Great Indian Martyr Udham Singh Biography in Hindi /महान भारतीय शहीद ऊधम सिंह की जीवनी
अमर शहीद सरदार ऊधमसिंह का जन्म 26 दिसम्बर,1899 को सुनाम, संगरूर (पंजाब) में सरदार टहल सिंह के पुत्र के रूप में काम्बोज परिवार में हुआ था. माता-पिता का सिर से साया उठ जाने के बाद ऊधम सिंह का बचपन अनाथालय में बीता. उन्होंने अपनी दसवीं तक की पढाई अनाथालय में ही रहकर की.
13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग़ में वहां के स्थानीय निवासी सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफतारी के खिलाफ शांति पूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन अंग्रेजों द्वारा निर्दोष लोगों की नृशंस हत्याकांड से वीर ऊधमसिंह का हृदय चीत्कार कर उठा. इस वीर ने हत्या काण्ड के जिम्मेदार ब्रिगेडियर रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर को मारने का प्रण कर लिया. सरकार को इन पर संदेह हो गया. अतः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 4 वर्ष के कारावास के बाद वे मुक्त हुए. अब उन्होंने अपना नाम बदल कर ‘राम मुहम्मद सिंह’ रख लिया जोकि हिन्दू-मुस्लिम-सिख एकता का प्रतीक था. डायर से प्रतिशोध की ज्वाला में धधकते हुए वे अवसर की तलाश में रहने लगे. जब उन्हें पता चला कि हैरी डायर 8 वर्ष की लम्बी बीमारी के बाद लंदन में मर गया, तब उन्होंने पंजाब के तत्कालीन गर्वनर सर माइकेल ओ’ डायर को मारने का फैसला किया.
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इसी सिलसिले में 1939 में वे इंग्लैंड पहुँच गये. यहाँ उन्होंने माइकेल ओ’ डायर की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी. 13 मार्च, 1940 को इंग्लैंड के कैक्सटन हाल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की सभा थी. उसी सभा में ऊधम सिंह ने माइकेल ओ ‘डायर को गोलियों से भून दिया और अपना पप्रण पूरा किया. वे भागते उससे पहले ही एक अंग्रेज महिला ने उनका रास्ता रोक लिया. ऊधमसिंह बोले- “महिलाओं और बालकों पर गोलियाँ अंग्रेज चलाते हैं भारतीय नहीं” और रिवाल्वर फ़ेंक कर गिरफ्तार हो गये. वह अंग्रेज महिला भी ऊधमसिंह के आदर्शों की भक्त बन चुकी थी. उसने ऊधमसिंह को फांसी से बचाने का भरसक प्रयास किया. लेकिन 31 जुलाई, 1940 को ऊधमसिंह को फांसी दे दी गई. 20 वर्ष, ग्यारह माह बाद अपनी प्रतिशोध की ज्वाला को ठंढी कर फांसी का फंदा चूमते हुए ऊधमसिंह बहुत प्रसन्न थे.
अपनी फांसी से पहले पूछे जाने पर उन्होंने कहा – ” मैंने ओ’ डायर को मारा क्योंकि मेरे मन में उसके प्रति घृणा थी। वह इसके योग्य है। वह असली अपराधी था। वह हमारे भाइयों की भावनाओं को कुचलना चाहता था, इसलिए मैंने उसे कुचल दिया है। पूर्ण 21 साल तक, मैं अपना प्रतिशोध लेने की कोशिश में लगा रहा। मुझे खुशी है कि मैंने यह काम कर दिया। मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं है । मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ। मैंने ब्रिटिश शासन के अधीन भारत में अपने लोगों को भूख से मरते देखा है। मैंने इसका विरोध किया है, यह मेरा कर्तव्य था। अपनी मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने से और बड़ा सम्मान मेरे लिए और क्या हो सकता है! जय माँ भारती!”
ऐसे महान सपूत को शत शत नमन!
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Pushpendra Kumar Singh says
nice article….udham singh ne desh ke liye kurbani di thi ….desh ko unki shadat par garv hai…