, जाति और धर्म की विविधता है. सभी धर्म के लोगों के अपने –अपने पूजा स्थल हैं और अलग –अलग विश्वास हैं. यहाँ लोगों के रीति-रिवाज, परम्पराएँ, खान-पान, रहन –सहन आदि भी अलग –अलग हैं. इतनी विविधता और अनेकता वाले देश को सिर्फ एक ही चीज जोड़े रख सकती है, एक बनाये रख सकती है, वह है वहां के लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना, जिसे हम National Integrity भी कहते हैं. यदि लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना है तो वह राष्ट्र सदैव शक्तिशाली और महत्वपूर्ण बना रहेगा.
यह सर्व विदित है अकेले रहकर और अपनी हांडी अलग पकाकर कोई नहीं रह सकता और जीवन में न ही कुछ हासिल कर सकता है. अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता. व्यष्टि से समष्टि का निर्माण होता है. समाज मनुष्य को अकेलेपन से बाहर लेकर आता है. समाज के लोग, एक व्यक्ति के सुख- दुःख के सहभागी होते हैं. सबल शक्तियां अगर यह भांप ले कि अमुक व्यक्ति अकेला पड़ चुका है, या अमुक समाज में फूट आ चुकी है तो उसे वह मिनटों के प्रयास में तोड़ देता है.
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यदि आपने एनिमल प्लेनेट या जियोग्राफिक चैनल देखा होगा तो आपने पाया होगा कि जब जंगली भैंस झुण्ड में होते हैं तो शेर जैसा ताकतवर जानवर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते. लेकिन जैसे ही वह टोली से अलग होता है, शेर उसे धर दबोचते हैं.
तो क्या मनुष्य जैसा बुद्धिजीवी अकेले रह सकता है? कदापि नहीं. समाज टूटता क्यों है? इसको समझने के पहले यह जानना जरुरी होता है कि एक समाज में एकता के क्या कारण होते हैं? यदि किसी समाज में रहनेवाले लोगों की आस्था और विश्वास एक जैसा हो, तो वैसे समाज की एकता भंग होने की संभावना प्रायः नहीं ही होती है. लेकिन जहाँ बहुत सारे बर्तन हो, वे कभी न कभी टकरा ही जाते हैं. इसलिए यदि राष्ट्र में निवास करने वाले लोग अलग –अलग धर्म और जाति के हों तो स्वभावतः कभी न कभी टकराव हो जाती है. यदि उस देश में रह रहे लोग ऐसे टकरावों को दूर करने का प्रयास करें तो इसको दूर भी किया जा सकता है.
यदि व्यवहारिक जीवन में इस प्रकार की सोच रखी जाय तो समस्या का हल ढूंढकर राष्ट्रीय एकता को बनाये रखा जा सकता है. राष्ट्रीय एकता को सर्वाधिक खतरा उन लोगों से हुआ करता है जो रहते और खाते हैं एक देश में, और गाते हैं किसी और देश का. उनकी आस्था किसी और देश के प्रति होती है. ऐसे लोग ही राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे अधिक खतरनाक होते हैं. उनके दिमाग में एक कट्टरता बैठ जाती है और वैसे लोग अपने ही देश के विरुद्ध, अपने ही लोगों के विरुद्ध षड्यंत्र करते हैं और राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन जाते हैं.
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यहाँ सत्ताधारी सरकार, चाहे वह किसी पार्टी की, किसी विचारधारा की हो, का परम दायित्व होता है कि ऐसे तत्त्वों को कुचलने से बाज न आये. यदि सरकार दुर्बल होगी, या उसका कोई दलगत लाभ लेने का प्रयोजन होगा, तभी ऐसा नहीं होगा, अन्यथा राष्ट्र की एकता सर्वोपरि है.
वोट पाने और कुर्सी को बचाने के लिए यदि कोई सरकार ऐसे राष्ट्रद्रोही लोगों के विरुद्ध कदम उठाने से संकोच करती है तो उनको सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं है.
आज विश्व के कई भूभागों में आतंकवाद भी कमोबेश राष्ट्र की एकता को तोड़ रही है. धर्म के नाम पर, जिहाद के नाम पर युवाओं को बहकाकर, उनका स्लीपर सेल बनाया जाता है. इस स्लीपर सेल के युवाओं को उसी देश के विरुद्ध हिंसक वारदातों को अंजाम देते के लिए प्रेरित किया जाता है. इससे उस खास वर्ग के सभी लोगों को शक की दृष्टि से देखा जाता है, जो कि बिलकुल गलत है. अच्छे और बुरे लोग हर कौम में जाति में हैं. यह बहुत दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आज भी हमारे देश में जयचंदों और मीरजाफरों की कमी नहीं है, जो निजी स्वार्थ के लिए, कुछ रुपयों के लिए अपने ही देश के विरुद्ध षड़यंत्र करते हैं और राष्ट्रीय एकता को तोड़ने में, समाज को बांटने में तनिक भी हिचकिचाते नहीं.
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सरकार और समाज का यह भी दायित्व बनता है कि लोगों को आपस में जोड़ने वाले कार्यक्रम चलाये जाएँ जो किसी खास जाति या वर्ग से सम्बंधित नहीं हो. हिन्दू –मुस्लिम –सिख- ईसाई सभी को साथ लेकर चलने वाले कार्यक्रम बनाये जाएँ. लोग एक दूसरे के समारोह में शामिल हो, आपस में मिल-जुलकर रहें. लोगों में जागरूकता फैले ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए. जब लोगों में राष्ट्रभक्ति आयेगी तो राष्ट्रीय एकता स्वतः मजबूत होगी.
इन सभी सच्चाइयों को ध्यान में रखते हुए आम जनता, सत्ताधारी पार्टी और सरकार का यह प्रथम कर्तव्य है कि हमारी राष्ट्रीय एकता को तोड़नेवाली शक्तियों का जड़-मूल से नाश कर दे. जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करते हुए इनके खिलाफ कठोरतम कारवाई की जानी चाहिए. तभी देश की एकता और अक्षुण्णता बनी रह सकती है.
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Arvind Kumar says
Awesome and well written essay.
Pankaj Kumar says
Thanks a lot!