Guru Gobind Singh Birthday in Hindi /गुरु गोविन्द सिंह जयंती अर्थात गुरु पर्व
गुरु गोविन्द सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे. उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था. उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 यानि पौष सुदी सप्तमी विक्रमी 1727) को बिहार के पाटलिपुत्र शहर यानि पटना में हुआ था. उनके पिता का नाम गुरु तेगबहादुर था, जो सिखों के नवें गुरु थे. इनकी माताजी का नाम गुजरी था.
एक महान योद्धा थे गुरु गोविन्द सिंह जी
मात्र नौ वर्ष की अल्प आयु में ही वे एक वीर योद्धा बन चुके थे. अपने पिता गुरु तेगबहादुर के बलिदान ने उनके अन्दर अत्याचारों से लड़ने और उसका डटकर मुकाबला करने की असीम शक्ति भर दी थी.
उनके इस हुंकार से दुनिया भलीभांति परिचित है:
सवा लाख से एक लडाऊं।
तबै गोविन्द सिंह नाम कहाऊं॥
चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं।
तबै गोविन्द सिंह नाम कहाऊं॥
जब मेरा एक सिपाही सवा लाख दुश्मनों को मार गिराए, तब मुझे गोविन्द सिंह नाम से बुलाना. जब मैं चिड़िया को बाज से लड़ाने में सफल हो जाऊं, तब मुझे गोविन्द सिंह नाम से बुलाना. इसका अर्थ यह है कि तुम तभी विजयी कहलाओगे जब अनहोनी को करके दिखाओ.
गुरु गोविन्द सिंह का पारिवारिक जीवन
गुरु गोविन्द सिंह जी की पहली शादी माता जितो के साथ हुआ. इनसे इनको तीन पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह हुए. इनकी दूसरी शादी सुन्दरी देवी के साथ हुआ. इनसे इनको एक पुत्र अजीत सिंह हुए. इनकी तीसरी शादी साहिब देवन से हुई. इनसे इनको कोई संतान नहीं थी.
इनके दो पुत्र अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर नामक स्थान पर युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुये. इनके शेष दो पुत्रों जोरावरसिंह और फ़तेह सिंह को सरहिंद के नवाब ने अपना धर्म नहीं छोड़ने के कारण जिन्दा दीवारों में चुनवा दिया. सब कुछ लूट जाने के बाद भी उनके चेहरे पर उदासी या मायूसी लेशमात्र भी नहीं थी. बल्कि देश को स्वतंत्र और शक्तिशाली बनाने का जूनून था. इसीलिये इनको मानवता की रक्षा के लिए लड़ने वाले संत सिपाही की उपाधि दी गयी है.
खालसा पंथ की स्थापना
आप लोगों ने खालसा पंथ का नाम जरुर सुना होगा. 13 अप्रैल 1699 को गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की. इस दिन उन्होंने आनंदपुर साहब में एक विशेष सम्मलेन बुलाया. इसमें उन्होंने अपने सभी अनुयायियों को बुलावाया था. उन्होंने उन सबके समक्ष अपनी तलवार निकालते हुए कहा – “ऐसा कौन सा सिख है जो गुरु के लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार है, वह अपना सिर देने के लिए आगे आये.”
उनका यह उद्घोष सुनकर लाहौर का एक क्षत्रिय दयाराम आगे आया और बोला – “मैं तैयार हूँ कुर्बानी के लिए, मेरा सिर लीजिये.” गुरु गोविन्द सिंह उसे तम्बू के भीतर ले गए और जब बाहर आये तो उनकी तलवार खून से सनी हुई थी. इसी प्रकार उन्होंने और भी कुर्वानियाँ माँगी. दूसरी बार रोहतक का एक जाट धर्मदास, तीसरी बार द्वारका का एक रंगरेज, चौथी बार जगन्नाथपुरी का एक कहार और पांचवी बार बीदर का एक ब्राह्मण साहिबचंद अपने गुरु के लिए अपना जीवन समर्पण करने के लिए भीड़ से निकल कर बाहर आये. प्रत्येक बार वह उस भक्त को तम्बू के भीतर ले जाते और खून से सनी तलवार लेकर बाहर आते. बाहर खड़े हजारों अनुयायियों ने यह समझा कि गुरु जी ने पाँचों भक्तों को मार डाला.
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इसके पश्चात् गुरु गोविन्द सिंह तम्बू के भीतर गए और उन पाँचों अनुयायियों को स्नान कराकर, नए सुन्दर वस्त्र धारण करवाकर बाहर लेकर आये. उन्होंने उन पाँचों को पंच प्यारे नाम दिया. उन्होंने उन पंच प्यारों को एक ही पात्र में से अमृत पिलाया और एक ही पात्र में हलुआ खिलाया. उनके बीच अब किसी तरह के जात –पात का भेद भाव नहीं रहा और वे सभी आनंदपुर साहिब के निवासी बन गए. गुरु गोविन्द सिंह अब उनके पिता और माता साहिब दीवान उनकी माता बन गयीं. इस प्रकार बैशाखी के दिन एक नए पंथ “खालसा” या खालिस या शुद्ध की स्थापना गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा की गयी.
