हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है. इसके लिए सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, पुस्तकालयों एवं अन्य जगह पर सांस्कृतिक आयोजन , भाषण प्रतियोगिता (speech ) का आयोजन किया जाता है. यहाँ पर भाषण का एक नमूना दिया जा रहा है. जिसे यादकर छात्र अपना स्पीच दे सकते हैं.
पूज्य गुरुजनो, सहपाठियो और आगंतुक सज्जनो! ( संबोधन को अपने भाषण और स्कूल के अनुरूप change कर सकते हैं) आज मेरे लिए हर्ष का विषय है कि मैं आपके समक्ष गणतंत्र दिवस पर कुछ बोलने आया/ आई हूँ. (आवश्यकतानुसार लिंग में परिवर्तन कर ले)
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है
आजादी किसे नहीं अच्छी लगती, चाहे सोने के पिंजरे में बंद पक्षी हो या रस्सी से बंधा जानवर. फिर मनुष्य की तो बात ही कुछ और है. माँ भारती अंग्रेजों के गुलामी की जंजीर में जकड़ी छटपटा रही थी, अपने बेटों को पुकार रही थी.
26 जनवरी 1930 को रावी के तट पर देशभक्तों ने कसम खाई कि
हो रक्त बूँद भर भी जबतक हमारे तन में
छीने ने कोई हमसे प्यारा वतन हमारा
छूटे स्वदेश की ही सेवा में तन हमारा
कितने ही बलिदानों के बाद हमारा देश आजाद हुआ. मैं उन शहीदों को याद करना चाहता हूँ कि
सुख रही थी बोटी बोटी
मिलती नहीं घास की रोटी
गढ़ते है इतिहास देश का
सह कर कठिन क्षुधा की मार
नमन उन्हें मेरा शत बार
वतन पे मरनेवालों का यही बाकी निशां होगा
उसी 26 जनवरी की याद में 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागु हुआ. आज आजादी के इतने बर्षो बाद भी क्या हम अपने संविधान के लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएं हैं. गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महिलओं पर अत्याचार, आदि अनेक समस्याएँ हमारे सामने मुंह बाये खड़ी है. साथ ही आतंकवाद हमारे तिरंगे की शान को चुनौती दे रहा है. आइए इस पावन दिवस पर हम सब शपथ लेते हैं कि
झंडा ऊँचा रहे हमारा
इसकी शान न जाने पाए
चाहे जान भले ही जाए.
इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ.
जय भारत!
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