प्रस्तुत कहानी Vikram Sarabhai and Young Man Story in Hindi में हम महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और एक जिज्ञासु युवक के बीच हुए संवाद के बारे में जानेंगे.

एक दिन की बात है। त्रिवेंद्रम के समुद्र तट पर एकांत में बैठकर एक व्यक्ति श्रीमद्भागवत गीता का पाठ कर रहा था।
उसी समय एक बीस-बाईस साल का युवक वहां आया और उनके पास आकर बैठ गया। वह उत्सुकतावश उस व्यक्ति को देखने लगा। श्रीमद्भागवत गीता का पाठ कर रहे उस व्यक्ति को देखकर उसके युवामन में एक सवाल उठा।
उसने उस सज्जन से पूछा, “क्या आप आज के इस अंतरिक्ष युग में भी ऐसी किताब पढ़ते हैं? आज जबकि मनुष्य के कदम चाँद तक पहुँच गए हैं और आप फिर भी अभी तक रामायण और गीता में अटके हुए हैं ?”
तब उस सज्जन व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए उस युवक से पूछा, “श्रीमद्भागवत गीता के बारे में तुम क्या जानते हो युवक? आप क्या करते हो?”
उस युवक ने कहा, “आज के इस विज्ञान के युग में यह सब पढ़कर क्या होगा। मैं कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक हूँ। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम करता हूँ। श्रीमद्भागवत गीता के पाठ से कुछ नहीं होता। यह किसी काम का नहीं है।”
उस युवक की बातें सुनकर वह सज्जन मंद-मंद मुस्कुराने लगे। तभी वहां दो बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ आकर रुकीं। एक कार से दो ब्लैक कैट कमांडो और दूसरी कार से एक सिपाही नीचे उतरे।
सिपाही उनके पास आकर अभिवादन किया। उसने दौड़कर कार की पिछली सीट का दरवाजा खोला। श्रीमद्भागवत गीता का पाठ कर रहे सज्जन उठे और अपनी कार में बैठ गए।
यह सब देखकर वह युवक हैरान था। उसे लगा कि यह कोई बहुत बड़े इंसान हैं। वह दौड़कर उनके पास गया और उनसे पूछा, “महोदय! आप कौन हैं? क्या मैं आपका परिचय जान सकता हूँ?”
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सज्जन ने धीरे से कहा, “मैं भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का चेयरमैन विक्रम साराभाई हूँ।”
वह युवक हैरान-सा रह गया मानो उसे बिजली का झटका लगा हो। क्योंकि वह उसी रिसर्च सेंटर था जहाँ वह युवक काम करता था।
उस युवक ने अपनी धृष्टता के लिए उनसे क्षमा माँगी। वह विक्रम साराभाई के पैरों में गिरकर रोने लगा।
साराभाई ने उसे उठाया और समझाया, “हर सृजन के पीछे, हमेशा एक सृजनहार होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह महाभारत का काल है या वर्तमान भारत। भगवान को हमेशा याद रखना चाहिए।”
{विक्रम अंबालाल साराभाई एक भारतीय वैज्ञानिक और प्रर्वतक थे, जिन्हें आमतौर पर भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक के रूप में जाना जाता है। उस समय विक्रम साराभाई के नाम पर 13 शोध संस्थान थे। वे परमाणु योजना समिति के अध्यक्ष भी थे, जिनकी नियुक्ति भारत के प्रधान मंत्री द्वारा की गई थी।}
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी तक विज्ञान में जितने भी आविष्कार या नए तथ्यों का पता चला है उनमें से अधिकतर आस्तिक और ईश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा किया गया है। इसलिए यह जरुरी है कि हम ईश्वर में विश्वास बनाये रखें। अपने प्राचीन ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत, गीता आदि से जुड़े रहें और उसके मर्म को समझते रहें।
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हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैंन डॉ. कलाम ने भी श्रीमद्भागवत् गीता का अध्ययन किया था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “गीता एक विज्ञान है। अपनी उच्च सांस्कृतिक विरासत जिसमें गीता, रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ शामिल हैं, पर हर भारतीय को गर्व करना चाहिए।“
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वास्तव मे विक्रम साराभाई बहुत ही प्रतिभाशाली थे, बहुत बढ़िया पोस्ट साधुवाद