Yogeshwar Sri Krishna Hindi Essay योगेश्वर श्री कृष्ण
सबसे पहले कृष्ण वन्दे जगतगुरूम अथात मैं जगतगुरू कृष्ण की वन्दना करता हूँ. श्री कृष्ण योगीराज यानि योगियों के भी योगी थे. वे राष्ट्रपुरुष और इतिहास-पुरूष के रूप में अद्वितीय हैं अर्थात श्रेष्ठ पुरूष. भगवान् श्री राम मर्यादा से बंधे पुरूषोत्तम हैं, जबकि कृष्ण मर्यादाओं से परे पूर्ण पुरूषोत्तम हैं. कृष्ण का कर्तव्य विराट था. द्वारका से लेकर मणिपुर तक भारत को एकसूत्र में आबद्ध करके, हर केंद्र के अधीन करके कृष्ण ने राष्ट्र को इतना बलवान बना दिया कि उसके बाद के सैकड़ों वर्ष तक विदेशी शक्तिओं द्वारा कई प्रयत्न किए जाने के बावजूद देश खंडित नहीं हुआ.
अनेक पाश्चात्य विद्वान कृष्ण को काल्पनिक व्यक्ति मानते हैं. कई विद्वान् तो श्री कृष्ण की एतिहासिकता और अस्तित्व को सप्रमाण सिद्ध करके बताया है. कृष्ण का समय ईस्वी पूर्व 3100 के आसपास माना जाता है. यदि कृष्ण काल्पनिक होते तो उनके पीछे हजारों वर्ष तक एक विशिष्ट परंपरा का जन्म न हुआ होता और कृष्ण को लोगों के हृदय में आदरभरा पूजनीय स्थान प्राप्त न हुआ होता.
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श्रीकृष्ण महामानव युगप्रवर्तक, योगेश्वर, युगनायक, श्रेष्ठ दार्शनिक और भक्त-वत्सल थे. उनमें सत्यनिष्ठा,पितृ गुरू, ईश्वर भक्ति, दांपत्य कुटुंब प्रेम, भूतदया, समदृष्टि, मानवता, निर्भीकता, शालीनता, आदर्श मैत्रीभाव, उत्तम नीतिमत्ता, सदाचार आदि श्रेष्ठ गुण थे. वे अपने युग के क्रांतिकारी थे. उनके महत्वपूर्ण कार्य साधुजनों-निर्बलों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापना करना था. कृष्ण का विराट व्यक्तित्व अनेक क्षेत्रों में विस्तरित था. व्यक्ति से विराट बने, लोकोत्तर हुए और जगतगुरू के रूप में वे प्रतिष्ठापित हुए.
महाभारत में बारंबार कहा गया है- “यतो धर्म:ततो कृष्ण:, यत:कृष्ण: ततो जय:” जहाँ कृष्ण हैं, वहाँ धर्म है और जहाँ धर्म है वहीं विजय है, द्रोणवध, कर्णवध, दुर्योधनवध जैसे प्रसंगों में कृष्ण की सलाह संभवतः अन्यायपूर्ण लगे परन्तु कृष्ण विशाल धर्म की खातिर, व्यापक धर्म की रक्षा के लिए किंचित अधर्म का आचरण करते हुए, दिखाई देते हैं किन्तु जब प्रचलित धर्म परस्पर टकराते हों तो उच्चतर धर्म का अनुसरण करना कृष्ण का सिधांत है.
कृष्ण ने आजीवन धर्माचरण किया था. कृष्ण पूर्व सत्यवादी और निष्कलंक थे, इसकी पुष्टि महाभारतकार ने उत्तरा के पुत्र को जीवित करने के लिए कृष्ण की उक्तिओं के द्वारा कराई है. उस समय कृष्ण पूरे विश्वास के साथ कहते हैं:”यदि मैंने सदैव सत्य और धर्म का ही अवलंबन लिया है तो यह मृत बालक जीवित हो जाए” और बालक सचमुच जीवित हो जाता है.
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कृष्ण में संपत्ति, युद्ध या राज्य की लिप्सा नहीं थी, कृष्ण ने कंस शिशुपाल, जरासंध नरकासुर आदि स्वार्थी और अत्याचारी राजाओं का वध किया पर उनके राज्य क्रमशः उग्रसेन, शिशुपाल के पुत्र , जरासंध के पुत्र सहदेव और नरकासुर के पुत्र भगदत्त को सौंप दिए, अपने अधीन नहीं किए. दुष्टों और आततायियों को जनकल्याणार्थ मारना पाप नहीं, इस धर्मनीति का कृष्ण ने अनुसरण किया. पांडव-कौरव युद्ध को रोकने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयत्न किए. स्वयं को झुकाया किन्तु दुष्ट, उन्मादी, अहंकारी दुर्योधन की राज्यलिप्सा के चलते युद्ध होकर ही रहा.
