महान पार्श्व गायिका भारतरत्न लता मंगेशकर जीवनी
भारतरत्न कंठ कोलिला लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और वरिष्ठ पार्श्वगायिका हैं. उन्होंने अपने गायन की शुरुआत 1942 में की थी. यदि देखा जाय तो इस क्षेत्र में उन्हें लगभग सात दशक से भी अधिक हो चुके हैं. उन्होंने बॉलीवुड की लगभग 1000 फिल्मों में 36 से भी अधिक भाषाओँ में गाने गाये हैं. प्रस्तुत है पोस्ट: Lata Mangeshkar Biography Life Story.
आरंभिक जीवन
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश में हुआ था. उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक शास्त्रीय गायक और रंगमंच के अभिनेता थे. मूल रूप से इनके परिवार का surname हर्दिकर था, लेकिन उनके पिताजी ने उसे बदलकर मंगेशकर कर दिया क्योंकि उनका जन्म मंगेशी नामक शहर में हुआ था. बचपन में लताजी का नाम हेमा था, लेकिन माता पिता ने उसे बदलकर लता कर दिया. यह उन्होंने अपने एक नाटक लतिका नाम की महिला पात्र के नाम पर रखा था.
लता के प्रथम संगीत गुरु उनके पिता थे. उन्होंने पांच वर्ष की आयु में अपने पिता के संगीतमय नाटकों में बतौर अभिनेत्री काम करना शुरू कर दिया था. उनके पिता के गायन और सीख ने उनके मन पर अमिट छाप छोडी है.
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ह्रदय रोग की वजह से उनके पिता की मृत्यु 1942 में हो गयी. उस समय लता सिर्फ 13 साल की थीं. इस घोर विपत्ति में उनके पिता के एक घनिष्ट मित्र एवं नवयुग चित्रपट मूवी कंपनी के मालिक मास्टर विनायक दामोदर कर्नाटकी ने उन्हें सहारा और आश्रय दिया. विनायक ने इस युवा लड़की को देश में सबसे बड़ी गायिका बनने में बहुत मदद की. वे ही उसे फिल्मों की दुनिया में लेकर आये.
फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत
विनायक की मदद से लता ने वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म ‘कीति हसाल’ (1942) में ‘नाचू या गदे खेलू सारी मनी हौस भरी’ गीत गाया. इस गीत को फिल्म से निकाल दिया गया. उन्होंने लता जी को नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला गौर’ में एक छोटा सा रोल भी दिया. ‘नतली चैत्राची नवलाई’ गीत भी उन्होंने इस फिल्म में गाया.
सन 1945 में मास्टर विनायक की कंपनी का मुख्यालय मुंबई आ गया और लता को भी बम्बई आना पड़ा. इस फिल्म ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया. बम्बई में उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान भेंडी बाजारवाले से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा और सन 1946 में बनी फिल्म ‘आपकी सेवा’ में उन्होंने बहुत सुरीले सुर में ‘पा लागूं कर जोरी’ गाकर Hindi फिल्मों में अपने गायन की शानदार शुरुआत की. लता ने अपनी छोटी बहन आशा भोंसले के साथ मास्टर विनायक की पहली Hindi फिल्म ‘बड़ी मां’ (1945) में छोटी –छोटी भूमिकाएं भी निभाई. इस फिल्म की हीरोइन नूरजहाँ थीं. लता ने इस फिल्म में एक भजन भी गाया – ‘माता तेरे चरणों में.’ इसके बाद उनके कदम विकास पथ पर आगे बढ़ता ही चला गया. विनायक की अगली फिल्म सुभद्रा (1946) के लिये गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान उनका परिचय संगीत निर्देशक वसंत देसाई से कराया गया.
देश के विभाजन के बाद
संगीत जगत में लता ने अभी बुलंदियों को छूना ही किया था कि सन 1947 में देश का विभाजन हो गया और उनके गुरू उस्ताद अमानत अली खान भेंडी बाजारवाले उनसे दूर पकिस्तान चले गए. उसके बाद लता ने अमानत खान देवासवाले और पंडित तुलसीदास शर्मा से हिन्दुस्तानी संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की.
