Lohri Festival Article in Hindi / उमंग के पर्व लोहड़ी पर हिंदी लेख
लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात्रि को अत्यंत धूमधाम के साथ मनाई जाती है.यह पंजाब राज्य में मनाये जाने वाला मुख्य पर्व है.
ऐसा कहा जाता है कि पूर्वजों द्वारा ठंड से बचने के लिए एक मन्त्र जपा गया था. इस मन्त्र के द्वारा सूर्य से प्रार्थना की गई थी कि वह पौष माह में अपनी किरणों से पृथ्वी को इतनी गर्मी प्रदान करे कि पौष माह की ठंड किसी भी व्यक्ति को नुकसान न पहुंचा सके. वे लोग इस मन्त्र को पौष माह की अंतिम रात्रि को अग्नि के सामने बैठकर बोलते थे. जिसका भावार्थ यही होता था कि सूर्य ने उन्हें ठंड से बचा लिया है. लोहड़ी एक तरह से सूर्य के प्रति आभार प्रकट करने के लिए हवन की अग्नि कही जा सकती है. ऐसा माना जाता है कि तभी से लोहड़ी के पर्व की शुरूआत हुई.
खुशियों और उल्लास का पर्व है लोहड़ी
इस दिन से शीतकाल की कड़क सर्दी से राहत मिलने की आशा में लोग खुशियाँ मनाते हैं. इसके पीछे एक मान्यता यह भी थी कि अग्नि की ऊँची-ऊँची लपटें सूर्य तक उनका संदेश पहुंचा देती है, इसीलिए लोहड़ी की अगली सुबह से ही सूर्य की किरणें शरद ऋतु का प्रभाव कम करना शुरू कर देती हैं और पौष माह की कड़क सर्दी में जमा शरीर का रक्त भी गरमाना प्रारम्भ हो जाता है.
वास्तव में यह अग्नि-पूजा का ही उत्सव है. लोहड़ी के दिन लोहड़ी की अग्नि से वंश वृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है. अग्नि में तिल डालकर पुत्र के लिए वर मांगे जाते हैं. इसीलिए नवजात शिशुओं और नव-विवाहित पुत्र की खुशी में लोहड़ी जलाई जाती है. इस दिन नवजात शिशुओं और उनकी माताओं को बधाई देने उनके घर जाते हैं. यह लोहड़ी के पर्व की एक परम्परा है.
लोहड़ी में गुड़ और तिल प्रसाद स्वरूप बांटे जाते हैं इसीलिए लोहड़ी को ‘तिलोडी’ अर्थात तिल और रोडी (गुड़) का पर्व भी कहा जाता है.
नव विवाहिता के लिए विशेष महत्व का पर्व है लोहड़ी
लोहड़ी नव-विवाहिता लडकियों की खुशियों का भी पर्व है. इस दिन नव-विवाहिता लडकियों को बाबुल के घर से उपहार प्राप्त होते हैं. इस दिन समधी और बहुओं के मायके से आई मिठास पास-पड़ोस में वितरित की जाती हैं.
इस पर्व से सम्बन्धित अनेक गीत हैं लेकिन दुल्ला भट्टी के साथ ‘सुंदर-मुंदरिए’ का गीत सम्पूर्ण पंजाब में हर बालक की जुबान पर रहता है. इस गीत में सांदल बार के दुल्ला भट्टी का यश गान किया गया है कि किस तरह उसने अत्याचारियों के हाथों से एक लड़की को छुड़ाकर उसका विवाह अपनी पुत्री की भांति किया था. इस गीत में युवाओं को यह संदेश दिया गया है कि वे अपने देश की बहन-बेटियों की रक्षा करें तथा उनकी इज्जत लूटने वाले अत्याचारियों को सजा दे. इस प्रकार लोहड़ी का पर्व स्त्री-रक्षा का संदेश भी देता है.