भगवान कृष्ण समर्थ होते हुए भी अनेक बार मानहानि सहे. कंस के अत्याचार से मुक्त करने के बावजूद स्वयं उनके स्वजनों ने कृष्ण और बलराम को मथुरा छोडकर चले जाने को कहा. स्यमन्तक मणि की चोरी कृष्ण ने की होगी ऐसी शंका बलराम को भी हुई थी. शिशुपाल की गलियां सुनीं, बिना किसी दोष के गांधारी का शाप मिला. उनके स्वजन मदिरापान करके अमर्यादित व्यवहार किया और देवताओं, ब्राह्मणों, गुरूजनों का अपमान करने लगे, उस समय मूक प्रेक्षक की भांति उन्हें यादव स्थली देखनी पड़ी. उन सभी प्रसंगों में स्थितप्रज्ञ होकर कृष्ण ने अपने मन के समत्व को अक्षुण्ण रखा.
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कृष्ण को अवतार या भगवान मानकर उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना करने में कृत कृत्य अनुभव करने के बजाय यदि उनके गुणों, शिक्षा-दीक्षा और जीवन- प्रणाली का अल्पांश भी ग्रहण करके आचरण में लाया जाए तो मनुष्य का जीवन निश्चित उन्नत होगा और यही सही अर्थ में कृष्ण की पूजा होगी.
श्री कृष्ण श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरू थे. उनके शाश्वत उपदेश तीन ग्रन्थों में दिए गए हैं:
(1) भगवद गीता: –
गीता महाभारत का एक भाग है. भीष्मपर्व के अध्याय 25 से 42 में गीता दी हुई है. भारतीय संस्कृति के सारभूत इस ग्रन्थ ने विश्वख्याति प्राप्त की है. सभी उपनिषदों का गाय की भांति दोहन करके कृष्ण ने 700 श्लोकों की गीता में कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग का निरूपण किया है. गीता ब्रह्मविद्या का उपदेश देती है, मोक्षमार्ग दिखाती है.
(2) अनुगीता: –
महाभारत के अश्वमेघ पर्व के अध्याय 16 से 51, एन 36 अध्यायों और 1056 श्लोकों में यह गीता समाविष्ट है.कृष्ण द्वारा कुरूक्षेत्र में सुनाई गई गीता अर्जुन को पुन: एक बार सुननी थी. कृष्ण ने उस गीता के बदले यह गीता सुनाई. जीव को मोक्षप्राप्ति कैसे हो सकती है- आत्मा, ब्रह्म,इंद्रियां, यज्ञ ,सन्यास की श्रेष्ठता, तीनों गुणों, आश्रयों का वर्णन करके, पापों का नाश करके आध्यात्मिक विकास का मार्ग बताती है.
(3) उद्धव गीता: –
भागवत-सुंध 11 अध्याय 7 से 29 कुल श्लोक 1030| इसमें दत्तात्रेय के 24 गुरू, संख्य, चारों वर्णों के धर्म, सांख्य सिद्धांत, तीन गुणों, विभूतियों, शक्तियों, भक्ति सिधान्तों आदि का निरूपण किया गया है.
ज्ञान और कर्म, श्रेय , और प्रेय, प्रवृति और निवृति, क्षात्र बल और ब्रह्मबल, प्रेम और त्याग का समन्वय कृष्ण के जीवन में देखने को मिलता है. कृष्ण जीवित हैं क्योंकि वे पूर्ण पुरूष हैं. पूर्णता में ले जानेवाले हैं. कृष्ण के जीवन में वैदिक धर्म और भारतीय संस्कृति का सार सर्वस्व है.
श्री कृष्ण पूर्णता के प्रतीक हैं, धर्म धुरंधर और सबसे बड़े धर्म रक्षक थे. उनकी गति उभयमुखी थी. उनका चिंतन पूर्ण था और धर्म युक्त था. यही कारण है कि आज भी कृष्ण के चरित्र गुणगान विश्व के कई देशों में श्रद्धा पूर्वक में किया जाता है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!
Yogi Saraswat says
बहुत सुन्दर पंकज जी !! जय श्री कृष्णा
Pankaj Kumar says
जय श्री कृष्ण!