खालसा पंथ के सिद्धांत
इस नए पंथ यानि खालसा पंथ में कुछ बातों का निषेध किया गया. गुरु ने अपने शिष्यों को शरीर के केश न मुंडवाने, हमेशा जांघिया (कच्छा) पहनने, सिर को नंगा न रखने, केश सवांरने के लिए कंघा हमेशा अपने पास रखने, हाथ में लोहे का कड़ा पहनने और कर्द या कृपाण सदा अपने साथ रखने की सलाह दी. केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण को अनिवार्य कर दिया. इसे ही पंच ककार कहा गया.
गुरु गोविन्द सिंह जी के उपदेश
1. गुरु गोविन्द सिंह जी ने जुआ खेलने का विरोध किया. दूसरे के धन को हड़पने की प्रवृति घातक होती है.
2. उन्होंने नशीले पदार्थ के सेवन का विरोध किया. उन्होंने घूम्रपान और अन्य मादक पदार्थों के सेवन का भारी विरोध किया.
3. अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य का पाठ पढाया. यही कारण था कि उनके शिष्य शरीर से बलशाली थे. उनकी छोटी सी सेना ने मुग़लों को नाकों चने चबवा दिए. उनके अनुसार यदि मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में कर ले तो वह जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता है.
4. गुरु गोविन्द सिंह ने अपने शिष्यों को सदा शस्त्र पास रखने और युद्ध कला में निपुण होने की सीख दी. उनके अनुसार शस्त्रधारी सैनिक और भरी बंदूक की गोली के भय से लोग क़ानून का पालन करते हैं.
5. उनके मुताबिक़ हमारे सभी शिष्य चाहे वे किसी जाति में उत्पन्न हुए हों, उन्हें केवल क्षत्रिय समझना चाहिए. युद्ध क्षेत्र में मरना परम मंगल की बात है. इस संसार रूपी युद्ध क्षेत्र में बहादुर शूरवीर सैनिक अपना मस्तक ऊँचा रखें.
गुरु गोविन्द सिंह ने अपने शिष्यों को वीरता का ऐसा पाठ पढाया कि जब भी बहादुरी का जिक्र होता है तो खालसा पंथ के अनुयायियों का नाम पहले लिया जाता है. यहाँ तक की भारतीय सेना में भी सिख रेजीमेंट और खालसा रेजीमेंट के बहादुरी के किस्से किसी से छिपी नहीं हैं.
वाहि गुरुजी की खालसा वाहि गुरूजी की फ़तेह
गुरु गोविन्द सिंह ने नया उद्बोधन – वाहि गुरुजी की खालसा, वाहि गुरूजी की फ़तेह दिया जिसका अर्थ है खालसा ईश्वर का है और ईश्वर की फ़तेह निश्चित है. उन्होंने यह भी कहा कि मेरे बाद सिखों का कोई गुरु नहीं होगा. गुरु ग्रन्थ साहब ही सिक्खों का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करेगा.
कैसे मनायी जाते है गुरु जी की जयंती
गुरु गोविन्द सिंह जी के जन्म दिन को गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सभी सिख स्त्री- पुरुष, बच्चे –बूढ़े सुबह स्नान आदि से निवृत होकर गुरूद्वारे जाते हैं. वहां श्री गुरु ग्रन्थ साहब के सामने मत्था टेकते हैं, प्रसाद चढाते हैं और इसके बाद ही घर आकर कुछ भोजन करते हैं.
आप पायेंगे कि गुरूद्वारे में श्री गुरु ग्रन्थ साहब का अखंड पाठ हो रहा है. इस दौरान उनपर चंवर डुलाने का काम लगतार चलता रहता है. इस दिन श्री गुरु ग्रन्थ साहब को खूब अच्छी तरह से सजाकर रथ यात्रा निकाली जाती है.
गुरू पर्व के दिन गुरूद्वारों में लंगर किया जाता है.जिस समय से ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ का अखण्ड पाठ प्रारम्भ होता है, उसी समय से लंगर प्रारम्भ हो जाता है. इसमें ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जाति-पाति का भेद न रखते हुए सभी को एक समान समझते हुए एक पंक्ति में बिठाकर लंगर कराया जाता है.
इस प्रकार गुरू गोविन्द सिंह जी का जीवन एक कर्मवीर की तरह था. भगवान श्री कृष्ण की तरह उन्होंने भी समय को अच्छी तरह परखा और तदनुसार कार्य आरम्भ किया. उनकी प्रमुख शिक्षाओं में ब्रह्मचर्य, युद्ध-विद्या, सदा शस्त्र पास रखने और हिम्मत न हारने की शिक्षाएँ मुख्य हैं. उनकी इच्छा थी कि भारतवासी सिंह की तरह एक प्रबल प्रतापी जाति में परिणत हो जाये और भारतका उद्धार करें. गुरू गोविन्द सिंह जी की सभी शिक्षाओं को यदि आज देश का प्रत्येक नागरिक अपने जीवन में उतार ले तो देश का कायाकल्प हो जाए तथा अनेक समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो सकता है.
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