लोहड़ी पर्व देता है स्वास्थ्य रक्षा का सन्देश
लोहड़ी के दिन सरसों का साग, गन्ने के रस की खीर तथा मोठ की खिचड़ी बनाए जाने की परम्परा है. इस दिन इन व्यंजनों को बनाए जाने के पीछे यह मान्यता है कि पौष माह में कड़क सर्दी से शरीर का सारा खून जम जाता है. हम आग सेंककर और गर्म चीजें खाकर सर्दी से बचते हैं. माघ मास के प्रारम्भ होते ही हमारे शरीर का खून पिघलने लगता है, इसलिए माघ माह में सूर्य की प्रथम किरण धरती पर पड़ने से पूर्व हमारा पेट साफ और हल्का होना चाहिए. सरसों का साग, गन्ने के रस की खीर और मोठ की खिचड़ी तीनों हमारे पेट को साफ कर हमें निरोगी बनाती हैं. इस प्रकार हमारे पूर्वजों ने इस पर्व पर स्वास्थ्य को प्रमुखता दी.
इस पर्व से कुछ दिन पूर्व से ही लडके घर-घर जाकर उपले व पैसे मांगते हैं. लोहड़ी के दिन एकत्रित राशि से लकड़ियाँ खरीदी जाती हैं. सूरज छिपने से पूर्व ही लोहड़ी मनाने वाले स्थान की सफाई की जाती है तत्पश्चात वहाँ पर शुद्ध जल का छिड़काव किया जाता है. इसके बाद एकत्रित लकड़ियों को एक वृत के दायरे में ऊँचा कर इस प्रकार लगाया जाता है कि लकड़ियों के मध्य में हवा आने-जाने के लिए स्थान रहे. लकड़ियों के बीच में उपले लगाए जाते हैं तथा कच्ची लकड़ियाँ व बुरादा आदि डाला जाता है.
ऐसे मनाते हैं लोहड़ी
सूरज के अस्त होने के साथ ही लोग लोहड़ी मनाने के स्थान पर एकत्रित होते हैं. लोग अपने साथ घरों से रेवड़ी, मूंगफली, मक्की के फूले आदि लेकर आते हैं. इस अवसर पर नव विवाहिता स्त्रियाँ विशेष श्रृंगार कर आती हैं. नवजात शिशु भी नए वस्त्र धारण करते हैं. जब सभी लोग इकट्ठे हो जाते हैं, तब उस लकड़ियाँ के ढेर में वहाँ उपस्थित सबसे वृद्ध व्यक्ति के हाथों से अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. सभी लोग उस अग्नि के चारों ओर घूमते हैं और अपने साथ लाए रेवड़ी, मूँगफली, मक्की के फूले थोडा-थोडा अग्नि में डालते जाते हैं. जब लकड़ियों के ढेर में आग अच्छी तरह से लग जाती है, तब सभी इकट्ठे हुए लोग खुशी से झूम उठते हैं. आग के कारण सभी के चेहरे स्वर्ण की भांति दमकने लगते हैं.
इसके साथ ही उन चीजों के खाने का दौर चलता है, जो सभी लोग अपने साथ लाते हैं. सभी लोग खाने की चीजें आपस में बांटकर खाते हैं. इस अवसर पर लोकगीत गाए जाते हैं, नाच-गाना होता है. ढोल बजाए जाते हैं. पंजाब का सबसे प्रसिद्ध भांगड़ा नृत्य किया जाता है. देर रात तक लोहड़ी वाले स्थान पर बैठने, नाच-गाने, खुशी मनाने के पश्चात् सभी लोग अपने-अपने घर चले जाते हैं.
अगले दिन सूर्योदय से पूर्व ही लोग स्नान कर जली हुई लकड़ियों एवं उपलों की रख को अपने-अपने घरों में ले जाते हैं. इस तथ्य के पीछे यह मान्यता है कि यह उन उपलों एवं लकड़ियों की पवित्र राख होती है, जो सामूहिक सुरक्षा, कुल की वृद्धि और जीवन की खुशी के लिए जलाए जाते हैं.
इस प्रकार लोहड़ी का पर्व सभी लोग भेदभाव भूलकर जोश, उमंग व उत्साहपूर्वक सामूहिक रूप से मनाते हैं.
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