इसके बाद उन्हें एक और झटका लगा. जब सन 1948 में मास्टर विनायक का निधन हुआ. वे आँसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर सकीं. इस बार मशहूर संगीत निर्देशक गुलाम हैदर उनकी मदद करने के लिए आगे आए. हैदर ने लता को गायिका बनाने का बीड़ा उठाया. वे लता को फ़िल्म-निर्माता शशिधर मुखर्जी से मिलाने ले गए, जो उस समय ‘शहीद’ (1948) बना रहे थे, लेकिन मुखर्जी ने उनकी आवाज को बहुत बारीक कहकर ख़ारिज कर दिया. वे नूरजहाँ, शमशाद बेगम और जौहरबाई अंबालेवाली से गवाना अधिक पसंद करते थे; क्योंकि वे अक्सर भरी एवं नासिक्य आवाज में गाती थीं.
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इस नामंजूरी से नाराज होकर हैदर ने लता को वचन दिया कि वह दिन दूर नहीं जब फ़िल्म निर्माता और निर्देशक उनके पैरों पर गिरेंगे और अपनी फिल्मों में गाने के लिए उनसे प्रार्थना करेंगे. हैदर ने उसी वर्ष अपना वचन निभाया. उन्होंने लता को फ़िल्म ‘मजबूर’ में ‘दिल मेरा तोडा’ गाना दिया और इसके साथ ही उनकी गायिकी की लंबी यात्रा आरंभ हो गई.
ख्याति की ओर
1950 के दशक में लता हिन्दी फिल्मों की सबसे अधिक लोकप्रिय एवं ख्यातिप्राप्त गायिका बन गई. लगभग सभी प्रसिद्ध संगीत-निर्देशक और फ़िल्म-निर्माता उनसे संपर्क करने के लिए दौड़ पड़े. जैसे कि अनिल बिस्वास, शंकर-जयकिशन, नौशाद, एस.डी.बर्मन, सी.रामचन्द्र, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, खय्याम, रवि,सज्जाद हुसैन, रोशन, कल्याणजी-आनंदजी, वसंत देसाई, सुधीर फडके, हंसराज बहल और उषा खन्ना.
‘बैजू बावरा’(1952),’मुगल-ए-आजम’ तथा ‘कोहिनूर’ जैसी फिल्मों में नौशाद के लिए राग-आधारित अनेक गीत गाने के बाद शंकर-जयकिशन ने लगभग सभी, विशेषकर राजकपूर की फिल्मों में गाने के लिए लता को गायिका के रूप में चुना. महान संगीतकार एस. डी. बर्मन ने सन 1957 से पहले अपनी अनेक फिल्मों में अभिनेत्रियों पर फिल्माए जानेवाले गानों के लिए गायिका के रूप में मुख्यतः लता को ही चुना. इनमें ’सजा’(1951), ’हाउस नं.44’,(1955) और ‘देवदास’(1955) जैसी फिल्में शामिल थीं.
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1950 के दशक में लता मंगेशकर हिन्दी सिनेमा में अविवादित रूप से सर्वोच्च महिला पार्श्वगायिका बन गई. अब उन्होंने फ़िल्म जगत में लगभग हर बड़े संगीत लेखक के लिए गाने रिकार्ड कराए, जिनमें से अनेक गाने हमेशा के लिए मशहूर हो गए.
ऐ मेरे वतन के लोगों की प्रस्तुति
1962 में उन्हें हेमंत कुमार द्वारा संगीतबद्ध किए गए गीत ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ के लिए दूसरा ‘फिल्मफेयर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ. 27 जून, 1963 को लता मंगेशकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत गया, जिसे सुनकर नेहरूजी की आँखों में आँसू आ गए.
इस दशक में लता मंगेशकर के एक और संगीतकार थे मदनमोहन, जिनके कुछ गीत जैसे कि ‘आपकी नजरों ने समझा’, ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिम झिम’ (1964 )तथा ‘तू जहाँ-जहाँ चलेगा’ (1966 ) अमर गीत बन गए.
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ऐसी दशक के दौरान वे महान संगीत निर्देशक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सम्पर्क में आई, जिनके लिए उन्होंने अपने जीवन में सबसे अधिक गाने गाए हैं. लता ने उस समय के सभी महान गायकों- मुकेश, मन्ना डे, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार आदि के साथ भी युगल गीत गाये.
