जैसा कि आपको पता है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जब भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे, उसी दौरान 11 फरवरी 1968 को मुग़लसराय स्टेशन के पास उनकी लाश रेलवे लाइन पर पडी मिली. मृत्यु के समय उनके पास से कुछ चीजें मिली थी,जो इस प्रकार हैं:
- उनके एक हाथ की मुट्ठी में पांच रूपये का नोट था
- प्रथम श्रेणी का टिकट था, जिसकी संख्या 04348 थी
- रिजर्वेशन स्लिप था जिसका नंबर 47506 था
- हाथ पर घड़ी बंधी थी जिसपर नाना देशमुख लिखा हुआ था
- 26 रूपये
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उनकी क्षति न सिर्फ आरएसएस, या जनसंघ अपितु पूरे राष्ट्र के लिए थी. देश ने एक राष्ट भक्त और महान चिन्तक खो दिया था. उनके हत्या की जांच के लिए चंद्रचूड आयोग भी गठित किया गया लेकिन उनकी हत्या आज भी एक रहस्य बनी हुई है.
Deendayal Upadhyay Death in Hindi दीनदयाल जी का महाप्रयाण
उनके महाप्रयाण के बाद देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन ने शोक सन्देश में ये बातें कहीं:
“मुझे श्री दीनदयाल जी की मृत्यु की खबर सुनकर गहरा आघात लगा. दिवंगत नेता के परिवार के सदस्यों के प्रति मेरी गहरी सहानुभूति.”
तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वी वी गिरि के शब्दों में
“श्री उपाध्याय भारत माँ के महान पुत्र थे. उनकी मृत्यु से मुझे गहरा दुःख पहुंचा है. उनके निधन से एक बहुत बड़े राष्ट्रीयतावादी एवं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति भारत ने खो दिया.”
तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के शब्द
“मुझे श्री उपाध्याय जी की मृत्यु की खबर सुनकर गहरा आघात पहुंचा है. श्री उपाध्याय देश के राजनीतिक जीवन में एक प्रमुख भूमिका अदा कर रहे थे. उनकी ऐसी दुखद परिस्थितियों में असामयिक और अप्रत्याशित मृत्यु से उनका कार्य अधूरा रह गया है.
जनसंघ व कांग्रेस के बीच मतभेद चाहे जो हों, मगर श्री उपाध्याय सर्वाधिक सम्मान प्राप्त नेता थे और उन्होंने अपना जीवन देश की एकता एवं संस्कृति को समर्पित कर दिया था.”
पंडित जी की मृत्यु के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी जो को गहरा आघात लगा. उन्होंने कहा – “पंडित जी अब नहीं रहे. किन्तु उनका कार्य अभी शेष है. उनके द्वारा निर्दिष्ट कार्यों के लिए स्वयं को समर्पित कर हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं.”
हम चुनौती स्वीकार करते हैं
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने “हम चुनौती स्वीकार करते हैं” शीर्षक से एक लेख प्रकशित किया. इस लेख को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है. इसमें उनके वक्तव्य इस प्रकार था.
“आइये ,पंडित जी के रक्त की एक-एक बूँद को माथे का चन्दन बनाकर ध्येय पथ पर अग्रसर हों. उनकी चिता से निकली एक-एक चिनगारी को हृदय में धारण कर परिश्रम की पराकाष्ठा और प्रयत्नों की परिसीमा करें. एस दघीचि की अस्थियों का वज्र बनाकर वृत्रासरों पर टूट पड़ें और पवित्र भूमि को निष्कंटक बनाएँ.”
नन्हा दीप बुझ गया, हमें अपना जीवन-दीप जलाकर अन्धकार से लड़ना होगा.सूरज छिप गया, हमें तारों की छाया में अपना मार्ग ढूँढना होगा. हमारा मित्र, सखा, नेता और मार्गदर्शक चला गया. हमें उनकी पवित्र स्मृति को हृदय में संजोकर ध्येयपथ पर आगे बढना होगा.
समर्पित जीवन
पंडित जी का जीवन एक समर्पित जीवन था, शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण उन्होंने राष्ट्रदेव के चरणों में चढ़ा दिया था. सम्पूर्ण देश उनका घर था, सारा समाज उनका परिवार. उनकी आंखोंमे एक ही सपना था, उनके जीवन का एक ही व्रत था.
