एक प्रसिद्द लोकोक्ति
‘आ बैल मुझे मार’ (Aa Bail Mujhe Maar Saying) एक बहुप्रसिद्ध् लोकोक्ति है। इस लोकोक्ति का अर्थ है – समस्याओं को स्वयं आमंत्रित करना अथवा अपने लिए कई समस्याओं को खड़ा करना।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह कई बार अपने कर्म द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकालकर जीवन को सुखमय बना देता है तो कई बार स्वयं ही गलत मार्ग पर चलकर छोटी से छोटी समस्या को एक दिन पहाड़ जैसी बनाकर मुसीबत में फंस जाता है। किसी बुरी लत में फंसे व्यक्ति की दशा ‘आ बैल मुझे मार’ (Aa Bail Mujhe Maar Saying) जैसी ही होती है। उसे देख तो ऐसा ही लगता है कि मानो वह बैल को स्वयं आमंत्रित कर रहा हो कि वह आये और उसे मारे। भारत में ऐसे कई युवा हैं जो बुरी लत में फंसकर अपना जीवन स्वयं ही बर्बाद कर लेते हैं।
Aa Bail Mujhe Maar Saying आ बैल मुझे मार से सम्बंधित एक कहानी
इस लोकोक्ति Aa Bail Mujhe Maar Saying आ बैल मुझे मार को स्पष्ट करने के लिए एक कहानी दी जा रही है. इस प्रकार की मिलती-जुलती कहानी से आप भी रूबरू हुए होंगे. ललन दिल्ली का रहने वाला था। वह अपनी माँ के साथ अकेला ही रहता था। उसका परिवार एवं रिश्तेदार दो लोगों तक ही सीमित थे। उसका न तो कोई अच्छा मित्र था और न ही बात करने के लिए कोई रिश्तेदार। ऐसे में वह अकेले रहते हुए माँ के साथ ही खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा था। माँ-बेटे में यह तो नहीं कह सकते कि बहुत लगाव था और न ही हर समय झगड़ा रहता था। दोनों अपने-अपने कामों में लगे रहते और वक्त पड़ने पर ही बात करते थे।
ललन एक रात देरी से पहुँचा। उसकी आँखें लाल थीं। वह लड़खड़ा-सा रहा था। उसकी माँ को जब शक हुआ तो उसने ललन से आँखों के बारे में पूछा। यह सुन ललन पहले तो थोड़ा घबरा गया लेकिन फिर बोला कि आज काम ज्यादा था इसलिए थकान की वजह से आँखें लाल हो गई होंगीं। असल में ललन का आज पहली बार कोई मित्रा बना था जिसके आग्रह पर उसने दो पैग शराब के पी लिए थे। एक-दो सप्ताह के बीतने पर माँ का शक बढ़ने लगा क्योंकि दो सप्ताह में कम से कम पाँच-छः बार वह उसी हालत में घर लौटा था। माँ ने आपस में बहस होने के डर से कुछ न कहा लेकिन अगले दिन वह ललन का पीछा करते हुए उसके कार्यालय पहुँची।
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पूरे दिन तक उसकी जासूसी की और उसके मित्र से बात करने पर उसे पता चला कि वह अब शराब पीने लगा है। यह सुनते ही माँ के पैरों से जमीन खिसक गई। उस रात माँ-बेटे में तकरार हो गई। माँ ने ललन को खूब समझाया तथा शराब के अंजाम से भी अवगत कराया क्योंकि इसी शराब ने ललन के पिता की जान ली थी।
ललन का मानना है कि उसके पिता हद से ज्यादा पीते थे इसलिए उनके प्राण गए थे, लेकिन वह संतुलित मात्रा में पीता है, इसलिए उसे किसी बात का खतरा नहीं है. लेकिन उसका सोचना गलत निकला, उसका शरीर अत्यंत संवेदनशील होने के कारण शीघ्र ही बीमार पड़ गया। डॉक्टरी जाँच के बाद पता चला कि ललन ने यदि शराब को छुआ भी तो वह मर सकता है। डॉक्टरी जाँच के बाद ललन पहले तो घबरा गया लेकिन उसने सोचा कि वह यदि थोड़ा और कम कर देगा तो उसे कुछ न होगा। उसकी यही सोच उसके लिए प्राणघातक सिद्ध् हुई। एक रात अचानक उसकी छाती में तेज दर्द हुआ और मुँह से खून की उल्टी होते ही वह मर गया। उसकी माँ बुत बनी वहीं बैठी रह गयी।
इस तरह से हम कई बार देखते हैं कि यह जानते हुए कि अमुक काम करने से नुकसान तय है लेकिन फिर भी उस काम को करते रहने कहीं न कहीं आ बैल मुझे मार को चरितार्थ करता है.
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pushpendra dwivedi says
उपयोगी सामाजिक चेतना को जाग्रत करती सार्थक पोस्ट
Pankaj Kumar says
आपका बहुत- बहुत धन्यवाद!
samriddhi says
wow and thanks for such story it helped me for my h.w.