सत्तर के दशक में लता के संगीत-जीवन में एक नया और महत्वपूर्ण क्षण आया, जो उन्हें बड़ी ऊँचाई पर ले गया, ‘पाकीजा ‘जब रिलीज हुई, उसमे लता के गाए ’चलते-चलते’ और ‘इन्हीं लोगों ने’ गानों ने सर्वत्र धूम मचा दी और साबित हो गया कि लता की आवाज दुनिया भर में सबसे अधिक मधुर है. लता ने एस. डी. बर्मन की अंतिम फिल्मों में बहुत से लोकप्रिय गाने रिकार्ड कराए, जैसे कि ‘रंगीला रे’(प्रेम पुजारी,1970),’ खिलते हैं गुल यहाँ’ (शर्मीली,1971), और ‘पिया बिना’ (अभिमान,1973).फ़िल्म ‘छोटी सी बात’(1974) में उन्होंने सदाबहार गाने गाए हैं.
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और राहुल देव बर्मन ने उस दशक में लता के गाए बहुत से विशेष उल्लेखनीय एवं शानदार गीतों की रचना की. लता ने राहुल देव बर्मन के साथ ‘अमर प्रेम’ (1971 ) ’कारवाँ’ (1971) ’कटी पतंग’ और ‘आंधी’ (1975 ) जैसी फिल्मों में अनेक सफल गाने रिकार्ड कराए.
उन्हें सन 1973 में ‘बीती ना बिताई’ गाने के लिए और सन 1975 में ‘रूठे-रूठे पिया’ गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का ‘राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार’ प्रदान किया गया. सन 1975 में बनी फ़िल्म ’मौसम’ में उन्होंने भूपेन्द्र के साथ शास्त्रीय गीत ‘दिल ढूंढता है’ गाया.
विदेशों में कार्यक्रम
1970 के दशक में लता मंगेशकर ने भारत और विदेश में मंच पर अनेक संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किए, जिनमें कई चैरिटी शो भी शामिल थे. विदेश में उनका पहला कार्यक्रम ‘रायल अलबर्ट हॉल’लन्दन में प्रस्तुत किया गया था.
1980 के दशक में लता फिल्मों में अपने पार्श्वगायन को लेकर चयनात्मक हो गई. उन्होंने मुख्यतः जाने-मने फ़िल्म-निर्माताओं के लिए गाने रिकार्ड कराए, जैसे कि ‘यशराज फिल्म्स’ और ‘राजश्री प्रोडक्शंस’. हालाँकि उन्होंने रवीन्द्र जैन, बप्पी लाहिड़ी, शिव-हरी, राम-लक्ष्मण और ए.आर.रहमान जैसे कुछ चुनिन्दा नए संगीत-निर्देशकों के साथ भी काम किया.
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लता मंगेशकर ने सन 1990 में अपनी निजी फ़िल्म निर्माण कम्पनी आरंभ की, जिसके द्वारा प्रस्तुत पहली फ़िल्म थी ‘लेकिन’ उस फ़िल्म में उनके गीत ‘यारा सिलि सिलि’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के रूप में तीसरी बार’ नेशनल अवार्ड’ प्रदान किया गया. 1990 के दशक में उन्होंने जतिन-ललित, नदीम-श्रवण और राजेश रौशन जैसे संगीत-निर्देशकों के लिए बहुत बार गीत गाए. उन्होंने अनेक गैर-फिल्मी गाने भी रिकार्ड कराए, जिनमें जगजीत सिंह के साथ गाई गजलें भी शामिल हैं.
नए दौर में
इस अवधि के दौरान ए.आर.रहमान ने भी लता मंगेशकर के साथ कई गाने रिकार्ड करके ख्याति अर्जित की. इनमें से अत्यंत लोकप्रिय गाने इस प्रकार हैं- ‘जिया जले’ (दिल से), ’खामोशियाँ गुनगुनाने लगीं’ (वन टू का फोर ) और ‘ओ पालन हारे’ (लगान).
