प्रस्तुत पोस्ट Farid Nanak Kabir Stories in Hindi में हम शेख फरीद, गुरु नानक और कबीर दास की जीवन से जुड़ी प्रेरक प्रसंग पढ़ेंगे। उम्मीद है कि ये लघु कहानियाँ आपको पसंद आएंगी।
फरीद और नानक
संतों की नगरी मुलतान में एक संत का आगमन हुआ। वे वहाँ के महान संत शेख फरीद और वहाँ उपस्थित दूसरे संतों के साथ कुछ समय बिताना चाहते थे। शेख फरीद के डेरे मे जब वे संत पहुंचे तो वहाँ तैनात दरबान ने उनको बाहर ही रोक दिया।
दरबान ने शेख फरीद से उस संत के आने की बात कही। डेरे में मौजूद संतों की बहुत अधिक संख्या होने से वहाँ किसी नए संत को रखना संभव नहीं था। अपनी इसी असमर्थता को प्रकट करने के लिए शेख फरीद ने एक दूध से भरा प्याला उस संत को दे दिया।
दूध भरे प्याले को देखकर तनिक सोचने के पश्चात उस आगंतुक संत ने उस प्याले में एक गुलाब की पंखुड़ी डालकर वह प्याला दरबान के ही हाथ शेख फरीद को लौटा दिया। दूध की सतह पर तैरती हुई गुलाब की पंखुड़ी को देखकर शेख फरीद मुस्कुराए। वे समझ गए कि बाहर खड़ा संत कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं है। डेरे के बाहर आकर जब स्वयं शेख फरीद ने देखा तो उनके सामने और कोई नहीं, अपितु संत श्री गुरु नानक जी खड़े थे। हर्षित मन से शेख फरीद ने उनका स्वागत किया और सम्मानपूर्वक उनको अपने डेरे मे रहने की अनुमति दे दी।
तीव्र इच्छा
सूफी संत शेख फरीद नदी किनारे बैठे थे। एक शिष्य ने जाकर जिज्ञासा प्रकट की कि परमात्मा को कैसे खोजें। फरीद ने उससे कहा – मैं नहाने जा रहा हूँ, तुम भी साथ साथ चलो। दोनों स्नान करने चले गए।
फरीद के साथ शिष्य भी नदी में उतर गया। उसके मन मे बार- बार यही प्रश्न उठ रहा था कि परमात्मा का और नहाने का क्या संबंध? जैसे ही शिष्य ने पानी मे डुबकी लगाई, फरीद ने उसकी गर्दन पकड़ थोड़ी देर पानी मे डुबोए रखी।
शिष्य ने बड़े हाथ- पैर पटके, खूब ज़ोर लगाया, लेकिन वह फरीद की पकड़ से छूट नहीं पाया। आखिर मे जब उसकी सांस घुटने लगी, तब उसने इतनी ज़ोर का झटका दिया कि फरीद की सख्त पकड़ के बाबजूद वह मुक्त हो गया। गुस्से में ज़ोर से उफनते हुये वह बोला – मैं तो आया था भगवान को खोजने, मगर आप तो मुझे मारने पर तुले हुए थे।
फरीद ने बड़े शांत भाव से कहा – जब मैंने तुम्हें पानी के नीचे डुबोए रखा था, तब कितनी इच्छाएं तुम्हारे मन में आई थी? शिष्य बोला – मेरी एक ही इच्छा थी कि आप की पकड़ से छूट कर सांस ले सकूँ। फरीद ने कहा – बस यही मेरा जबाब है। जिस क्षण ईश्वर को इतनी ताकत से चाहने लगोगे, उसी क्षण ईश्वर मिल जाएँगे।
संवाद की भाषा
बाबा फरीद अपने कुछ शिष्यों के साथ काशी जा रहे थे। शिष्यों ने सोचा, काशी में संत कबीर रहते हैं। जब दोनों संत मिलेंगे तो उनके आपसी बातचीत से हमारा ज्ञान बढ़ेगा। फरीद के आगमन से कबीर के शिष्यों ने भी ऐसा ही सोचा। दोनों संत मिले। तीन दिनो तक दोनों साथ रहे, लेकिन दोनों के बीच कोई ज्ञान चर्चा नहीं हुई।
चौथे दिन बाबा अपने शिष्यों के साथ आगे चल पड़े। रास्ते में शिष्यों ने पूछा – बाबा! हम सोच रहे थे कि संत कबीर की बातचीत से हमारा कुछ ज्ञान बढ़ेगा, लेकिन आपलोग तो कुछ बोले ही नहीं।
फरीद बोले – मैं किससे बात करता? कबीर जैसे ज्ञानी के सामने मैं अपना अज्ञान कैसे प्रकट करता? अपने शिष्यों द्वारा यही प्रश्न पूछे जाने पर कबीर का भी यही उत्तर था। दोनों संतों के शिष्यों मे समझ मे आ गया कि दो ज्ञानियों के संवाद की भाषा गूंगी हो जाती है जबकि अज्ञानी वाद – विवाद में फंस जाते हैं।
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