उनका स्वप्न
राजनीति उनके लिए साधन थी, साध्य नहीं. यह मार्ग था, मंजिल नहीं. वः राजनीति का आध्यात्मीकरण चाहते थे. वे भारत के उज्ज्वल अतीत से प्रेरणा लेते थे तथा उज्ज्वलतर भविष्य का निर्माण करना चाहते थे. उनकी आस्थाएँ सदियों पुराने अक्षय राष्ट्रजीवन की जड़ों से रस ग्रहण करती थीं, किन्तु वे रूढ़िवादी नहीं थे. भविष्य के निर्माण के लिए वे भारत को समृद्धिशील आधुनिक राष्ट्र बनाने की कल्पना लेकर चले थे.
वे महान चिंतक थे. चिन्तन के क्षेत्र में वे बंधे-बंधाए रस्ते से चलने के हामी नहीं थे. इसीलिए उन्होंने भारतीय जनसंघ का ऐसा स्वरूप विकसित किया जो अतीत की गौरव-गरिमा को लेकर चलता है और जो आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी सन्नद्ध है. आज जनसंघ जो कुछ है, वह सब उन्हीं की देन है.
यह घाव हरा रहेगा
उन्हें कभी किसी पद ने मोहित नहीं किया. वे संसद सदस्य नहीं थे लेकिन संसद सदस्यों के निर्माता थे. उन्होंने कभी पद नहीं चाह. बड़ी मुश्किल से उन्हें अध्यक्ष पद का भर संभालने के लिए तैयाए किया गया था. उन्होंने प्रेरणा दी कि चलो विन्ध्याचल के पार कन्याकुमारी पर, जहाँ भारतमाता के चरणों को सिन्धु धो रहा है, भारत की एकता का जागरण-मन्त्र फूंके. उनके नेतृत्व में हमने आसेतु हिमालय भारत की एकात्मता को गुंजाने का संकल्प किया.
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कालीकट अधिवेशन हुआ. हम वहां गए. उनकी अध्यक्षता में अधिवेशन सफल हुआ. लोगों ने कहा कि जनसंघ ने कार्यसिद्धि का ऐतिहासिक दृश्य उपस्थित किया. जनता की आँखें आशा और विश्वास के साथ उन पर जा लगी थीं. देश-विदेश के लोगों ने कहा कि कालीकट में जनसंघ ने नया रूप धारण किया है.परन्तु जनसंघ ने नया रूप नहीं धारण किया-देखने वालों की आँखों में बदलाव आया था. उन्हीं आँखों में कुछ आँखें ऐसी थीं जिनमें पाप था, जलन थी, जिनमें हिंसा की चिनगारी सुलग रही थी. उन आँखों को यह दृश्य चुभा और आज पंडित दीनदयाल जी को हमसे विलग कर दिया.
किन परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हुई, कोई विश्वासपूर्वक नहीं कह सकता. जिसके इशारे पर लाखों लोग जान देने के लिए तैयार थे, सन्नद्ध थे, उसे रात के अँधेरे में अपने अनुयायियों से दूर, देशवासियों से पृथक, मौत की गोद में काल के गाल में धकेल दिया. यह घाव सदा हर रहेगा, यह काँटा हमारे हृदय में सदैव कसकता रहेगा.
अधूरा स्वप्न
पंडित जी जिस कार्य के लिए जन्मे, जिए और जूझे उसी के लिए हौतात्म्य (शहादत) स्वीकार कर उन्होंने अपना जीवनव्रत पूर्ण कर लिया. किन्तु उनका स्वप्न अभी अधूरा है. उनका कार्य अभी अपूर्ण है.
चुनौती स्वीकार
उनके जीवन पर किया गया आक्रमण राष्ट्रीयता पर आक्रमण है. उनके शरीर पर लगी हुई चोटें लोकतंत्र पर प्रहार हैं. “हम राष्ट्र्विरोधियों और लोकतंत्र के शत्रुओं की इस चुनौती को स्वीकार करते हैं.”
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