लताजी का व्यक्तित्व बहुमुखी है. गायन तो उनके जीवन का एक पहलु मात्र है. एक कलाकार की हैसियत से वे संगीत रचना भी करती हैं. उन्होंने फिल्मों में अभिनय किया है और फ़िल्म-निर्माण भी. उन्होंने पहली बार सन 1955 में ‘राम राम पव्हाने’ फ़िल्म के लिए संगीत दिया था और उसके बाद 1960 के दशक में भी कई मराठी फिल्मों के लिए छदम नाम ‘आनन्द घन’ के तहत संगीत-रचना की थी. ये मराठी फिल्में एस प्रकार थीं- ‘तितुका मेल्वाव’ (1963), ‘मोहित्यांची मंजुला’ (1963), ‘सधी मनसे’ (1965),’तंबाडी मारी’ (1969) और ‘शबास सुनबई’ (1989).
‘साधी मनसे’ फ़िल्म के लिए उन्हें महाराष्ट्र राज्य सरकार का ‘सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार’ प्रदान किया गया. इसी फ़िल्म के गीत ‘ऐरानिच्चा देव तुला’ को सर्वश्रेष्ठ गीत का पुरस्कार प्रदान किया गया.
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लता ने कई फिल्मों में अभिनय भी किया है, जिनमें ये फिल्में शामिल हैं- ‘पहिली मंगलगौर’ (1942,मराठी), ‘चिमुक्ला संसार’ (1943,मराठी), ’माझे बाल’ (1943,मराठी),’गजभौ’ (1944,मराठी), ’बड़ी माँ’(1945,हिन्दी), ’जीवन यात्रा’ (1946 ), ’सुभद्रा’ (1946 ), ‘मन्दिर’ (1948), ‘छत्रपति शिवाजी’(1952, हिन्दी-मराठी) और ‘पुकार’ (2000).
लता मंगेशकर ने चार फिल्में भी बनाई हैं, जो इस प्रकार हैं- (1953,मराठी), ‘झांझर’ (1953,हिन्दी सी.रामचन्द्र के सहयोग से निर्मित), ‘कंचन’ (1955,हिन्दी) और ‘लेकिन’ (1990, हिन्दी). फ़िल्म जगत् और राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवा के लिए उन्हें राज्यसभा के ,मानद सदस्य के रूप में भी मनोनीत किया गया.
पुरस्कार और सम्मान
अद्वितीय गायन प्रतिभा की धनी लता मंगेशकर को अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है, जिनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार इस प्रकार हैं – पद्मभूषण (1969), पद्मविभूषण (1999), दादा साहेब फाल्के अवार्ड (1989), भारतरत्न (2001), तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और 12 बंगाल फ़िल्म पत्रकार संगठन अवार्ड भी उन्होंने जीते हैं. सन 1993 में उन्हें ‘फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया.
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इस महान गायिका के सम्मान में मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने सन 1984 में ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ आरंभ किया और उसके आठ साल बाद सन 1992 में महाराष्ट्र सरकार ने भी हर वर्ष एक ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ देने की घोषणा की.
समाज और देश के लिये
लता का हृदय उनकी मधुर आवाज जितना ही कोमल है वे अपनी संगी-साथियों के बारे में बहुत चिंतित रहती हैं. सन 2001 में उन्होंने ‘दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल’ स्थापित किया, जिसका संचालन ‘लता मंगेशकर मेडिकल फाउंडेशन’ (अक्टूबर 1989 में मंगेशकर परिवार द्वारा संस्थापित) द्वारा किया जाता है, जो इस बात का ठोस प्रमाण है कि वे मानवता की सेवा के लिए किस सीमा तक समर्पित हैं. उन्होंने सन 2005 में पकिस्तान भूकंप राहत के लिए भी एक बड़ी रकम दान की थी. 28 नवम्बर २०१२ को उन्होंने अपने म्यूजिक कंपनी एल एम म्यूजिक लांच किया और इसमें उन्होंने अपने भजन का एक एल्बम लांच किया. लता जी को क्रिकेट देखना बहुत पसंद है और वे संगीत के क्षेत्र में सतत क्रियाशील बनी रहें, सदैव स्वस्थ रहें, ऐसी मंगल कामना है. धन्यवाद!
Update: सुर की साधिका लता जी का निधन 22 फरवरी 2022 को हो गया। इस महान आत्मा को शत शत नमन।
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बहुत विस्तृत और बढ़िया जानकारी पंकज जी
बहुत ही बेहतरीन लेख है आपका थैंक्स फॉर शेयरिंग लता मंगेशकर की बायोग्राफी