प्रस्तुत पोस्ट Pythagoras Biography in Hindi पायथागोरस की जीवनी में हम एक महान गणितज्ञ के बारे में जानेगे जिनका theorem आज भी गणित का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है. उनके द्वारा प्रतिपादित गणितीय सिद्धांत उनकी विलक्षण प्रतिभा को दर्शाता है.
Pythagoras Biography in Hindi पायथागोरस की जीवनी
पायथागोरस यूनान के विख्यात दार्शनिक और गणितज्ञ थे. सुकरात, प्लेटो, अरस्तू और सिकन्दर भी उनसे प्रभावित रहे. ध्यान देने वाली बात यह है कि – पायथागोरस ने जो भी संदेश दिया, गणित की जितनी भी गणनाएं कीं, मौखिक कीं, उन्होंने अपने हाथों एक भी शब्द नहीं लिखा.
उनका लोकप्रिय प्रमेय है – ‘किसी समकोण त्रिभुज में कर्क पर बना वर्ग शेष दो भुजाओं पर बने वर्गों के योग के बराबर होता है’- गणित पढनेवाले प्रत्येक विद्यार्थी को पढना पड़ता है. यह प्रमेय बेबिलोनवासियों का पायथागोरस से 1000 वर्ष पहले ज्ञात थी, लेकिन पायथागोरस वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इसे सिद्ध किया.
पायथागोरस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे वीणा शौक से बजाते थे. उनका यह शौक मरते-दम तक जारी रहा. कविता, गणित, खगोलशास्त्र, संगीत, ज्यामिति इत्यादि पर उनकी बराबर पकड़ थी. वे अध्यापन करते थे. बाद में उन्होंने दर्शन और धर्म से जुड़ा एक स्कूल खोला. अनेक लोग उनके अनुयायी बने. उन्होंने पायथागोरियनवाद नामक धार्मिक आन्दोलन की स्थापना की. उन्हें महान गणितज्ञ, रहस्यवादी और वैज्ञानिक के रूप में आदर दिया जाता है.
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छठी शताब्दी ईसापूर्व में धार्मिक शिक्षण और दर्शन में पायथागोरस का महत्वपूर्ण स्थान रहा. पायथागोरस का मानना था कि सबकुछ गणित से संबंधित है और संख्या ही वास्तविकता है, जिनके माध्यम से हर चीज के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है.
पायथागोरस स्वयं को दार्शनिक और तथ्य प्रेमी कहते थे. प्लेटो ने उनके विचारों का अनुसरण किया. उनकी ज्यामिति एक मोटे अनुमान के अनुसार 560 ईसापूर्व के आसपास बताई जाती है. वे यूनान में सामोस के निवासी थे. उनकी माँ का नाम पायथाचस था और पिता मनेसार्चस एक व्यापारी थे. युवावस्था में ही देश छोडकर दक्षिण इटली में क्रोटोन जाकर रहने लगे. अपना कुछ समय उन्होंने मिस्र में पुजारियों के साथ भी गुजारा और उनसे विभिन्न ज्यामितीय सिधांतो का अध्ययन किया. इसी अध्ययन का परिणाम उनकी प्रमेय- पायथागोरस प्रमेय- के रूप में सामने आई,जो दुनिया भर में आज भी पढाई जाती है.
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मिस्र से वापस इटली लौटकर उन्होंने एक गुप्त धार्मिक समाज की स्थापना की. उन्होंने क्रोटोन के सांस्कृतिक जीवन में सुधार लाने के प्रयास किए. इस क्रम में लोगों को सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने लडके-लडकियों के लिए एक विद्यालय भी खोला.
इस विद्यालय के नियम बहुत सख्त थे. विद्यालय के अंदरूनी हिस्से में रहनेवाले लोग शाकाहारी भोजन करते थे और उनकी कोइ निजी संपत्ति नहीं होती थी. वहीं विद्यालय के बाहरी हिस्से में रहनेवाले लोग मांसाहार कर सकते थे और निजी संपत्ति भी रख सकते थे. विद्यालय के अंदरूनी भाग में रहनेवाले लोगों का नाम दुनिया के पहले सन्यासी के रूप में इतिहास में दर्ज है.
पायथागोरस ने सादा अनुशासित जीवनयापन किया. अपने दर्शन में उन्होंने धर्माचरण, समान्य भोजन, व्यायाम, पठन-पाठन, संगीत के अनुसरण का उपदेश दिया. जीवन के आख़िरी दिनों में क्रोटोन के कुछ अभिजात लोग उनके दुश्मन बन गए और उन्हें क्रोटोन छोडकर मेटापोंटम में शरण लेनी पड़ी. लगभग 90 साल की उम्र में 450 ईसापूर्व के आसपास उनकी मृत्यु हो गई.
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