जैसा कि कहा जा रहा है कि पिछले तीन दशकों में इस वर्ष टिड्डी दल का यह सबसे बड़ा हमला है। प्रस्तुत पोस्ट How to Control Locust Tiddi में हम इसी पर चर्चा करेंगे। सबसे पहले टिड्डियों से सम्बंधित कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं।
भारत पर टिड्डियों का हमला 1812 से ही होता आ रहा है।
टिड्डियों का भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण बढ़ता वैश्विक तापमान यानी क्लाइमेट चेंज है।
1926 से 1931 के मध्य पांच सालों में टिड्डियों द्वारा अनुमानित 10 करोड़ रूपये के बराबर फसलों का नुक्सान हुआ। बाद में 1940 से 1946 और 1949 से 1955 तक भी टिड्डियों का हमला होता रहा और फसलों की क्षति होती रही।
टिड्डियों का जीवन चक्र लगभग चार महीने का होता है। एक वयस्क मादा 80 से 120 अंडे देती है। अंडे से शिशु टिड्डी के विकास में 12 -14 दिन लग जाते हैं।
एक शिशु टिड्डी भी फसल को नुक्सान पहुंचाता है। एक शिशु टिड्डी को वयस्क बनने में 40 से 45 दिन लगते हैं और 60 दिनों में वे प्रजनन के योग्य हो जाती हैं।
यदि सभी परिस्थितियां अनुकूल रहे तो इसके एक दल में सात से आठ करोड़ टिड्डियां हो सकती हैं, जो हवा की दिशा में एक दिन में 150 किमी यानी लगभग 80 मील तक की यात्रा कर सकती हैं।
इनके मार्ग में आनेवाली सभी हरित संसाधन यानी फसलों और पेड़ – पौधों को खा जाते हैं ।
वर्ष 1993 में भी टिड्डियों का आक्रमण कई राज्यों पर हुआ था और करोड़ों का नुक्सान हुआ था ।
टिड्डियों के प्रजनन के लिए रेगिस्तानी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।
एक टिड्डी लगभग दो ग्राम भोजन प्रतिदिन भोजन करती है। यदि एक छोटा सी गणना की जाय और एक वर्ग किलोमीटर में यदि एक करोड़ टिड्डी आ जाय तो प्रतिदिन वे दो करोड़ ग्राम यानी बीस हजार किलोग्राम फसल खा जायेगें। यानी ये हजारों व्यक्ति का आहार प्रतिदिन चट कर जाएंगे।
टिड्डियाँ चमकीले पीले रंग वाले कीट हैं जिनके पिछले पैर लम्बे होते हैं। भारत में जो अभी आये हैं वे डेजर्ट हार्पर प्रजाति की टिड्डियाँ हैं।
यदि एक टिड्डी अकेली हो तो उतनी खतरनाक नहीं होती लेकिन यदि ये झुंड में हो तो जमीन पर खड़ी हरित सम्पदा की सबसे बड़ी विनाशक होती है।
सबसे आश्चर्य की बात है कि ये फूल, फल , पत्ते, बीज, छाल या अंकुरित पौधे या बीज सबकुछ खा जाती है।
टिड्डी दल पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता है?
आज विज्ञान और टेक्नोलॉजी बहुत तरक्की कर गया है। टिड्डियों के उपस्थिति और मूवमेंट को ड्रोन कैमरा या सेटेलाइट से मॉनिटर किया जा सकता है। लगातार उसकी ट्रैकिंग की जा सकती है। जिस स्थान पर उनकी उपस्थिति हो वहां पर ड्रोन से छिड़काव कर उनको ख़तम किया जा सकता है।
टिड्डी दलों को भगाने के लिए थालियां पीटकर, ढोल और नगाड़़े बजाकर, लाउडस्पीकर या डी जे से उच्च तीव्रता वाले ध्वनि पैदा कर उनको भगाया जा सकता है।
गावों में जब कभी टिड्डियाँ निकलती हैं तो शोरगुल का सहारा लेकर ही उनको भगाया जाता है या कुछ लोग धुँआ से भी भगाते हैं लेकिन यह उपाय छोटे स्तर तक ही किया जा सकता है। ऐसे भी धुँआ करने से प्रदूषण भी फैलता है , इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
टिड्डी दल के अण्डों पर कीटनाशक का छिड़काव कर उनको नष्ट किया जा सकता है। इसके लिए भारत सरकार के कृषि से संबंधित वेबसाइट का अवलोकन करें।
टिड्डी दल के आक्रमण से संबंधित विशेष जानकारी यहाँ से प्राप्त करें : FAQ
फसल कट जाने के बाद खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी जाते है ताकि उसके अण्डों को नष्ट किया जा सके।
विश्व के उन सभी देशों को मिलकर इसके लिए प्रयास करना चाहिए। तभी इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
अभी भारत के कई राज्य टिड्डियों की समस्या से त्रस्त हैं। यदि आपके पास कोई पारंपरिक जानकारी है तो कमेंट द्वारा हमारे साथ शेयर करें ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा ले सकें।
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