प्रस्तुत पोस्ट Lokayata Quotes in Hindi यानी लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन के कुछ प्रमुख विचारों से अवगत होंगे। यह दर्शन भारतीय भौतिकवादी विचारों को संपुष्ट करता है।
लोकायत दर्शन के प्रमुख विचार
वस्तुतः “लोकायत” का सीधा और सरल अर्थ है लोगों का दर्शन। इस शब्द का प्रयोग पहली बार प्राचीन बौद्धों द्वारा लगभग 500 ईसा पूर्व में किया गया था।
रामधारी दिनकर ने कहा है – “नास्तिको वेद निन्दक।” भारतीय परंपरा में नास्तिक उस व्यक्ति को कहा गया है, जो वेद की निन्दा करता है। ईश्वर की सत्ता न मानने वालों को नास्तिक कहने की प्रथा बहुत बाद को चली। पाणिनि के काल तक भी नास्तिक उसे कहते थे, जो परलोक के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता था। पाणिनि का सूत्र है, “अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः।” अर्थात् परलोक की सत्ता मानने वाला व्यक्ति आस्तिक और न मानने वाला व्यक्ति नास्तिक कहलाता है।” कुछ लोग इसे भारतीय दर्शन का एक विधर्मी तत्त्व भी मानते हैं।
चार्वाक और बृहस्पति
लोकायत सम्प्रदाय के दो प्रमुख हैं – चार्वाक और बृहस्पति। इन्होंने वेदों की निन्दा करते हुए कहा है – “वेद तो ठगों, प्रपंचियों और मांसभक्षियों की रचना है।” आचार्य शंकर ने इस मत के विषय में कहा है – “कुछ भौतिकवादी हैं, जो आत्मा को स्वयं शरीर से पहचानते हैं और यह सोचते हैं कि शरीर से अलग ऐसी कोई आत्मा नहीं होती जो स्वर्ग या मोक्ष को प्राप्त कर सके।”
Lokayata Quotes in Hindi लोकायत दर्शन के प्रमुख विचार
1. पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि) और वायु – ये चार ही तत्त्व हैं।
2. इन चारों के संयोग से शरीर, इन्द्रिय और विषय बनते हैं।
3. प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है।
4. अनुमान कोई प्रमाण नहीं है।
5. काम ही पुरुष है।
7. चैतन्ययुक्त शरीर ही आत्मा है।
8. लौकिक मार्ग ही अनुसरण करें।
9. मरण ही मोक्ष है।
10. लोकायत ही एकमात्र दर्शन है।
11. इस संसार के अतिरिक्त और कोई दूसरा संसार नहीं है। न तो स्वर्ग है न नरक। शिवलोक या ऐसे ही लोकों की बातें धूर्तों ने गढ़ी हैं।
12. बुद्धिमान लोगों को मोक्ष के लिए कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है। मूर्ख ही तप और व्रत आदि से शरीर को शक्तिहीन और निर्बल बनाते हैं।
13. अग्निहोत्र, कर्मकांड, तीन वेद, त्रिदण्ड, भस्म लेपन आदि उन लोगों के जीविका कमाने के साधन हैं, जिनके पास बुद्धि और शक्ति का अभाव है।
14. बुद्धिमान लोगों को, इस संसार के सुख प्रदान करने वाले साधन, जैसे – पशुपालन, कृषि, व्यापार, राजनीतिक, प्रशासन आदि के जरिये प्राप्त करना चाहिए।
15. जहाँ तक संभव हो सुख का आनंद लेने और दुःख-दर्द से बचने में ही ज्ञान निहित है।
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