एनरिको फ़ेर्मि एक महान इटालियन सैधांतिक और प्रायोगिक भौतिक शास्त्री (Physicist) थे। उन्होंने सृष्टि के सबसे छाटे कण अणु में निहित उर्जा का अनुमान लगा लिया था। उनका मानना था कि इस असीम उर्जा का इस्तेमाल मानवता की भलाई में हो; इसके लिए उन्होंने अपना वतन इटली छोड़ दिया और अमेरिका आ गए। लेकिन बम तो विध्वंस के लिए ही होता है। बस! हाथ बदले, अणु शक्ति (Atomic Power) का दुरुपयोग नहीं बदला।
29 सितंबर 1901 को रोम में जन्मे एनरिको फ़ेर्मि जब स्कूल में थे, तब उनकी रुचि गणित विषय में अधिक थी। फ़ेर्मि के बचपन का सबसे अच्छा दोस्त उनका बड़ा भाई था। वे दोनो साथ-साथ बिजली की मोटरें व मशीनें बनाते। दोनों ने कई पुस्तकें खंगालीं और हवाई जहाज़ के नक़्शे व माडल भी तैयार किये। दुर्भाग्य से सन् 1915 में फे़र्मि के भाई ग्यूलियों की मौत हो गयी।
16 साल के फ़ेर्मि के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। लेकिन उसने अब किताबों को अपना साथी बना लिया। 19 साल की आयु में उन्हें ‘स्कूलो नार्मले सुपरिएसरे’ फ़ेलोशिप मिली। फ़ेर्मि ने चार साल पीसा विश्वविद्यालय में बिताये और 1922 में भौतिकी में Doctorate की डिग्री हासिल की।
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1927 में उन्हें पीसा यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफ़ेसर का पद मिला और वे इस पर सन् 1938 तक रहे। सन 1928 में प्रोफ़ेसर फ़ेर्मि का विवाह लोरा केपान से हुआ। दोनों की संतानों में एक बेटी नेल्ला व एक बेटा ग्लूडो पैदा हुए। आने वाले सालों में फ़ेर्मि ने सांख्यिकी के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत की खोज की जो आज भी ‘Fermi Statistics’ के नाम से मशहूर है।
एक तरफ फ़ेर्मि जैसे वैज्ञानिक मानवता के विकास के लिए नयी-नयी खोजों में लगे हुए थे तो दूसरी ओर हिटलर ने यहूदियों के सफ़ाये की मुहिम चला रखी थी। 1934 में क्यूरी और जोलिअट के शोध कार्य रेडियो एक्टिव विकिरण (radioactive radiation) के आधार पर अणु-शक्ति की दुनिया का नया अध्याय खुल चुका था। ठीक इसी समय फ़ेर्मि ने ‘बीटा-क्षरण सिद्धांत’ (Beta decay) का प्रतिपादन कर सबसे छोटे कण की ताक़त के इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। अब पूरी दुनिया पर अपनी सत्ता क़ायम करने के लिए जर्मनी परमाणु बम की संभावनाओं पर काम कर रहा था।
उधर रोम में मुसोलिनी का फ़ासीवाद भी चरम पर था। फ़ेर्मि का अपने ही देश में दम घुट रहा था। एक सार्वजनिक आयोजन में फ़ेर्मि ने खुल कर कहा ‘विज्ञान की उन्नति के लिए हर तरह की स्वतंत्राता चाहिए, किसी तरह की पाबंदी नहीं।’ फ़ासीसत्ता को इस तरह के बयान कहां सहन होते? वे दिन इस महान वैज्ञानिक के घुटन के थे।
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फ़ेर्मि ने परमाणु आंतरिक संरचना, नाभिकीय अभिक्रियाओं और Neutron की बौछारों से एक तत्व को दूसरे में परिवर्तित करने का महत्वपूर्ण काम किया। इस खोज पर उन्हें 1938 में नोबल पुरस्कार मिला। नोबल सम्मान लेने के नाम पर उन्होंने देश से बाहर जाने की अनुमति ली और सपरिवार रोम से बाहर आ गये। बाद में वे अमेरिका में बस गये।
सन 1938 से 1942 तक वे Columbia University में भौतिकी के प्रोफ़ेसर रहे। वे परमाणु बम बनाने की पहली मेनहट्टन परियोजना के प्रमुख बनाये गये। तभी उन्होंने अल्बर्ट आईन्स्टीन को बताया कि किस तरह युद्ध पर आमादा जर्मनी अणु बम बनाने की कोशिशें कर रहा है।
आईन्सटीन ने इसकी जानकारी अमेरिका के राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को दी। इधर फ़ेर्मि परमाणु की चरम ताक़त के इस्तेमाल की विधि को जान चुके थे। 2 दिसंबर 1942 को Chicago University में परमाणु की नियंत्रित श्रृंखला का परीक्षण किया गया और इस तरह अमेरिका ने परमाणु बम बना लिया।
यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि विश्वशांति के लिए अपना देश छोड़ने वाले वैज्ञानिक की महानतम खोज का दुरुपयोग 16 अगस्त 1946 को जापान के हिरोशिमा और इसके तीन दिन बाद नागासाकी पर किया गया।
शायद दूसरे विश्व युद्ध का अंत इसी तरह होना था। घूमने, पहाड़ों पर चढ़ने जैसे रोमांचक खेलों के शौकीन फ़ेर्मि इस दुरुपयोग से बेहद दुखी थे। वे परमाणु शक्ति का प्रयोग शांतिपूर्ण कार्यों में करने के हिमायती थे। 28 नवबंर 1954 में उनका देहांत शिकागो में हो गया।
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